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कार्तिक चतुर्दशी पर करें सुपिंडी श्राद्घ

कार्तिक पूर्णिमा के दिन करें कार्तिकेय का पूजन

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* कार्तिक चतुर्दशी पर करें पितरों के निमित्त सुपिंडी श्राद्घ
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कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन सुपिंडी श्राद्घ का काफी महत्व है। इस दिन पितरों के निमित्त सिद्घवट व रामघाट पर सुपिंडी श्राद्घ दान किया जाता है। खास तौर पर यह पूर्वजों के आत्मा की शांति व घर में सुख-समृद्घि के लिए तर्पण दान एवं पिंडदान किया जाता है।

उसी प्रकार कार्तिक पूर्णिमा के दिन भी तीर्थ के समीप घी का दीपक लगाकर ब्राह्मण को सीदा दान करना चाहिए। तपश्चात तिल्ली के तेल के दीपों को नदी में छोड़ने का विधान धर्मशास्त्र में बताया गया है। ऐसा करने से पितरों को आदित्य विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक मास बारह मासों में सबसे श्रेष्ठ मास माना गया है। यह भगवान कार्तिकेय द्वारा की गई साधना का माह माना जाता है। इस कारण ही इसका नाम कार्तिक महीना पड़ा। इस दिन कार्तिकेय के पूजन का विशिष्ठ महत्व है। कहा जाता है कि कार्तिकेय को भगवान विष्णु द्वारा धर्म मार्ग को प्रबल करने की प्रेरणा दी गई है।
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कार्तिकेय ने इसी आधार पर धर्मशास्त्र में भगवान विष्णु के दामोदर अवतार तथा अर्द्घांगिनी राधा का विशेष उल्लेख किया है।

कार्तिक माह के दौरान जिन लोगों ने मासपर्यंत व्रत या संकल्प नहीं किया है, वह कार्तिक चतुर्दशी व पूर्णिमा के दिन तीर्थ स्थान पर जाकर राधा-दामोदर का विशेष पूजन कर सकते हैं। कार्तिक मास में राधा-दामोदर के साथ शालिग्राम तथा तुलसी के पूजन का विशेष महत्व है।

कार्तिक चतुर्दशी एवं पूर्णिमा पर क्या करें :-
* निर्णय सिंधु की मान्यता के अनुसार चतुर्दशी पर सर्वप्रथम तीर्थ स्नान करें।

* तपश्चात राधा-दामोदर या शालिग्राम-तुलसी का पूजन करके पितरों के निमित्त तर्पण व सुपिंडी श्राद्घ करें।

* राधा-दामोदर का पूजन सुहागिन स्त्रियों के लिए चिर सौभाग्यदायक तथा तुलसी-शालिग्राम का पूजन परिवार में सुख, शांति, समृद्घि के लिए किया जाता है।

* पितरों के निमित्त तर्पण व सुपिंडी श्राद्घ करने से सुख की प्राप्ति तथा उच्च वंश को आगे बढ़ाने वाला माना गया है।

* राधा-दामोदर, शालिग्राम तथा तुलसी तथा भगवान कार्तिकेय का पूजन करें

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