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कैसे करें गुरुपूर्णिमा व्रत...

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आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा कहते हैं। भारत में यह त्योहार पूरी श्रद्धा से मनाया जाता है। प्राचीन काल में गुरु के आश्रम में जब विद्यार्थी निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन गुरु का पूजन करके उन्हें दान-दक्षिणा देकर उन्हें पादपूजन करता था।

इस व्रत के लिए ‍नीचे कुछ उपयोगी जानकारी दी जा रही है।

* प्रातः घर की सफाई, स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त हो जाएँ।

* श्रीपर्गी वृक्ष की चौकी पर अथवा घर में ही किसी पवित्र स्थान पर पटिए पर सफेद वस्त्र फैलाकर उस पर प्रागपर (पूर्व से पश्चिम) तथा उदगपर (उत्तर से दक्षिण) गंध से बारह-बारह रेखाएँ बनाकर व्यासपीठ बनाएँ।

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* तत्पश्चात 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये' मंत्र से संकल्प करें।

* इसके बाद दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ें।

* अब ब्रह्माजी, व्यासजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम मंत्र से पूजा, आवाहन आदि करें।

* फिर अपने गुरु अथवा उनके चित्र की पूजा कर उन्हें दक्षिणा दें।

क्या करें क्या न करें?

- व्यासजी द्वारा रचे हुए ग्रंथों का अध्ययन-मनन करके उनके उपदेशों पर आचरण करना चाहिए।

- इस दिन वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर गुरु को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए क्योंकि गुरु का आशीर्वाद ही विद्यार्थी के लिए कल्याणकारी तथा ज्ञानवर्द्धक होता है।

- इस दिन केवल गुरु (शिक्षक) ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा का विधान है।

- यह पर्व श्रद्धा से मनाया जाता है, अंधविश्वासों के आधार पर नहीं।

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