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गणगौर उत्सव मस्ती का पर्व

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गणगौर की स्थापना होली के दिन की जाती है। इसके बाद अठारह दिनों तक रोज सुबह-शाम इसे पूजा जाता है। इसमें माहेश्वरी व मारवाड़ी समुदाय की कुँवारी लड़कियों व नई-नवेली दुल्हनों के लिए हर रोज ही किसी उत्सव से कम नहीं है। अच्छे पति की कामना से गणगौर तैयार कर रोज पूजा करने का सिलसिला होली के दिन से ही शुरू हो गया है।

पहले महिलाएँ व युवतियाँ घर पर ही मिट्टी से गणगौर की मूर्ति गढ़ती थीं, लेकिन अब मार्केट में रेडीमेड गणगौर मिलने लगे हैं।

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गणगौर रखने वाली लड़कियों के घर में एक उत्सव का माहौल बन जाता है। इस दौरान गाना, बजाना, नाच होता है। गणगौर उत्सव मस्ती का पर्व है। गेहूँ के ज्वारे के साथ इसर, गणेशजी की पूजा करते हैं। इनको रोजाना गीत गाकर भोग लगाते हैं और पानी पिलाते हैं। 16 श्रृंगार कर और बिनोरा निकालती हैं।

अठारह दिनों तक गणगौर पूजने के बाद आखिरी दिन पक्की रसोई बनाकर प्रसाद चढ़ाया जाता है। आखिरी दिन सुबह से ही घर में उत्सव सा माहौल रहता है। घर में पक्की रसोई के तौर पर खीर, पुड़ी, सीरा बनाकर उसे प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। इस दिन कई जगहों पर गणगौर प्रतियोगिता भी रखी जाती है। इसमें युवतियाँ व महिलाएँ अपनी गणगौर पर सजाकर प्रतियोगिता में हिस्सा लेती हैं। इसके बाद मंदिर या गार्डन में इसे घुमाकर तालाब में विसर्जन किया जाता है।

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