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जानें तिथि से त्योहार का महत्व

हमें फॉलो करें जानें तिथि से त्योहार का महत्व
- नरेन्द्र देवांग

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हमारे पर्व-त्योहार हिन्दी तिथियों के अनुसार ही होते हैं, इसके पीछे एक विशेष कारण है। पर्व-त्योहारों में किसी विशेष देवता की पूजा की जाती है। अतः स्वाभाविक है कि वे जिस तिथि के अधिपति हों, उसी तिथि में उनकी पूजा हो। यही कारण है कि उस विशेष तिथि को ही उस विशिष्ट देवता की पूजा की जाए। तिथियों के स्वामी संबंधी वर्णन निम्न है :

1 प्रतिपदा- अग्नयादि देवों का उत्थान पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को होता है। अग्नि से संबंधित कुछ और विशेष पर्व प्रतिपदा को ही होते हैं।

2 द्वितीया- प्रजापति का व्रत प्रजापति द्वितीया इसी तिथि को होता है।

3 तृतीया- चूँकि गौरी इसकी स्वामिनी है, अतः उनका सबसे महत्वपूर्ण व्रत हरितालिका तीज भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही महिलाएँ करती हैं।
  हमारे पर्व-त्योहार हिन्दी तिथियों के अनुसार ही होते हैं, इसके पीछे एक विशेष कारण है। पर्व-त्योहारों में किसी विशेष देवता की पूजा की जाती है। अतः स्वाभाविक है कि वे जिस तिथि के अधिपति हों, उसी तिथि में उनकी पूजा हो।      


4 चतुर्थी- गणेश या विनायक चतुर्थी सर्वत्र विख्यात है। यह इसलिए चतुर्थी को ही होती है, क्योंकि चतुर्थी के देवता गणेश हैं।

5 पंचमी- पंचमी के देवता नाग हैं, अतः श्रावण में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की दोनों चतुर्थी को नागों तथा मनसा (नागों की माता) की पूजा होती है।

6 षष्ठी- स्वामी कार्तिक की पूजा षष्ठी को होती है।

7 सप्तमी- देश-विदेश में मनाया जाने वाला सर्वप्रिय त्योहार प्रतिहार षष्ठी व्रत (डालाछठ) यद्यपि षष्ठी और स्वामी दोनों दिन मनाया जाता है, किंतु इसकी प्रधान पूजा (और उदयकालीन सूर्यार्घदान) सप्तमी में ही किया जाता है। छठ पर्व के निर्णय में सप्तमी प्रधान होती है और षष्ठी गौण। यहाँ ज्ञातव्य है कि सप्तमी के देवता सूर्य हैं।

वस्तुतः सायंकालीन अर्घ्य में हम सूर्य के तेजपुंज (सविता) की आराधना करते हैं, जिन्हें 'छठमाई' के नाम से संबोधित करके उन्हें प्रातःकालीन अर्घ्य ग्रहण करने के लिए निमंत्रित किया जाता है, जिसे ग्रामीण अंचलों में 'न्योतन' कहा जाता है, पुनः प्रातःकालीन सूर्य को 'दीनानाथ' से संबोधित किया जाता है।

यहाँ ज्ञातव्य है कि एक ही सूर्य के दो रूपों की पूजा सायं और प्रातः होती है, किंतु सायंकाल में दीनानाथ नहीं वरन छठमाई कहा जाता है, जबकि प्रातःकाल में छठमाई नहीं वरन दीनानाथया सूरजदेव ही कहा जाता है।

8 अष्टमी- यद्यपि अष्टमी के देवता शिव हैं, किंतु इस दिन शिव की बजाय बहुत से देवी-देवताओं की पूजा होती है। अष्टमी के पर्व यथा कालभैरवाष्टमी, दुर्गाष्टमी, शीतलाष्टमी, कृष्णाष्टमी, राधाष्टमी इत्यादि।

9 नवमी- नवमी की स्वामिनी दुर्गा ही हैं। अतः दुर्गा का महान पर्व नवरात्रि एवं महानवमी नवमी को ही संपन्ना होता है।

10 दशमी- इसके अधिपति यमराज हैं। अतः इनकी पूजा दशमी को विहित है। जहाँ तक यम द्वितीया का प्रश्न है तो वह विशेषकर चित्रगुप्त पूजा का दिन है और भ्रातृ द्वितीया का। वास्तव में वह भ्रातृ पूजा का दिन है, क्योंकि उस दिन यमराज की बजाय भाई की पूजा की जाती है और भगिनी (बहन) के यहाँ भोजन किया जाता है। यमराज वस्तुतः इसमें प्रतीक रूप से जुड़े हैं, क्योंकि यमुना ने उनकी पूजा भ्रातृ-रूप में की थी।

11 एकादशी- एकादशी के स्वामी विष्णु हैं। अतः उनकी पूजा एकादशी को होती है।

12 द्वादशी- द्वादशी के अधिपति भी विष्णु हैं, किंतु इसमें उनके विभिन्न अवतारों के रूपों की पूजा होती है। जैसे वामन-द्वादशी, नृसिंह द्वादशी आदि।

13 त्रयोदशी- त्रयोदशी के वैसे स्वामी तो कामदेव हैं, किंतु उनके नष्ट हो जाने और उन पर विजयी होने के कारण शिव को कामेश भी कहा जाता है और संभवतः इसी कारण त्रयोदशी को प्रदोष एवं शिवरात्रि व्रत होता है, जो शिव की प्रधान पूजा है।

14 चतुर्दशी- चतुर्दशी का अधिपति यद्यपि शिव को माना गया है, किंतु इस तिथि को भी विविध देवताओं की पूजा होती है। जैसे महालक्ष्मी, महाकाली पूजन, शिव-पार्वती पूजन, नृसिंहादि चतुर्दशी, बैकुंठ चतुर्दशी, हनुमत चतुर्दशी आदि, किंतु शिव पूजा के लिए चतुर्दशी को सर्वाधिक उपयुक्त माना है।

15 अमावस्या, पूर्णिमा- चंद्रमा और चंद्रलोकवासी पितरों की पूजा के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है।

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