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मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत और पूजा कैसे करते हैं और जानिए पौराणिक महत्व

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, शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021 (17:38 IST)
हिन्दू पुराणों में मार्गशीर्ष माह का खासा महत्व है। श्रीमदभागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि महीनों में मैं मार्गशीर्ष का पवित्र महीना हूं। आओ जानते हैं कि इस माह की पूर्णिमा का व्रत कैसे रखें और कैसे करें पूजा। साथ ही जानते हैं इस दिन का महत्व।
 
 
कैसे रखें व्रत :
 
1. पूर्णिमा तिथि 18 दिसंबर 2021 को प्रात: 07:26:35 से प्रारंभ होगी। अत: इसके पूर्व से ही व्रत का प्रारंभ हो जाएगा और यह तिथि 19 दिसंबर 2021 को प्रात: 10:07:20 पर समाप्त होगी। अत: 19 दिसंबर को पूर्णिमा रहेगी। पूर्णिमा का चांद तो 18 दिसंबर की रात को ही दिखाई देगा अत: उसके पूर्व से ही व्रत प्रारंभ होगा और दूसरे दिन उदया तिथि होने के कारण पूर्णिमा मनाई जाएगी।
 
2. व्रत के दौरान यदि व्रत करने की हिम्मत नहीं है तो फलाहार ले सकते हो। आप चाहें तो एकाशना भी कर सकते हो।

3. व्रत के दूसरे दिन किसी गरीब को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा देकर उन्हें विदा करने के बाद व्रत का पारण करें।
 
कैसे करें पूजा :
 
1. इस पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनाराण की पूजा की जाती है। 
 
2. प्रातःकाल उठकर भगवान का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।
 
3. स्नान के बाद सफेद कपड़े पहनें और फिर आचमन करें।
 
4. इसके बाद ऊँ नमोः नारायण कहकर श्रीहरि का आह्वान करें।
 
5. सत्यनारायण भगावन के चित्र या तस्वीर को पाट पर स्थापित करके आसन, गंध और पुष्प आदि भगवान को अर्पण करें।
 
6. भगवान को पंचामृत और नैवेद्य अर्पित करें और उनकी आरती उतारें।
 
7. इसके बाद भगवान सत्यनाराण की कथा सुनें।
 
8. आप चाहे तो हवन भी कर सकते हैं। हवन में तेल, घी और बूरा आदि की आहुति दें।
 
9. रात्रि को भगवान नारायण की मूर्ति के पास ही शयन करें।
 
10. व्रत के दूसरे दिन किसी गरीब को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा देकर उन्हें विदा करने के बाद व्रत का पारण करें।
 
महत्व : 
 
1. इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने का महत्व है। र्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन हरिद्वार, बनारस, मथुरा और प्रयागराज आदि जगहों पर श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान और तप आदि करते हैं।
 
2. इस दिन दान देने का खासा महत्व है। किसी जरूरतमंद को वस्त्र, भोजन आदि का यथाशक्ति दान करें। इस दिन किए जाने वाले दान का फल अन्य पूर्णिमा की तुलना में 32 गुना अधिक मिलता है, इसलिए इसे बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है। 
 
3. पौराणिक मान्याताओं के अनुसार मार्गशीर्ष माह से ही सतयुग काल आरंभ हुआ था।
 
4. इस दिन तुलसी की जड़ की मिट्टी से पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलती है।
 
5. इस भगवान सत्यनारायण की पूजा करना और कथा सुनने का महत्व है। यह परम फलदायी बताई गई है।

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