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इंसान को गुनाहों से दूर रखते हैं रोजे

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देश या समाज के हालात कितने भी बदल जाएं, मजहब कभी नहीं बदलता। मजहबी बातों की सच्चाई लोगों को सही रास्ता दिखाती है। रमजान के पवित्र महीने में रोजा रखना इंसान को गुनाहों से दूर करता है। इससे रूह को नई ताकत मिलती है। शरीर और आत्मा शुद्घ होती है।
 
व्यक्ति अल्लाह के नजदीक पहुंचता है। पवित्र रमजान के महीने में 15 साल से ज्यादा उम्र के हर इंसान को रोजा रखना जरूरी है। हां, बीमार लोगों, गर्भवती महिलाओं, बच्चों को दूध पिलाने वाली मांएं, सफर में चल रहे लोगों और ज्यादा बूढ़े लोगों को रोजा नहीं रखने की छूट है।
 
जो लोग रोजा रखते हैं उनसे अल्लाह खुश रहता है। इससे शरीर को नई ताकत मिलती है और रूह पवित्र हो जाती है। रोजा रखने से इंसान 'तकवा वाला' हो जाता है। इसका मतलब है कि व्यक्ति में अल्लाह के प्रति डर और समर्पण, उसके बताए रास्ते पर चलने की आदत, इबादत करने की चाहत और गुनाहों और बुराईयों से लड़ने की शक्ति आती है।
 
 
रोजा रखने वालों को हर बुराई से दूर रहना चाहिए। कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे रोजा जाया चला जाए। इसके लिए जरूरी है कि वह अपनी भावनाओं को काबू में रखे। 


 

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