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मलमास में मोक्ष की कामना

- राघवेन्द्र नारायण मिश्र

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सर्वोत्तम मास यानी मलमास। इस माह में किसी शुभ काम की शुरुआत तो नहीं होती लेकिन धर्म-कर्म के लिए इस महीने को उत्तम माना गया है। हर मलमास में राजगीर भारतीय संस्कृति की रंगबिरंगी झलक का गवाह बनता है।

मगध साम्राज्य की प्राचीन राजधानी में ज्योतिष गणना और पौराणिक महत्व के आधार पर हर ढाई साल पर पवित्र नदियों तथा गर्म जलकुंडों के तट पर एकत्र होकर लाखों श्रद्धालु ऐसा विविधवर्णी और बहुआयामी चित्र प्रस्तुत करते हैं, जिसमें जाति-धर्म और रंगभेद की भावना मिटती दिखती है।

भारतीय जीवन परंपरा में त्याग के साथ भोग की बात की गई है। 'मृत्योर्मा अमृतम्‌ गमय' का संदेश देने वाला सर्वोत्तम मास तो आदि काल से मनोकामना प्राप्ति का साधन रहा है। सांसारिक कर्मों में उलझे साधारण व्यक्ति के लिए सामान्यतया यह संभव नहीं होता है कि यह हठयोग की साधना करे, लिहाजा मलमास में राजगीर की ओर खिंचे चले आते हैं।

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भारतीय ज्योतिष गणनाओं के आधार पर मलमास अधिक मास या तेरहवें मास के रूप में वर्णित है। सूर्य 12 राशियों में साल भर भ्रमण करते हैं, इसी क्रम में 32 महीना 16 दिन 4 घड़ी के बाद सूर्य की कोई संक्रांति नहीं होती है। जिस माह में सूर्य की संक्रांति नहीं होती है वह मलमास, अधिक मास कहलाता है।

मान्यता है कि मलमास का वर्ष 396 दिन का होता है, जबकि अन्य वर्ष 365 दिन 5 घंटे 45 मिनट और 12 सैकंड का होता है। धर्माचार्यों के अनुसार भारत में मलमास में केवल राजगीर ही पवित्र रहता है इसीलिए इस अवधि में राजगीर में तैंतीस कोटिदेवी-देवता निवास करते हैं।

इस अवधि में शादी-विवाह, मुंडन, उपनयन आदि को छोड़कर सभी तरह के शुभ कार्य केवल राजगीर में ही होते हैं। देवी भागवत में ऐसा वर्णन आया है कि मलमास में जो व्यक्ति धार्मिक नियमों का पालन करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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