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विवाह पंचमी 2021 : शुभ मुहूर्त, महत्व, तिथि, पूजा विधि, कथा और श्री राम सीता के शुभ मंत्र

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Ram-Sita 

हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी तिथि को श्रीराम-सीता के विवाह की वर्षगांठ को उत्सव के रूप में मनाए जाने की परंपरा है। इस बार बुधवार विवाह पंचमी Vivah Panchammi पड़ रही है। इसी तिथि पर त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और देवी सीता (जानकी) का विवाह हुआ था। यह तिथि भगवान श्रीराम और माता सीता की शादी की वर्षगांठ का शुभ दिन है।


भारतभर में विवाह पंचमी के दिन लोग पूजा पाठ करते हैं और राम सीता का विवाह कराते हैं। इस दिन राम-सीता का एकसाथ पूजन करने से विवाह में आने वाली दिक्कतें दूर होकर शीघ्र विवाह के योग बनते हैं। इस दिन पूजन से वैवाहिक जीवन भी सुखमय होता है।
 
विवाह पंचमी शुभ मुहूर्त Vivah Panchammi Muhurat 
 
विवाह पंचमी तिथि आरंभ- 07 दिसंबर को प्रात: 04.53 मिनट से शुरू होकर बुधवार 08 दिसंबर 2021 को रात्रि 03.08 मिनट पर समाप्त होगी। 
 
सरल पूजन विधि- Vivah Panchammi Puja Vidhi 
 
1. प्रातः काल स्नान करने के बाद राम विवाह का संकल्प लेना चाहिए। उसके बाद विवाह की तैयारियां शुरू कर दें।
 
2. भगवान राम और माता सीता की प्रतिकृति (मूर्ति) की स्थापना करें। 
 
3. भगवान राम को पीले और माता सीता को लाल वस्त्र पहनाएं। 
 
4. बालकांड पढ़ते हुए विवाह प्रसंग का पाठ करें।
 
5. विवाह पंचमी के दिन प्रभु राम और माता सीता का विवाह कराएं।
 
6. फिर भगवान राम और माता सीता का गठबंधन करें। 
 
7. तपश्चात आरती करें। 
 
8. इस दिन राम-सीता की संयुक्त रूप से पूजन करें। 
 
9. रामचरितमानस का पाठ करें। 
 
10. बालकांड में वर्णित भगवान राम और सीता विवाह का पाठ करना चाहिए।
 
11. गठबंधन किए हुए वस्तुओं को अपने पास संभालकर रखें।
 
12. विवाह पंचमी के दिन राम-सीता विवाह की कथा पढ़ें।
 
13. मंत्र- Vivah Panchami Mantra

- श्रीरामचन्द्राय नम:।
- श्री रामाय नम:।
- ह्रीं राम ह्रीं राम।
- श्री सीतायै नम:।
- श्रीराम शरणं मम्।
- ॐ जानकीवल्लभाय नमः का अधिक से अधिक जाप करें। 
 
कथा- Vivah Panchami Katha
 
विवाह पंचमी की कथा के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम राजा दशरथ के घर पैदा हुए थे और राजा जनक की पुत्री थी सीता। मान्यता है कि सीता का जन्म धरती से हुआ था। राजा जनक हल चला रहे थे उस समय उन्हें एक नन्ही सी बच्ची मिली थी जिसका नाम उन्होंने सीता रखा था। सीता जी को 'जनकनंदिनी' के नाम से भी पुकारा जाता है।
 
एक बार सीता ने शिव जी का धनुष उठा लिया था जिसे परशुराम के अतिरिक्त और कोई नहीं उठा पाता था। राजा जनक ने यह निर्णय लिया कि जो भी शिव का धनुष उठा पाएगा सीता का विवाह उसी से होगा।  सीता के स्वयंवर के लिए घोषणाएं कर दी गई। स्वयंवर में भगवान राम और लक्ष्मण ने भी प्रतिभाग किया। वहां पर कई और राजकुमार भी आए हुए थे पर कोई भी शिव जी के धनुष को नहीं उठा सका।
 
राजा जनक हताश हो गए और उन्होंने कहा कि 'क्या कोई भी मेरी पुत्री के योग्य नहीं है?' तब महर्षि वशिष्ठ ने भगवान राम को शिव जी के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने को कहा। गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए भगवान राम शिव जी के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने लगे और धनुष टूट गया। इस प्रकार सीता जी का विवाह राम से हुआ। भारतीय समाज में राम और सीता को आदर्श दंपत्ति (पति-पत्नी) का उदाहरण समझा जाता है। उनका जीवन प्रेम, आदर्श, समर्पण को दर्शाता है।  

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