Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

अफीम की राजनीति और मनुहार का दौर

पट्टे बहाल करने की माँग पर अड़े उत्पादक

हमें फॉलो करें अफीम की राजनीति और मनुहार का दौर
जयपुर से कपिल भट्ट , सोमवार, 17 नवंबर 2008 (23:24 IST)
विधानसभा चुनावों के साथ ही राजस्थान में अफीम की राजनीति के साथ मनुहारें भी शुरू हो गई हैं। प्रदेश के कोटा संभाग के अफीम उत्पादक जिलों झालावाड़ और बाराँ के हजारों किसान आंदोलन पर उतर आए हैं। इनकी माँग है कि केंद्रीय नारकोटिक्स विभाग ने दो साल पहले जिन अफीम उत्पादक किसानों के पट्टे निरस्त किए थे, उन्हें तत्काल बहाल किया जाए।

किसानों का आरोप है कि नेता उनके हितों की लगातार अनदेखी कर रहे हैं। अपनी माँग के समर्थन में हजारों किसानों ने कोटा स्थित केंद्रीय नारकोटिक्स विभाग के उपायुक्त कार्यालय के बाहर रविवार से अनिश्चितकालीन पड़ाव डाल रखा है।

राजस्थान में अफीम उत्पादन के क्षेत्र में चित्तौड़गढ़, झालावाड़ और बाराँ जिले प्रमुख हैं। यहाँ की राजनीति पर अफीम उत्पादकों की लॉबी का गहरा प्रभाव है। पिछले कुछ साल अफीम उत्पादकों के लिए अच्छे नहीं गुजरे। उन्हें ओलावृष्टि के कारण बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है।

दो साल पहले ओलावृष्टि के कारण इन जिलों के किसानों की करीब 70 फीसदी फसल नष्ट हो गई। इस कारण वे तय मात्रा में एक हेक्टेयर में 56 किलो अफीम पैदा कर नारकोटिक्स विभाग को नहीं दे सके। इस कारण नारकोटिक्स विभाग ने इन दोनों जिलों के करीब दस हजार किसानों के अफीम के पट्टे निरस्त कर दिए।

अफीम उत्पादन संघर्ष समिति से जुड़े गैरसरकारी संगठन एकता परिषद के सौरभ जैन कहते हैं कलेक्टरों ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा था कि ओलावृष्टि की वजह से किसानों की 70 प्रतिशत फसल नष्ट हो गई है, लिहाजा वे तय मात्रा में अफीम नारकोटिक्स विभाग को देने में अक्षम हैं। फिर इतनी बड़ी तादाद में पट्टे निरस्त कर दिए गए। किसानों ने साफ कह दिया है कि पट्टों की बहाली से पहले नही उठेंगे।

उधर, पश्चिमी राजस्थान में चुनाव प्रचार में अफीम की मनुहारों का सिलसिला शुरू हो गया है। जिस गाँव अथवा ढाणी में भी लोग चुनावों के सिलसिले में जुटते हैं, वहाँ पानी में घोली हुई अफीम सभी को पेश की जा रही है।

आरोप है कि ऐसी ही एक मनुहार बाड़मेर में पिछले दिनों हुई, जहाँ कांग्रेस के एक दिग्गज नेता के निवास पर शनिवार को पानी में घोली गई अफीम नेताजी के समर्थकों को पेश की गई।

पाकिस्तान की सीमा से लगते थार के मरुस्थल से अफीम का नाता सदियों पुराना है। इस मरुभूमि के मुख्यतः दो जिलों जैसलमेर और बाड़मेर में मौका चाहे खुशी का हो या गम का, वहाँ मौजूद बिरादरी को अफीम की घोल पेश करना सामाजिक दस्तूर है। इसे स्थानीय भाषा में रियाण कहते हैं। कुछ समय पहले भाजपा के दिग्गज नेता जसवंतसिंह के निवास पर हुई ऐसी ही रियाण का मामला खूब गर्माया था।

अफीम का सेवन यहाँ के जनजीवन में आम बात है। चुनावों के मौसम में तो यह आम दिनों के मुकाबले कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi