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शीतला माता का शीतल पर्व

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

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माता शीतला का पर्व किसी न किसी रूप में देश के हर कोने में होता है। कोई माघ शुक्ल की षष्ठी को, कोई वैशाख कृष्ण पक्ष की अष्टमी को तो कोई चैत्र के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाते हैं। शीतला माता हर तरह के तापों का नाश करती हैं और अपने भक्तों के तन-मन को शीतल करती हैं।

विशेषकर चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला सप्तमी-अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को बसोरा भी कहते हैं। बसोरा का अर्थ है बासी भोजन।

इस दिन घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता। एक दिन पहले ही भोजन बनाकर रख देते हैं। फिर दूसरे दिन प्रात:काल महिलाओं द्वारा शीतला माता का पूजन करने के बाद घर के सब व्यक्ति बासी भोजन को खाते हैं। जिस घर में चेचक से कोई बीमार हो उसे यह व्रत नहीं करना चाहिए।

हिंदू व्रतों में केवल शीतलाष्टमी का व्रत ही ऐसा है जिसमें बासी भोजन किया जाता है। इसका विस्तृत उल्लेख पुराणों में मिलता है। शीतला माता का मंदिर वटवृक्ष के समीप ही होता है। शीतला माता के पूजन के बाद वट का पूजन भी किया जाता है।

ऐसी प्राचीन मान्यता है कि जिस घर की महिलाएँ शुद्ध मन से इस व्रत को करती है, उस परिवार को शीतला देवी धन-धान्य से पूर्णकर प्राकृतिक विपदाओं से दूर रखती हैं।

शीतलाष्टमी व्रत कथा


शीतला सप्तमी-अष्टमी

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