Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

सूर्य आराधना का पर्व छठ

हमें फॉलो करें सूर्य आराधना का पर्व छठ
ND
ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत सूर्य है। इस कारण हिन्दू शास्त्रों में सूर्य को भगवान मानते हैं। सूर्य के बिना कुछ दिन रहने की जरा कल्पना कीजिए। संभव है क्या...? जीवन के लिए इनका रोज उदित होना जरूरी है। कुछ इसी तरह की परिकल्पना के साथ पूर्वोत्तर भारत के लोग छठ महोत्सव के रूप में इनकी आराधना करते हैं।

माना जाता है कि छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती रही है। छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। महाभारत में सूर्य पूजा का एक और वर्णन मिलता है।

यह भी कहा जाता है कि पांडवों की पत्नी द्रौपदी अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं। इसका सबसे प्रमुख गीत
'केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मे़ड़राय
काँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए' है।

webdunia
ND
दीपावली के छठे दिन से शुरू होने वाला छठ का पर्व चार दिनों तक चलता है। इन चारों दिन श्रद्धालु भगवान सूर्य की आराधना करके वर्षभर सुखी, स्वस्थ और निरोगी होने की कामना करते हैं। चार दिनों के इस पर्व के पहले दिन घर की साफ-सफाई की जाती है।

वैसे तो छठ महोत्सव को लेकर तरह-तरह की मान्यताएँ प्रचलित हैं, लेकिन इन सबमें प्रमुख है साक्षात भगवान का स्वरूप। सूर्य से आँखें मिलाने की कोशिश भी कोई नहीं कर सकता। ऐसे में इनके कोप से बचने के लिए छठ के दौरान काफी सावधानी बरती जाती है। इस त्योहार में पवित्रता का सर्वाधिक ध्यान रखा जाता है।

इस अवसर पर छठी माता का पूजन होता है। मान्यता है कि पूजा के दौरान कोई भी मन्नत माँगी जाए, पूरी होती। जिनकी मन्नत पूरी होती है, वे अपने वादे अनुसार पूजा करते हैं। पूजा स्थलों पर लोट लगाकर आते लोगों को देखा जा सकता है।

कहा जाता है कि गंगा या अन्य पवित्र नदियों में डुबकी लगाकर वहाँ से पानी लाकर घर में छिड़काव किया जाता है। दूसरे दिन श्रद्धालु पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को घर पर पूजा के बाद उपवास तोड़ते हैं। इस दिन भगवान को पूरी, चावल की खीर, केले आदि का भोग लगाकर रिश्तेदारों में प्रसाद बाँटा जाता है। तीसरे दिन शाम को नदी के किनारे या तालाब पर जाकर पानी में कमर तक ख़ड़े होकर अस्त होते सूर्य की पूजा कर अर्घ्य दिया जाता है।

रात के समय श्रद्धालु घर पर अपने परिजनों, रिश्तेदारों और मित्रों के साथ अग्निदेव की पूजा करते हैं। इसके लिए गन्ने का मंडप बनाया जाता है। दीपक सजाए जाते हैं। पर्व के चौथे और अंतिम दिन दोबारा नदी या तालाब के किनारे जाकर उगते सूर्य की पूजा कर अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन सूर्य देव को मिष्ठान्नों, पकवानों का भोग लगाकर श्रद्धालु अपना उपवास तो़ड़ते हैं।

मान्यतअनुसाभगवान भास्कर को सुबह और शाम अर्घ्य देते समय कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्य आराधना की जाती है। उसके बाद एक टोकरे में कई प्रकार के फल जैसे नारियल, सिंघाड़ा, केला वगैरह और अन्य मिष्ठान्न लेकर परिक्रमा की जाती है। टोकरे पर घी के दीपक लगाए जाते हैं।

इनमें छठ मैया का महत्वपूर्ण प्रसाद ठेकुआ भी होता है। यह गेहूँ के आटे में गु़ड़ या शक्कर मिलाकर बनाया जाता है। यह सब सामग्री प्रसाद के रूप में परिजनों में वितरित की जाती है। पूजा के दिन सात सुहागिनों को सिंदूर लगाया जाता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi