ओलिम्पिक खेलों में भाग लेने वाले खिलाड़ी अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए प्रोटीनयुक्त भोजन करते हैं, कुछ शक्तिवर्धक दवाएं लेते हैं, लेकिन आप यह जानकर ताज्जुब करेंगे कि इन खेलों के इतिहास में एक दुर्लभ खिलाड़ी ऐसा भी पैदा हुआ, जो समुद्र में तैरता ही नहीं था, बल्कि समुद्री घास खाता भी था।
ऑस्ट्रेलिया में जन्म लेने वाले 17 वर्षीय मछुआरे तैराक मरे रोज ने मेलबोर्न ओलिम्पिक खेलों की तैराकी में दो स्वर्ण पदक जीतकर पूरी दुनिया को घास में होने वाली शक्ति का अहसास कराया।
कहते हैं कि शुरुआत में मरे मछलियां पकड़ते-पकड़ते समुद्र में ही अभ्यास करने लगे। हालांकि वह मछली पकड़ते जरूर थे, लेकिन उन्हें खाते नहीं। मरे तो बस समुद्र में पैदा होने वाली समुद्री घास 'सीवीड की जैली' से अपना पेट भरते थे क्योंकि इसी को खाने में उन्हें आनंद आता था।
बाद में तैराकी से जुड़े अधिकारियों की नजर मरे पर गई तो उन्हें प्रशिक्षण की बेहतरीन सुविधा मुहैया कराई गई, लेकिन वह करते निरामिष भोजन ही थे। मरे रोज की शरीर में गजब का लचीलापन था और वह तैरते थे तो लगता था साक्षात मछली भाग रही है।
17 साल की कमसिन उम्र में जब वह तरणताल में उतरे तो लोगों को आश्चर्य हुआ, लेकिन रोज ने 400 मीटर की फ्रीस्टाइल में अन्य प्रतिद्वंद्वियों को पीछे छोड़ा तो पूरे ऑस्ट्रेलिया में उनके नाम के डंके बजने लगे।
उसके बाद उन्होंने 1500 मीटर फ्रीस्टाइल में भी जब सभी प्रतियोगियों को पछाड़ते हुए सोने के तमगे पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया तो मेलबोर्न ओलिम्पिक के 'हीरो' बन गए।
दो-दो स्वर्ण पदक जीतते ही पूरे ऑस्ट्रेलियावासियों ने उन्हें सिर आँखों पर बिठा लिया। बधाइयों और उपहारों का ढेर लग गया।
मरे रोज ने चार वर्ष बाद रोम ओलिम्पिक में भी 400 मीटर और 1500 मीटर तैराकी में भाग लिया। 400 मीटर तैराकी में उन्होंने मेलबोर्न वाली सफलता की पुनरावृत्ति की और स्वर्ण पदक जीत लिया। एक मछुआरे की यह शानदार ओलिम्पिक यात्रा रही।