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जापान में पूजे जाने वाले भारतीय देवताओं से जुड़ी तस्वीरों की प्रदर्शनी

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नई दिल्ली। भारत में जिस सरस्वती नदी की इसी नाम की देवी के रूप में पूजा की जाती है, उसे जापान के तालाबों में भी पूजा जाता है।
 
जापानी समाज की जड़ों तक समाई हुई भारतीय संस्कृति का ऐसा अन्वेषण अब तस्वीरों की एक प्रदर्शनी ‘जापान में पूजे जाने वाले भारतीय देवता’ में करने की कोशिश की गई है। इसकी शुरुआत यहां जापान फाउंडेशन में 3 सितंबर से होनी है।
 
जापान में निभाई जा रही प्राचीन भारतीय परंपराओं को दर्शाती ये तस्वीरें छायाकार और इतिहासकार विनय के बहल ने ली हैं जिन्होंने प्राचीन भारतीय संस्कृति का विशेष अध्ययन किया है। इन तस्वीरों का प्रदर्शन इस प्रदर्शनी में किया जा रहा है।
 
फाउंडेशन के माध्यम से फैलोशिप लेकर जापान की यात्रा कर चुके बहल ने कहा कि मैंने पाया कि जापान ने प्राचीन भारतीय परंपराओं को कई तरीकों से सहेजकर रखा है, वह भी तब जबकि ये परंपराएं यहां बदल चुकी हैं। उदाहरण के लिए जापान में सरस्वती को चित्रित किया गया है और इसे सिर्फ वीणा के साथ नहीं पूजा जा रहा, इसके साथ-साथ इसे जल के साथ इसके संबंध के लिए भी जाना जाता है।
 
उन्होंने कहा कि आप याद कर सकते हैं कि सरस्वती मूल रूप से इस नाम की नदी का मानवीकरण है इसलिए इसकी पूजा जापान के तालाबों में भी की जाती है। वायु और वरुण जैसे कई देवताओं को भारत में भुला दिया गया है, लेकिन जापान में आज भी उनकी पूजा होती है।
 
भारतीय देवताओं के अलावा शिंतो और बौद्ध बहुल इस देश में संस्कृत भाषा को भी संरक्षित रखा गया है। बहल के अनुसार, 6ठी शताब्दी की सिद्धम लिपि का भारत में इस्तेमाल नहीं होता लेकिन जापान में यह संरक्षित है।
 
बहल ने कहा कि संस्कृत में इस लिपि के ‘बीजाक्षरों’ को पवित्र माना जाता है और इन्हें बहुत महत्व दिया जाता है। हर देवता का एक ‘बीजाक्षर’ है और इन्हें लोगों द्वारा पूजा जाता है। हालांकि इनमें से अधिकतर लोग इसे पढ़ भी नहीं सकते। जापानी भाषा के बहुत से शब्द संस्कृत से हैं और यह जापानी अक्षर ‘काना’ का आधार भी है। 
 
सुपर मार्केट में दुग्ध उत्पादों का एक बड़ा ब्रांड ‘सुजाता’ कहलाता है। कंपनी के कर्मचारियों को सुजाता की कहानी सुनाई जाती है जिन्होंने बुद्ध को खीर दी थी। इसके साथ ही बुद्ध ने निर्वाण लेने से पहले अपने मिताहार वाली अवधि को खत्म किया था।
 
यह प्रदर्शनी 12 सितंबर को संपन्न होगी। (भाषा) 
 

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