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सद्‍कर्मों से प्रसन्न करें शनि को

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सूर्य देव के पुत्र शनि बचपन से लेकर युवावस्था तक बहुत क्रोध किया करते थे, लेकिन बाद में इन्हीं को न्याय के सिंहासन पर बैठा दिया गया। शनि मनुष्यों के सद्‍कर्मों का अच्छा फल देने में कोई कमी नहीं करते, वहीं अगर कर्म बुरे हों तो उनका वही क्रोध सामने आ जाता है। शनि की साढ़ेसाती सभी के जीवन में एक बार जरूर आती है। इसके नाम से ही कुछ लोग भयभीत हो जाते हैं, लेकिन इससे डरने की कोई जरूरत ही नहीं है। सद्‍कर्म करने वालों के लिए साढ़ेसाती अच्छी भी होती है।

सद्‍कर्मों से प्रसन्न करें शनि को :- भगवान सूर्य और देवी छाया के पुत्र शनि से लोग भयभीत रहते हैं। सच तो ये है कि उनसे डरने का कोई कारण ही नहीं है। अगर सद्‍कर्म की राह पर चलें तो शनि की साढ़ेसाती भी लाभ ही प्रदान करती है। विद्वान ज्योतिषियों की मानें तो शनि सभी व्यक्तियों के लिए कष्टकारी नहीं होते हैं। शनि की दशा के दौरान बहुत से लोगों को उम्मीद से ज्यादा लाभ मिलता है। हालाँकि कुछ लोगों को कष्ट का सामना भी करना पड़ता है। शनि का प्रभाव लोगों पर उनकी राशि, कुंडली में वर्तमान विभिन्न तत्वों व कर्म पर निर्भर करता है। शनि किसी के लिए सुखकारी और किसी को मिश्रित फल देता है।
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कैसे हैं शनि :- साढ़ेसाती के प्रभाव के लिए कुंडली में लग्न व लग्नेश की स्थिति के साथ ही शनि और चंद्र की स्थिति पर भी विचार किया जाता है। शनि की दशा के समय चंद्रमा की स्थिति बहुत मायने रखती है। चंद्रमा अगर ‍उच्च राशि का होता है तो आपमें अधिक सहनशक्ति आ जाती है। कार्यक्षमता बढ़ जाती है जबकि कमजोर व नीच का चंद्र सहनशीलता को कम कर देता है, जिससे काम में मन नहीं लगता है।

तो नहीं पहुँचाएँगे नुकसान :- अगर आपका लग्न वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर अथवा कुंभ है तो शनि आपको नुकसान नहीं पहुँचाते हैं। और तो और वे आपका सहयोग करते हैं। इनके अलावा जो भी लग्न हैं, उनमें जन्म लेने वाले व्यक्ति को शनि के कुप्रभाव का सामना करना पड़ता है। शनि जब देव हाथी पर चढ़कर व्यक्ति के जीवन में प्रवेश करते हैं तो उसे धन की प्राप्ति होती है। दूसरी ओर जब गधे पर आते हैं तो अपमान और कष्ट उठाना पड़ता है।

शनिवार व्रत की विधि :- प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की प्रतिमा का विधि से पूजन करना चाहिए। शनि भक्तों को इस दिन शनि मंदिर में जाकर शनि देव को नीले लाजवंती के फूल, तिल, तेल, गुड़ अर्पित करने चाहिए। शनि देव के नाम से दीपोत्सर्ग करना चाहिए। पूजा के बाद उनसे अपने अपराधों व जाने-अनजाने जो भी पाप हुए हों, उसके लिए क्षमा माँगें। इनकी पूजा के बाद राहु और केतु की पूजा भी करना चाहिए। इस दिन शनि भक्तों को पीपल में जल चढ़ाना चाहिए और सूत बाँधकर सात बार परिक्रमा करना चाहिए।

शाम को शनि मंदिर में जाकर दीप भेंट करना चाहिए और उड़द दाल में खिचड़ी बनाकर शनि महाराज को भोग लगाना चाहिए। काली चींटियों को गुड़ व आटा देना चाहिए। इस दिन काले रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए। श्रद्धा से व्रत करने से शनि का कोप शांत होता है।

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