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गुरुपूर्णिमा (व्यास पूर्णिमा)

हमें फॉलो करें गुरुपूर्णिमा (व्यास पूर्णिमा)
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आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरुपूजा का विधान है। भारतभर में यह पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। प्राचीनकाल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था।

वैसे तो कई विद्वान हुए हैं परन्तु व्यास ऋषि, जो चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता थे, की आज के दिन पूजा होती है। हमें वेदों का ज्ञान देने वाले व्यासजी ही हैं। अतः वे हमारे आदिगुरु हुए। इसीलिए गुरुपूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। उनकी स्मृति को ताजा रखने के लिए हमें अपने-अपने गुरुओं को व्यासजी का अंश मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए।

गुरुपूर्णिमा व्रत कैसे करें
  आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा कहते हैं। भारतभर में यह पर्व बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है। प्राचीनकाल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन गुरु का पूजन करके अपने सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देता था।      


* प्रातः घर की सफाई, स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त हो जाएँ।
* श्रीपर्गी वृक्ष की चौकी पर अथवा घर में ही किसी पवित्र स्थान पर पटिए पर सफेद वस्त्र फैलाकर उस पर प्रागपर (पूर्व से पश्चिम) तथा उदगपर (उत्तर से दक्षिण) गंध से बारह-बारह रेखाएँ बनाकर व्यासपीठ बनाएँ
* तत्पश्चात 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये' मंत्र से संकल्प करें।
* इसके बाद दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ें।
* अब ब्रह्माजी, व्यासजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम मंत्र से पूजा, आवाहन आदि करें।
* फिर अपने गुरु अथवा उनके चित्र की पूजा कर उन्हें दक्षिणा दें

गुरु पूर्णिमा के दिन क्या करे

* इस दिन केवल गुरु (शिक्षक) ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा का विधान है।
* इस दिन वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर गुरु को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए क्योंकि गुरु का आशीर्वाद ही विद्यार्थी के लिए कल्याणकारी तथा ज्ञानवर्द्धक होता है।
* व्यासजी द्वारा रचे हुए ग्रंथों का अध्ययन-मनन करके उनके उपदेशों पर आचरण करना चाहिए।
* यह पर्व श्रद्धा से मनाना चाहिए, अंधविश्वासों के आधार पर नहीं।

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