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रोम-रोम में राम रमैया
- अनिल त्रिवेदी
ॐ जय श्रीराम हरे, जय-जय श्रीराम हरे।रोम-रोम में राम रमैया रमते हैं हमरे॥ॐ॥परम-पवित्र, पतित-पावन प्रभु, पल में कष्ट हरे।दुसह-दुःख, दारिद्र, दीनता, रघुवर दूर करें॥ॐ॥रे मतिमंद, मूर्ख मन मोरे, काहे सोच करे।पशु-पक्षी, पाहन बिनुसाधन, राम-कृपा से तरे॥ॐ॥व्याकुल-शोकाकुल होने की, बात नहीं कुछ रे।सर्वशक्तिशाली, सर्वेश्वर, सदा संग तुमरे॥ॐ॥ दीन-हीन, अति पतित, अधम जन, कैसे भक्ति करे।तुम ही कृपा करो प्रभु तुमरा, नाम नहीं बिसरे॥ॐ॥श्वाँस-श्वाँस में राम-राम ही, पल-पल तू रट रे।क्रूर काल का कौन भरोसा, किस क्षण प्राण हरे॥ॐ।। राम दरस अति सुगम उसी को, जो शिव-भक्ति करे।शिव प्रसन्न करने के लिए मन, राम-राम रट रे॥ॐ॥सियाराममय देख जगत जो, सबहिं प्रणाम करे।ऐसे रामभक्त के घर प्रभु, सब धन-धान्य भरे॥ॐ॥ जनम-जनम के सत्कर्मों का, फल मानव तन रे।राम-भजन ही आवागमन से, मुक्ति का साधन रे॥ॐ॥सीय लखन हनुमंत सहित जो, प्रभु का ध्यान धरे।निज कर-कमलों से प्रभु उसको, भव से पार करें॥ॐ॥ अनुपम महिमा राम नाम की, वर्णन कौन करे।शेष-गणेश के संग महेश भी, राम-नाम सुमिरें॥ॐ॥ॐ जय श्रीराम हरे। जय-जय श्रीराम हरे॥रोम-रोम में राम रमैया रमते हैं हमरे॥