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शीतलता का पर्व बसौड़ा

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जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए इंसान में धैर्य के साथ सरलता का गुण होना आवश्यक है। हमारी भारतीय सनातन परंपरा के अनुसार इन गुणों की देवी माँ शीतला को माना गया है। उनकी सेवा से धैर्य, साहस, शीतलता और कर्मनिष्ठ जैसे गुण आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। रंगपंचमी से इनकी पूजा का पर्व 'बसौड़ा' शुरू हो गया है, जो आगामी अष्टमी तक जारी रहेगा। कहते हैं कि नवरात्र के शुरू होने से पहले यह व्रत करने से माँ के वरदहस्त अपने भक्तों पर रहते हैं।

पौराणिक महत्व : लोक किंवदंतियों के अनुसार बसौड़ा की पूजा माता शीतला को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। कहते हैं कि एक बार किसी गाँव में गाँववासी शीतला माता की पूजा-अर्चना कर रहे थे तो माँ को गाँववासियों ने गरिष्ठ भोजन प्रसादस्वरूप चढ़ा दिया। शीतलता की प्रतिमूर्ति माँ भवानी का गर्म भोजन से मुँह जल गया तो वे नाराज हो गईं और उन्होंने कोपदृष्टि से संपूर्ण गाँव में आग लगा दी। बस केवल एक बुढि़या का घर सुरक्षित बचा हुआ था।

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गाँववालों ने जाकर उस बुढि़या से घर न जलने के बारे में पूछा तो बुढि़या ने माँ शीतला को गरिष्ठ भोजन खिलाने वाली बात कही और कहा कि उन्होंने रात को ही भोजन बनाकर माँ को भोग में ठंडा-बासी भोजन खिलाया, जिससे माँ ने प्रसन्न होकर बुढि़या का घर जलने से बचा लिया। बुढि़या की बात सुनकर गाँववालों ने माँ से क्षमा माँगी और रंगपंचमी के दिन उन्हें बासी भोजन खिलाकर माँ का बसौड़ा पूजन किया।

क्या है बसौड़ा : भारतीय सनातन परंपरा के अनुसार महिलाएँ अपने बच्चों की सलामती, आरोग्यता व घर में सुख-शांति के लिए रंगपंचमी से अष्टमी तक माँ शीतला को बसौड़ा बनाकर पूजती हैं। बसौड़ा में मीठे चावल, ढ़ी, चने की दाल, हलुवा, रावड़ी, बिना नमक की पूड़ी, पूए आदि एक दिन पहले ही रात्रि में बनाकर रख लिया जाता है। तत्पश्चात सुबह घर व मंदिर में माता की पूजा-अर्चना कर महिलाएँ शीतला माता को बसौड़ा का प्रसाद चढ़ाती हैं। पूजा करने के बाद घर की महिलाओं ने बसौड़ा का प्रसाद अपने परिवारों में बाँटकर सभी के साथ मिलजुल कर बासी भोजन ग्रहण करके माता का आशीर्वाद प्राप्त किया।

पुरुष भी पूजते हैं बासौड़ा : कहा जाता है कि भारत विभिन्न समाजों व संप्रदायों से मिलकर बना एक लोक बहुलतावादी देश है। जहाँ पर हर त्योहार व पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसी सनातन परंपरा को कायम रखते हुए शहर में कई समाजजन बसौड़ा पर्व पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ मनाते हैं। जहाँ केवल महिलाएँ ही नहीं, अपितु पुरुष भी इस पूजन में बराबरी से भाग ले रहे हैं।

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