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मोक्षदा एकादशी व्रत-विधान

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मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष को आने वाली यह एकादशी जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त कराती है। इस व्रत को धारण करने वाला मनुष्य जीवन भर सुख भोगता है और अपने समय में निश्चित ही मोक्ष को प्राप्त होता है। मोक्ष दिलाने वाले इस दिन को मोक्षदा एकादशी भी कहते हैं।

विधि-विधान
इस दिन प्रातः स्नानादि कार्यों से निवृत्त होकर प्रभु श्रीकृष्ण का स्मरण कर पूरे घर में पवित्र जल छिड़ककर अपने आवास तथा आसपास के वातावरण को शुद्ध बनाएँ। पश्चात पूजा सामग्री तैयार करें।

तुलसी की मंजरी (तुलसी के पौधे पर पत्तियों के साथ लगने वाला), सुगंधित पदार्थ विशेष रूप से पूजन सामग्री में रखें। गणेशजी, श्रीकृष्ण और वेदव्यासजी की मूर्ति या तस्वीर सामने रखें। गीता की एक प्रति भी रखें। इस दिन पूजा में तुलसी की मंजरियाँ भगवान श्रीगणेश को चढ़ाने का विशेष महत्व है।

चूँकि इसी दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को रणभूमि में उपदेश दिया था अतः आज के दिन उपवास रखकर रात्रि में गीता-पाठ करते हुए या गीता प्रवचन सुनते हुए जागरण करने का भी काफी महत्व है। पूजा-पाठ कर व्रत कथा को सुनें, पश्चात आरती कर प्रसाद बाँटें।

व्रत-कथा
काफी समय पुरानी बात है, चम्पक नामक नगर में एक ब्राह्मण वास करता था। वहाँ का राजा वैखानस काफी दयालु था, वह अपनी प्रजा को संतान की तरह प्यार करता था। एक दिन राजा ने स्वप्न में देखा कि उनके पिता नरक में घोर यातनाएँ भुगत कर विलाप कर रहे हैं।

राजा की नींद खुल गई। अब वह बेचैन हो गया। प्रातः उसने अपने दरबार में सभी ब्राह्मणों को बुलाया और स्वप्न की सारी बात बता दी। फिर सभी ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि कृपा कर कोई ऐसा उपाय बताओ, जिससे मेरे पिता का उद्धार हो सके।

ब्राह्मणों ने राजा को सलाह दी कि यहाँ से थोड़ी दूरी पर महा विद्वान, भूत-भविष्य की घटनाओं को देखने वाले पर्वत ऋषि रहते हैं, वे ही आपको उचित मार्गदर्शन दे सकेंगे।

तत्काल राजा पर्वत ऋषि के आश्रम में गया और ऋषिवर को प्रार्थना की कि हे मुनि! कृपाकर मुझे ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए। राजा की बात सुन ऋषि बोले, तुम्हारे पिता ने अपने जीवन काल में बहुत अनाचार किए थे, जिसकी सजा वे नरक में रहकर भुगत रहे हैं।

यदि आप चाहते हैं कि आपके पिता की मुक्ति हो जाए तो आप मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष को आने वाली मोक्षदा एकादशी का उपवास करें। राजा वैखानस ने वैसा ही किया, फलस्वरूप उनके पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई। अतः जो भी व्यक्ति इस त्योहार को धारण करता है, उसे स्वयं को तो मोक्ष मिलता ही है, उसके माता-पिता को भी मोक्ष प्राप्ति होती है।

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