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वन में प्रभु श्रीराम ने किए थे ये 7 कार्य

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अनिरुद्ध जोशी

, सोमवार, 24 फ़रवरी 2020 (15:11 IST)
भगवान श्रीराम जहां जहां गए वहां का एक अलग ही इतिहास और परंपरा बन गया। उन्होंने अपने जीवन में कई ऐसे कार्य किए जिनसे समाज, परिवार और जनता को लाभ मिला। आओ जानते हैं ऐसे ही कुछ कार्यों के बारें में।
 
 
1.आश्रमों को राक्षसी आतंक से मुक्ति दिलाई : प्रभु श्रीराम ने विश्‍वामित्र, अत्रि, अगस्त्य मुनि आदि ऋषियों जैसे कई ऋषियों के आश्रम को असुरों और राक्षसों के आतंक से मुक्त कराया था। इसके अलावा उन्होंने अपने 14 वर्ष के वनवान में कई राक्षसों और असुरों का वध किया।
 
 
2.दंडकारण्य में आदिवासियों और वनवासियों के बीच राम : ने भगवान राम को 14 वर्ष को वनवास हुए था। उनमें से 12 वर्ष उन्होंने जंगल में रहकर ही काटे। बाकी बचे दो वर्ष उन्होंने सीता माता को ढूंनने और अन्य कार्यों में लगाए। इस दौरान उन्होंने देश के सभी संतों के आश्रमों को बर्बर लोगों के आतंक से बचाया। अत्रि को राक्षसों से मुक्ति दिलाने के बाद प्रभु श्रीराम दंडकारण्य क्षेत्र में चले गए, जहां आदिवासियों की बहुलता थी। यहां के आदिवासियों को बाणासुर के अत्याचार से मुक्त कराने के बाद प्रभु श्रीराम 10 वर्षों तक आदिवासियों के बीच ही रहे।
 
 
वन में रहकर उन्होंने वनवासी और आदिवासियों को धनुष एवं बाण बनाना सिखाया, तन पर कपड़े पहनना सिखाया, गुफाओं का उपयोग रहने के लिए कैसे करें, ये बताया और धर्म के मार्ग पर चलकर अपने री‍ति-रिवाज कैसे संपन्न करें, यह भी बताया। उन्होंने आदिवासियों के बीच परिवार की धारणा का भी विकास किया और एक-दूसरे का सम्मान करना भी सिखाया। उन्हीं के कारण हमारे देश में आदिवासियों के कबीले नहीं, समुदाय होते हैं। उन्हीं के कारण ही देशभर के आदिवासियों के रीति-रिवाजों में समानता पाई जाती है। भगवान श्रीराम ने ही सर्वप्रथम भारत की सभी जातियों और संप्रदायों को एक सूत्र में बांधने का कार्य अपने वनवास के दौरान किया था। एक भारत का निर्माण कर उन्होंने सभी भारतीयों के साथ मिलकर अखंड भारत की स्थापना की थी। भारतीय राज्य तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, केरल, कर्नाटक सहित नेपाल, लाओस, कंपूचिया, मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, बाली, जावा, सुमात्रा और थाईलैंड आदि देशों की लोक-संस्कृति व ग्रंथों में आज भी राम इसीलिए जिंदा हैं।
 
 
3.सुग्रीव को राज्य दिलाया : हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने सुग्रीव की कथा सुनी और उन्होंने सुग्रीव को अपने क्रूर भाई वानर राज बालि के भय से मुक्त कराया। बालि ने अपनी शक्ति के बल पर दुदुंभी, मायावी और रावण को परास्त कर दिया था। बालि ने अपने भाई सुग्रीव की पत्नी को हड़पकर उसको बलपुर्वक अपने राज्य से बाहर निकाल दिया था। हनुमानजी ने सुग्रीव को प्रभु श्रीराम से मिलाया। सुग्रीव ने अपनी पीड़ा बताई और फिर श्रीराम ने बालि को छुपकर तब तीर से मार दिया जबकि बालि और सुग्रीव में मल्ल युद्ध चल रहा था। पौराणिक मान्यताओं अनुसार प्रभु ने त्रेता में राम के रूप में अवतार लेकर बाली को छुपकर तीर मारा था। कृष्णावतार के समय भगवान ने उसी बाली को जरा नामक बहेलिया बनाया और अपने लिए वैसी ही मृत्यु चुनी, जैसी बाली को दी थी।
 
 
4.सैन्य गठन : 12वें वर्ष की समाप्त के दौरान सीता का हरण हो गया तो बाद के 2 वर्ष उन्होंने सीता को ढूंढने, वानर सेना का गठन करने और रावण से युद्ध करने में गुजारे। इस दौरान उन्होंने वनवासी और आदिवासियों के अलावा निषाद, वानर, मतंग और रीछ समाज के लोगों को भी धर्म, कर्म और वेदों की शिक्षा देने के साथ ही एक बहुत बड़ी सेना का गठन किया। हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने वानर सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े।
 
 
5.शिवलिंग : महाकाव्‍य 'रामायण' के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है। शिवलिंग स्थापना के लिए उन्होंने महापंडित रावण को पुरोहित के रूप में बुलाया था।
 
 
6. सेतु बनवाया : इसके बाद प्रभु श्रीराम ने नल और नील के माध्यम से विश्व का पहला सेतु बनवाया था और वह भी समुद्र के ऊपर। आज उसे रामसेतु कहते हैं ज‍बकि राम ने इस सेतु का नाम नल सेतु रखा था।
 
 
7.हनुमान और जामवंत को वरदान : प्रभु श्रराम ने हनुमान और जामवंतजी को चिरंजीवी होने का वरदान दिया था। राम-रावण के युद्ध में जामवन्तजी रामसेना के सेनापति थे। युद्ध की समाप्त‌ि के बाद जब भगवान राम विदा होकर अयोध्या लौटने लगे तो जामवन्तजी ने उनसे कहा कि प्रभु इतना बड़ा युद्ध हुआ मगर मुझे पसीने की एक बूंद तक नहीं गिरी, तो उस समय प्रभु श्रीराम मुस्कुरा दिए और चुप रह गए। श्रीराम समझ गए कि जामवन्तजी के भीतर अहंकार प्रवेश कर गया है। जामवन्त ने कहा, प्रभु युद्ध में सबको लड़ने का अवसर मिला परंतु मुझे अपनी वीरता दिखाने का कोई अवसर नहीं मिला। मैं युद्ध में भाग नहीं ले सका और युद्ध करने की मेरी इच्छा मेरे मन में ही रह गई। उस समय भगवान ने जामवन्तजी से कहा, तुम्हारी ये इच्छा अवश्य पूर्ण होगी जब मैं अगला अवतार धारण करूंगा।
 
 
तब तक तुम इसी स्‍थान पर रहकर तपस्या करो। अंत में द्वापर युग में श्रीराम ने श्रीकृष्ण के रूप में उनसे युद्ध किया और उनका भयंकर तरीके से पसीने पहने लगा। अंत में जब वे हारने लगे तब उन्होंने मदद के लिए अपने प्रभु श्रीराम को पुकारा। श्रीराम को पुकारने के कारण श्रीकृष्ण को अपने राम रूप में आना पड़ा। यह देखकर जामवंतजी की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी और वे उनके चरणों में गिर पड़े।
 

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