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अनमोल है गणगौर की परंपरा...

हमें फॉलो करें अनमोल है गणगौर की परंपरा...
- राजेन्द्र पुरोहि
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आज के आधुनिक दौर में पुरानी परंपराएँ धीरे-धीरे धूमिल होती जा रही हैं। युवा वर्ग का रुझान इन प्रचलनों की तरफ कम होने लगा है। मगर साथ ही कई युवक-युवतियाँ ऐसे भी हैं, जो इन परंपराओं को जीवंत रखने के लिए उनका निर्वहन करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारे यहाँ ऐसी ही एक पुरानी परंपरा है युवतियों की गणगौर मनाने की। हालाँकि इसके प्रति आकर्षण कुछ कम हुआ है लेकिन फिर भी जीवंत है यह परंपरा...।

पहले यह त्योहार महिलाओं और युवतियों द्वारा बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था, मगर गत कुछ वर्षों से युवतियों का आकर्षण इस त्योहार की तरफ धीरे-धीरे कम होने लगा है। पाश्चात्य संस्कृति के इस दौर में युवतियाँ इस त्योहार को महत्वहीन समझने लगी हैं और इसी के चलते कई युवतियाँ सिर पर गणगौर रखकर चलने में शर्म भी महसूस करती हैं। मालवा क्षेत्र में प्राचीन कथा के अनुसार चैत्र मास की तीज से पंचमी तक गणगौर पूजन किया जाता है।

इसके लिए महिलाएँ और युवतियाँ ग्यारस पर गेहूँ के जवारे बोती हैं, जो कि तीज तक अंकुरित होते हैं। गणगौर के साथ ही इन जवारों का भी पूजन किया जाता है। परंपरा के अनुरूप तीज के दिन महिलाएँ और लड़कियाँ गणगौर को अपने सिर पर रखकर जलाशयों तक पारंपरिक गीत गाते हुए जाती हैं।
  आज के आधुनिक दौर में पुरानी परंपराएँ धीरे-धीरे धूमिल होती जा रही हैं। युवा वर्ग का रुझान इन प्रचलनों की तरफ कम होने लगा है। मगर साथ ही कई युवक-युवतियाँ ऐसे भी हैं, जो इन परंपराओं को जीवंत रखने के लिए उनका निर्वहन करने का प्रयास कर रहे हैं।      


वहाँ से गणगौर पूजन कर लौटते समय अपने पात्रों में हरी पत्तियाँ और फूल तोड़कर लाती हैं। यहाँ महिलाएँ एकत्रित होकर गीत और भजन भी गाती हैं। कई घरों में लकड़ी की गणगौर का पूजन किया जाता है तो कहीं मिट्टी से गणगौर बनाकर पूजा की जाती है।

तीन दिनों तक गणगौर माता का श्रंगार किया जाता है। कई महिलाएँ बेसन और दूध मिलाकर श्रंगार के लिए हार, चूड़ी और गहने भी बनाती हैं। प्रौढ़ महिला श्रीमती कुंतादेवी शर्मा के अनुसार पहले यह त्योहार युवतियाँ सज-सँवरकर धूमधाम से मनाती थीं, लेकिन अब कुँवारी लड़कियाँ गणगौर निकालने और पूजने में कोई विशेष रुचि नहीं लेती हैं। यदि यही स्थिति रही तो यह त्योहार मात्र महिलाओं तक ही सीमित रह जाएगा। वहीं सुश्री दीपिका सूर्या का मानना है कि उन्हें सिर पर गणगौर रखकर घूमना अच्छा नहीं लगता और रही बात अच्छे वर की तो यह किस्मत के आधार पर ही तय होता है।

दूसरी ओर सुश्री नेहा जादौन का कहना है कि वे अपनी परंपराओं को आगे बढ़ाने के लिए यह त्योहार मनाती हैं। उनका मानना है कि यदि युवतियाँ ही इस त्योहार को नहीं मनाएँगी तो यह परंपरा धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी। हमारी संस्कृति की ये अनमोल परंपराएँ समाप्त न हों, हमेशा जीवंत बनी रहें, यही प्रयास होना चाहिए।

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