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और भी देशों में होता है रोशनी का जलसा!

रोशनी के त्योहार से जुड़े कुछ देश

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रोशनी का महत्व सिर्फ भारत के सबसे बड़े त्योहार दीपावली भर में नहीं है, बल्कि दुनिया के कुछ और देशों में भी है जहाँ क्रिसमस से पहले आस्था या मान्यताओं के कारण लोग अपने घरों में प्रकाश को अहमियत देते हैं।

वैसे, ऐसे ज्यादातर देशों में रोशनी के त्योहार क्रिसमस से जुड़े हैं जिनके तहत ईसा मसीह के जन्मदिन से पहले कुछ हफ्तों या दिनों तक नियमित तौर पर दीप या मोमबत्तियाँ जलाई जाती हैं। लेकिन कुछ देश ऐसे भी हैं जहाँ रोशनी के जलसे के पीछे की कहानी हजारों साल पुरानी और दिलचस्प है।

अगर शुरुआत ‘हनुक्का’ से करें तो यहूदी धर्म मानने वालों में रोशनी का यह पर्व मनाने का सिलसिला काफी पुराना है। इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है। ईसा के जन्म से पूर्व 165वीं शताब्दी में मैकाबी और सीरिया के लोगों के बीच अब के इस्राइल के आसपास संघर्ष हुआ था। संघर्ष क्षेत्र में रोशनी के लिए महज एक दिन का तेल बचा लेकिन लोगों ने पाया कि उनके साथ एक चमत्कार हुआ और एक दिन का तेल आठ दिन तक चला। इसके बाद से यहाँ भी यहूदी कैलेंडर के मुताबिक दिसंबर के आसपास नौ मोमबत्तियाँ जलाने की परंपरा शुरू हो गई।

हॉलैंड में भी रोशनी के उत्सव के पीछे कहानी कुछ ऐसी ही है। कहा जाता है कि यहाँ एक बार मर्टिन नाम का एक व्यक्ति बर्फीले तूफान के बीच अपने घर लौट रहा था। उसने एक लबादा पहन रखा था। अचानक उसने अंधेरे में एक व्यक्ति को बैठे देखा। उसने व्यक्ति पर दया दिखाई और उसे अपना लबादा दे दिया। मार्टिन एक संत थे और उनके दयाभाव के सम्मान में हॉलैंड में हर वर्ष 11 नवंबर को रोशनी का पर्व मनाया जाने लगा। इस दिन बच्चे लालटेन लेकर घर-घर जाते हैं और गीत गाते हैं।

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थाइलैंड में नवंबर में पूर्णिमा के दिन दीप पर्व मनाया जाता है। इस दिन ‘क्रेथोन्ग’यानी केले के पत्तों से बने कमल के आकार के पात्र में एक दीया, कुछ फूल और सिक्के लेकर लोग नदी किनारे जाते हैं। दीया जलाने के बाद प्रार्थना की जाती है। माना जाता है कि पूर्णिमा के दिन ‘क्रेथोन्ग’को नदी किनारे ले जाने से दुर्भाग्य दूर हो जाता है।

स्वीडन में क्रिसमस से पहले तक मौसम बहुत ठंडा हो चुका होता है। दिसंबर के महीने में यहाँ दिन में बमुश्किल कुछ घंटे ही धूप खिलती है। क्रिसमस से पहले 13 दिसंबर को स्वीडन के लोग ‘सेंट लूसिया डे’मनाते हैं जो एक तरह का दीप उत्सव ही होता है। इस दिन लोग अपने घरों में खास तौर पर प्रकाश व्यवस्था करते हैं।

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फ्रांस में दीपावली की किस्म का ही एक त्योहार मनाया जाता है। दिसंबर में क्रिसमस से पहले चार दिन लगातार रविवार मोमबत्तियाँ जलाई जाती हैं। कुछ परिवार लकड़ियाँ भी जलाते हैं जिसका मकसद ईसा मसीह के जन्म से पहले के चार रविवार रोशन करना होता है।

म्रिस की बात करें तो यहाँ अधिकतर ईसाई ‘कॉप्टिक आथरेडॉक्स’ गिरिजाघर को मानते हैं। यहाँ छह और सात जनवरी को क्रिसमस मनाया जाता है। इस दौरान गिरिजाघरों और घरों को रोशनी से सजाने के अलावा गरीबों को भी मोमबत्तियाँ देने की परंपरा है। मिस्र में यह उत्सव चार सप्ताह से लेकर 45 दिन तक चलता है। दिलचस्प बात यह है कि माँसाहार के शौकीन मिस्र के लोग इस उत्सव के दौरान उपवास रखते हैं और शाकाहार ही लेते हैं।

फिलिपीन में एशिया में सबसे ज्यादा ईसाई रहते हैं। यहाँ क्रिसमस से नौ दिन पहले एक विशेष ‘मास’(प्रार्थना) होता है जिसमें ईसा मसीह के जन्म की बात सुनाई जाती है। इस दौरान पूरे नौ दिन सितारे के आकार वाले दीये लगाए जाते हैं। नौ दिन के उत्सव के दौरान एक दीप यात्रा भी निकाली जाती है जिसमें लोग सितारे के आकार वाला दीया अपने साथ लेकर चलते हैं।

मैक्सिको में भी क्रिसमस से नौ दिन पहले लोग एक-दूसरे के घर जली हुई मोमबत्तियाँ लेकर जाते हैं। चीन में ईसाई अल्पसंख्यक हैं और उनमें क्रिसमस में ‘क्रिसमस ट्री’ में पूरी तरह रोशनी करने की परंपरा है। लेकिन मूल चीन के लोग जनवरी के अंत में चीनी नववर्ष मनाते हैं और इस दौरान खासकर घरों के अंदर रोशनी करने का महत्व रहता है।

ब्राजील में रोशनी का उत्सव नववर्ष से जुड़ा है जब इस देश के लोग 31 दिसंबर की रात जल की अफ्रीकी देवी ‘इएमांजा’की पूजा करते हैं। वे मानते हैं कि इस दिन सैंकड़ों मोमबत्तियाँ जलाने से देवी उन्हें दुआ देगी।

कवांजा में हर वर्ष 26 दिसंबर को अफ्रीकी फसलों का त्योहार मनाया जाता है। इस दौरान हर परिवार एक सप्ताह तक सात मोमबत्तियाँ या दीये जलाता है। (भाषा)

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