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जीवन प्रबंधन से कहीं ज्यादा आवश्यक है आत्मप्रबंधन

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, रविवार, 1 मार्च 2015 (16:16 IST)
-शोभना जैन
 
नई दिल्ली। अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक एवं प्रख्यात जैनाचार्य आचार्य लोकेश मुनिजी ने आत्मप्रबंधन को जीवन प्रबंधन और व्यापार प्रबंधन से कहीं ज्यादा आवश्यक बताते हुए कहा है कि संतोष से बड़ा कोई सुख नहीं है और असंतोष से बड़ा कोई दुःख नहीं है।
 
गुजराती एसोसिएशन कुआलालंपुर (मलेशिया) से भारत यात्रा पर आए एक शिष्टमंडल को संबोधित करते हुए उन्होंने यहां कहा कि सुख और शांति का संबंध पदार्थ और परिस्थिति से नहीं, हमारी मन:स्थिति से है। धन से सुख के साधन तो खरीदे जा सकते हैं, परंतु सुख नहीं। संतोष से बड़ा कोई सुख नहीं है और असंतोष से बड़ा कोई दुःख नहीं है।
 
आचार्य लोकेश ने कहा कि वर्तमान समय में जीवन प्रबंधन और व्यापार प्रबंधन की बहुत चर्चा होती है किंतु आत्मप्रबंधन को भुला दिया जाता है।
 
उन्होंने कहा कि इंटरनेट से तो जुड़ाव बढ़ रहा है, परंतु इनर नेट से व्यक्ति कटता जा रहा है। इंसान तन को तो दिन में दस बार संवारता है, पर मन को एक बार भी संवार नहीं पाता है। जब तक मन नहीं संवरेगा, तब तक जीवन में पूर्ण निखार नहीं आ पाएगा। मन को संवारने के लिए ध्यान, जाप, स्वाध्याय सर्वश्रेष्ठ मार्ग है।
 
उन्होंने कहा कि दुनिया का सबसे सरल धर्म अगर कोई है तो वह है ध्यान। पूजा करने के लिए मंदिर जाना पड़ता है, तीर्थयात्रा करने के लिए व्यवस्था करनी पड़ती है, दान देने के लिए पैसे खर्च करने पड़ते हैं, पर ध्यान के लिए कुछ नहीं करना पड़ता है। बस, जहां बैठे हों, वहीं खुद में उतरना पड़ता है।
 
इस अवसर पर श्री विवेक मुनिजी ने अहिंसा विश्व भारती, अहिंसा वेलनेस सेंटर तथा विश्व अहिंसा संघ द्वारा संचालित कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी दी।
 
इस अवसर पर आयोजित स्वागत समारोह में अखिल भारतीय जैन कांफ्रेंस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुभाष ओसवाल जैन एवं अहिंसा फाउंडेशन के अध्यक्ष एके जैन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए गुजराती एसोसिएशन कुआलालंपुर (मलेशिया) के अध्यक्ष भूपत राय, सचिव दीपक जैन, उपाध्यक्ष भास्कर जैन का शॉल व प्रतीक चिह्न द्वारा सम्मान किया। 
 
इससे पूर्व शिष्टमंडल ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी भेंट की। (वीएनआई)
 

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