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श्री गुरु-पादुका पूजन पद्धति

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- डॉ. मनस्वी श्रीविद्यालंकार
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ब्रह्म-मुहूर्त में निद्रा त्यागकर, शौच, दंतधावन, स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर शुद्ध वस्त्र पहनें।

जिस कक्ष में गुरु पादुका स्थापित हो (अथवा पादुका का पूजन करना हो) उस कक्ष में प्रवेश के पूर्व प्रवेश द्वार पर निम्न तीन मंत्रों से पृथक-पृथक द्वार देवता को प्रणाम करें-

(1) द्वार देवता प्रणाम-
दाहिने भाग पर - ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं भद्रकाल्यै नमः
बाएँ भाग पर - ॐ ऐं ह्रीं श्रीं भैरवाय नमः
उर्ध्व भाग पर - ॐ ऐं ह्रीं श्रीं लम्बोदराय नम:

(द्वार देवताओं को प्रणाम करने के पश्चात देहरी को प्रणाम करके पूजा कक्ष में प्रवेश करें)

विशेष- पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन सामग्री को विधिवत जमा लेना चाहिए। पूजन सामग्री को रखने का क्रम निश्चित होता है- यह ध्यान रहे।

पूजा लाल ऊनी अथवा कुशा के आसन पर बैठकर करें।
दिन में पूर्व की तरफ मुँह करके बैठें, रात्रि में उत्तर दिशा में मुँह करके बैठें।

(2) पवित्रीकरण- आसन पर बैठकर दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न विनियोग बोलें-

ॐ अपवित्रः पवित्रोवेत्यस्य वामदेव ऋषिं।
गायत्री छंदः विष्णु देवता पवित्र करणे विनियोगः॥ (जल छो़ड़ दें)

पुनः बाएँ हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलते हुए स्वयं व पूजा सामग्री पर जल छिड़कें-

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थाम गतो अपिवा।
यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं सः बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥

(3) आचमन- दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न तीन मंत्र बोलते हुए पृथक-पृथक आचमन करें-

ॐ ऐं आत्मतच्वम्‌ शोधयामि स्वाहा। (आचमन करें)
ॐ ह्रीं विद्यातच्वम्‌ शोधयामि स्वाहा। (आचमन करें)
ॐ श्रीं शिवतच्वम्‌ शोधयामि स्वाहा (आचमन करें)

निम्न मंत्र से हाथ धो लें-

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सर्वतच्वं शोधयामि स्वाहा हस्तं प्रक्षालयामि

(4) ग्रंथिबंधन व तिलक- निम्न मंत्र बोलते हुए कुंकु अथवा चंदन से दाहिने हाथ की अनामिका से अपने भाल (मस्तक) पर तीन बार टीका (तिलक) लगाएँ-

ॐ यं यं स्पर्शयामि हस्ताभ्याम यं यं पश्यामि चक्षुषा।
स एव दासतां यातु यदि शक्र समोभवेत्‌

अब शिखा पर अनामिका उँगली से स्पर्श कर बोलें-

गणाधिप नमस्कृत्य उमालक्ष्मी सरस्वतीम्‌।
दंपत्योर रक्षणार्थाय पर ग्रंथि करोम्यहम्‌॥

(5) आसन पूजा- हाथ में जल लेकर निम्न विनियोग बोलें-

ॐ पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः सूतलं छन्दः कूर्मो देवता आसने विनियोगः। (जल छोड़ दें)
बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से आसन पर जल छींटें-

पृथ्वी त्वया घृता लोका देवी त्वं विष्णुना घृता।
त्वं च धारय माम्‌ देवि पवित्रं कुरु च आसनम्‌॥

दाहिने हाथ की अनामिका से बिन्दु त्रिकोण वृत्त व चतुष्कोण बनाकर कुंकु इत्यादि से पूजन निम्न मंत्र बोलते हुए करें-

ॐ कूर्मासनाय नमः
ॐ योगासनाय नमः
ॐ अनंतासनाय नमः
ॐ विमालसनाय नमः
ॐ आत्मासनाय नमः
ॐ परमासनाय नमः

(6) दीपक पूजन- दीपक प्रज्वलित करें, हाथ धो लें एवं निम्न मंत्र से दीप पूजन करें-

दीप देवी महादेवि शुभं भवतु मे सदा।
यावत्पूजा समाप्तिः स्यातावत्‌ प्रज्ज्वल सुस्थिरः॥

(7) गुरु मंडल ध्यानं- गुरुमंडल का ध्यान करे

श्री नाथादि गुरुत्रयं गणपतिं पीठत्रयं भैरवम्‌।
सिद्धौघ वटुकत्रयं पदयुगं दूतीक्रमं मण्डलम्‌॥

वीरनष्ट चतुष्कषष्ठी नवकमं वीरावलि पंचकम्‌।
श्री मन्मालिनी मंत्रराज सहित वन्दे गुरु मण्डलम्‌॥

श्री गुरु शक्त्यै नमः। श्री गुरु नाथाय नमः। श्री गुरु शिष्य मंडत्यै नमः।

(8) स्वस्तिवाचन-

ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पुषा विश्ववेदाः।
स्वस्तिनस्तार्क्ष्योऽरिष्ट्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥

द्यौः शान्तिः। अंतरिक्ष गुं शान्तिः। पृथिवी शान्तिरापः शान्तिः। औषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्ति र्विश्वे देवाः। शान्तिर्ब्रम्ह शान्तिः सर्व गुं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि

यतो यतः समिहसै ततो न अभयं कुरु।
शन्नः कुरु प्प्रजोभ्योऽभयं नः पशुभ्यः॥

स्वस्ति मित्रावरुणा स्वस्ति पथ्ये रेवति।
स्वस्ति न इंद्राश्च अग्निश्च स्वस्ति नो अदिति कृधि॥

स्वस्ति पंथामनुचरेम सूर्या चंद्रमसाविव॥
पुनदर्दता घ्रता जानता संग मेमहि॥

(9) गणपति ध्यानं- गणपति का ध्यान करें

नमस्ते गणनाथाय गणानाम्‌ पतये नमः।
भक्तिप्रियाय देवेश भक्तेभ्यः सुखदायकः॥

स्वानंदवासिने तुभ्यं सिद्धिबुद्धिवराय च।
नाभिशेषाय देवाय ढुण्ढिराजाय वे नमः॥

वरदाभयहस्ताय नमः परशुधारिणे।
नमस्ते सृणिहस्ताय नाभि शेषाय ते नमः॥

अनामयाय सर्वाय सर्व पूज्याय ते नमः।
सगुणाय नमस्तुभ्यं ब्रह्मणे निर्गुणाय च॥

ब्रह्मभ्यो ब्रह्मदात्रे च गजानन नमोस्तुते।
आदिपूज्याय ज्येष्ठाय ज्येष्ठराजाय ते नमः॥

मात्रे पित्रे च सर्वेषां हेरम्बाय नमो नमः।
अनादये च विघ्नेश विघ्नकर्ते नमो नमः॥

विघ्न हर्त्रे स्वभक्तानां लम्बोदर नमोस्तुते।
त्वदीय भक्ति योगेन योगिशाः शान्तिमागताः॥

किं स्तुवो योगरूपं तं प्रणमावंच विघ्नपम्‌।
तेन तुष्टो भव स्वामित्रि त्युक्त्वा तं प्रणेमतु॥

गणाधिप नमस्तुभ्यं सर्व विघ्न प्रशांतिद।
उमानन्द प्रद प्राज्ञ त्राहिमां भवसागरात्‌॥

हरानन्दकर ध्यान ज्ञान विज्ञानद प्रभौ।
विघ्नराज नमस्तुभ्यं सर्वदैत्यक सूदन॥

सर्व प्रीतिप्रद श्रीद सर्वयज्ञैक रक्षक।
सर्वाभीष्ट प्रद प्रीत्या नमामि त्वां गणाधिप॥
(गणेशजी को नमस्कार करें)

श्री गुरु-पादुका पूजन पद्धति

(10) संकल्प- हाथ में जल, अक्षत, पुष्प, द्रव्य लेकर निम्न संकल्प बोलें-

शुभ शोभने शुभ मुहूर्ते, आद्यब्रह्मणः द्वितीय परार्धे,
श्रीश्वेतवराहकल्पे, वैवस्वत मन्वंतरे, अष्टाविंशतितमे,
कलियुगे, प्रथमपादे, जम्बूद्वीपे, भारतवर्षे भरतखण्डे,
मेरोर्दक्षिणे पार्श्वे, शकाब्दे अस्मिन्‌ वर्तमाने व्यावहारिके

प्रभवादि षष्टिसंवत्सराणां मध्ये (...अमुक...) नाम संवत्सरे (...अमुक...) अयने, (...अमुक...) ऋतो (...अमुक...) मासे (...अमुक...) पक्षे (...अमुक...) शुभतिथौ (...अमुक...)

वासरयुक्तायां (...अमुक...) नक्षत्रायां (...अमुक..) शुभयोगे (...अमुक...) शुभ करणे (...अमुक...) राशि स्थिते चंद्रे (...अमुक...) राशि स्थिते सूर्ये (...अमुक...) राशि स्थिते देवगुरौ शैषेषु ग्रहेषु यथा यथा राशि स्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणगण विशेषण विशिष्ठायां अस्यां (...अमुक...) शुभतिथौ

ममोपात्त समस्त दुरितयक्षय द्वारा श्रीपरमेश्वर-स्वरूप
गुरुदेवता प्रीत्यर्थ अस्माकं क्षेमस्थैर्य-वीर्यविजय-

आयुरारोग्य-ऐश्वर्याभिवृद्धयै समस्त मंगलावाप्त्यर्थं समस्त दुरितोप शान्त्यर्थं श्री गुरुपादुका पूजनमहं किरष्ये। तत्रादौ निर्विघ्नता सिद्धयर्थ गणेशाम्बिकयोः पूजनं चकरिष्ये।
(संकल्प का जल एक पात्र में छोड़ दें)

(11) श्रीगणेश पूजन- श्रीगणेश पूजन हेतु एक सुपारी पर लाल रोली (नाड़े) को लपेटकर पूजा के पाटे पर रखें एवं वहाँ पर भावना करें कि श्रीगणेश विद्यमान हैं। हाथ में कुंकु, अक्षत, अबीर, गुलाल एवं पुष्प लेकर निम्न मंत्र बोलते हुए पूजन करें-

ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कविनामुपम श्रवस्तमम्‌।
ज्येष्ठ राजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः श्रृण्वत्रूतिमिः सीद सादनम्‌॥

नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्च वो नमो नमो,
नमो गृत्सेभ्यो गृत्सपतिभ्यश्च वो नमो नमो,
विरुपेभ्यो विश्वरूपेभ्यश्च वो नमः॥

नमो नमस्ते परमार्थरूप नमो नमस्ते अखिल करणाय।
नमो नमस्ते अखिलकारकाय सर्वेन्द्रियाणा मधिवासि ने पि॥

नमो नमो भूतमयाय तेअस्तु नमो नमो भूतकृते सुरेश।
नमो नमः सर्वधियां प्रबोध नमो नमो विश्वलयोद्भवाय॥

नमो नमो विश्वभूते अखिलेश नमो नमः कारण कारणाय।
नमो नमो वेदविदाम दृश्य नमो नमः सर्व वरप्रदाय॥

नमो नमो वागविचार भूत नमो नमो विघ्नविवारणाय॥
(गणेशजी को नमस्कार करें)

निम्नांकित मंत्रों से मानस पूजा करें-

लं पृथ्व्यात्मकं गंधम्‌ अनुकल्पयामि।
हं आकाशात्मकं पुष्पं अनुकल्पयामि।
यं वायव्यात्मकं धूपं अनुकल्पयामि।
रं तेजसात्मक दीपं अनुकल्पयामि।
वं अमृतात्मकं नैवेद्यम्‌ अनुकल्पयामि।
सं सर्वात्मक सर्वोपचारं अनुकल्पयामि।

(12) श्री अम्बिका पूजन- हाथ में पुनः गंध, अक्षत, पुष्प लेकर भगवती अम्बिका का पूजन (जहाँ श्री गणेश पूजन किया, उसी सुपारी पर) करें-

नमो दैव्ये महादैव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायैः नियताः प्रणतः स्मताम्‌॥

ज्ञानीनांऽपी चेतान्सी देवी भगवती हि सा।
बलादा कृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥

सर्व मंगल मांगल्यै शिवे सर्वार्थ साधिके॥
शरण्यै त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥

शरणागत दीनार्थ परित्राण परायणे।
सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोस्तु ते॥

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्यस्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते॥

जय नारायणि नमोस्तु ते, जय नारायणि नमोस्तुते।
जय नारायणि नमोस्तु ते, जय नारायणि नमोस्तुते॥

या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तयै नमस्तयै नमस्तयै नमो नमः॥

ॐ अम्बे अम्बिके अम्बालिके नमा नयति कश्चन।
ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पील वासिनीम्‌॥
(भगवती अम्बिका को प्रणाम करें)

निम्न मंत्रों से मानस पूजा करें-

लं पृथ्व्यात्मकं गंधम्‌ अनुकल्पयामि।
हं आकाशात्मकं पुष्पं अनुकल्पयामि।
यं वायव्यात्मकं धूपं अनुकल्पयामि।
रं अग्न्यात्मकं दीपं अनुकल्पयामि।
वं अमृतात्मकं नैवेद्यं अनुकल्पयामि।
सं सर्वात्मक ताम्बूलादि अनुकल्पयामि।

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