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मनोवांछित फल देती है गोविन्द द्वादशी, जानें नियम एवं महत्व

हमें फॉलो करें मनोवांछित फल देती है गोविन्द द्वादशी, जानें नियम एवं महत्व
- प्रेम कुमार शर्मा 

यह व्रत भगवान गोविन्द को समर्पित है और उनकी कृपा प्राप्त करने हेतु इसे किया जाता है। जो सब प्रकार का सुख-वैभव देने वाला और कलियुग के समस्त पापों का शमन करने वाला है। इसमें ब्राह्मण को दान, पितृ तर्पण, हवन, यज्ञ आदि का बहुत ही महत्व है।
 
अगले पृष्ठ पर पढ़ें गोविंद द्वादशी का महत्व... 
 
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गोविन्द द्वादशी का महत्व : माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के ठीक दूसरे दिन गोविन्द द्वादशी का व्रत किया जाता है जिसमें पूजा, सदाचार, शुद्ध आचार-विचार पवित्रता आदि का विशेष महत्व है। द्वादशी तिथि में यदि यह तिथि वृद्धि के कारण 2 दिनों तक प्रदोष काल में व्याप्त रहे तो इसे दूसरे दिन के प्रदोष काल में ही मनाया जा सकता है। 
 
यह व्रत भी धन, धान्य व सुख से परिपूर्ण करने वाला है। रोगों को नष्ट कर आरोग्य को बढ़ाने वाला है, जिसे गोविन्द द्वादशी के नाम से जाना जाता है। इस द्वादशी को भीम द्वादशी और तिल द्वादशी भी कहा जाता है। इसके व्रत से मानव जीवन के समस्त रोगादि छूट जाते हैं और अंत में वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती।
 
इस व्रत को भगवान ने भीष्म को बताया था और उन्होंने इस व्रत का प्रथम पालन किया जिससे इसका नाम भीष्म द्वादशी व्रत हुआ। इसकी विधि एकादशी के समान ही है। इसे करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

जन्म-जन्मांतरों के एक अहीर अर्थात यादव कन्या ने इस व्रत का पालन किया था जिससे वह अप्सराओं की अधीश्वरी हुई और वही उर्वशी नाम से विख्यात है। यह व्रत कलियुग के पापों को नष्ट करने वाला है। माघ मास की द्वादशी परम पूजनीय कल्याणिनी है। इस तिथि पर पितृ तर्पण आदि क्रियाएं की जाती हैं तथा श्रद्धा व भक्तिपूर्ण ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है तथा विभिन्न प्रकार के दान, हवन यज्ञादि क्रियाएं भी की जाती हैं।
 
इस व्रत में 'ॐ नमो नारायणाय नम:, श्रीकृष्णाय नम:, सर्वात्मने नम:' आदि नामों से भगवान विष्णु की पूजा-आराधना की जाती है।
 
भीष्म द्वादशी का व्रत एकादशी की भांति पवित्रता व शांत चित से श्रद्धापूर्ण किया जाता है। यह व्रत मनोवांछित फलों को देने वाला और भक्तों के कार्य सिद्ध करने वाला होता है। इस व्रत को नित्यादि क्रियाओं से निवृत्त होकर श्रद्धा-विश्वासपूर्ण करना चाहिए। व्रत पूजा के सारे नियम एकादशी के व्रत की भांति ही हैं। यह व्रत पुत्र-पौत्र धन-धान्य देने वाला है।
 
पूजा के नियम : प्रात:काल स्नान के बाद संध्यावंदन करने के पश्चात षोडशोपचार विधि से लक्ष्मीनारायण भगवान की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराने के उपरांत स्वत: भोजन करना चाहिए।
 
संपूर्ण व्रत को भगवान लक्ष्मीनारायण को अर्पित कर देना चाहिए और संपूर्ण घर-परिवार सहित अपने कल्याण धर्म, अर्थ, मोक्ष की कामना करनी चाहिए।

 

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