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कश्मीर के उपनिवेश से आजादी चाहता है लद्दाख

-सुरेश एस डुग्गर

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लेह-लद्दाख (जम्मू कश्मीर)। 'फ्री लद्दाख फ्रॉम कश्मीर' (लद्दाख को कश्मीर से आजाद करो), 'टरूथ शैल प्रिवेल' (सच्चाई की विजय होगी)। यह स्‍टीकर हैं जो लेह में आपको हर स्थान पर मिलेंगें। हर घर के दरवाजे, दुकान के शटर, गाड़ियों के आगे-पीछे जहां कहीं भी थोड़ी-बहुत ऐसी जगह हो जहां पर आने वालों की नजरें जा सकती हों, वहां पर ये स्‍टीकर चिपके हुए मिलेंगें जो लद्दाख की मुक्ति कश्मीर से चाहते हैं, का संदेश देते हैं।

इतना ही नहीं हर लद्दाखी विशेषकर बौद्ध अपनी छातियों पर ‘लद्दाख को कश्मीर से मुक्त करो’ तथा ‘कश्मीर के उपनिवेशवाद के विरुद्ध लड़ना है’ जैसे बिल्लों को लगाने में अपना गौरव समझता है। यह आजादी की जंग की भावना उनमें कश्मीरी शासकों द्वारा लद्दाख के विरुद्ध अपनाई जाने वाली भेदभावभरी नीतिओं ने भरी है। लद्दाख का हर शख्स आरोप लगाता है कि कश्मीरी शासकों ने हमेशा ही उन्हें दबाने की कोशिश की है और साथ ही में उनका लगातार 67 वर्षों तक भरपूर शोषण किया है।

इन लद्दाखियों के बीच इस भावना को लेह में रहने वाले करीब 4000 विस्थापित तिब्बतियों ने भरा है जिन्होंने भी यहां पर 'तिब्बत की स्वाधीनता में भारत की सुरक्षा निहित है', 'जब तिब्बत आजाद था चीन से सीमा विवाद न था', 'तिब्बत चीन का कुवैत तथा तिब्बत में आत्मनिर्णय का अधिकार दिया जाए' जैसे पोस्टर चिपका रखे हैं।

इन लद्दाखियों का कहना है कि बौद्धों के इतिहास, संस्कृति की अनदेखी, उनके लोगों के धर्म परिवर्तन की जो मुहिम चलाई गई है तथा कारगिल जिले में बौद्धों के साथ सरकार ने जिस प्रकार की नीति अपनाई है उसके कारण ही बौद्ध ‘कश्मीर से मुक्ति चाहते हैं’। उनके अनुसार कश्मीरी शासकों ने लद्दाख का शोषण करने के लिए, आजादी से पहले जो संस्कृति तथा इतिहास लद्दाख था, उसको तबाह करने के लिए संविधान की धारा 370 का प्रयोग किया है।

उनका कहना है कि धारा 370 कश्मीरियों के अपने फायदे के लिए है। वे आरोप लगाते हैं कि राज्य के मुस्लिमों ने उन पर राज करने के अतिरिक्त उनकी कौम को तबाह करने के लिए उनकी लड़कियों के साथ शादी करनी आरंभ कर दी और हर साल वे करीब तीन सौ बौद्ध लड़कियों के साथ शादी करके उनका धर्म परिवर्तन करते रहे हैं जबकि वे अपनी लड़कियों के साथ शादी नहीं करने देते हैं।

लद्दाख बौद्ध संघ का कहना था कि अगर वे चाहते तो लद्दाख के साथ भेदभाव बरतने वाली नीति का समर्थन करने वाले मुस्लिमों को लद्दाख से बाहर निकाल सकते थे जिस प्रकार उन्होंने कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को निकाला था। बौद्ध राज्य सरकार पर इसके अतिरिक्त अन्य कई आरोप भी लगाते हैं। जैसे बौद्धों को नौकरियों में मुस्लिमों के मुकाबले कम स्थान दिया गया है। उनके अनुसार राज्य सरकार के तीन लाख कर्मचारियों में कुल 5900 बौद्ध हैं, बारह कॉर्पोरेट सेक्टरों में एक भी बौद्ध नहीं है, राज्य सचिवालय में मात्र दो लद्दाखी हैं जबकि पिछले पांच सालों के दौरान राज्य में होने वाली भर्ती में एक प्रतिशत बौद्धों को भी भर्ती नहीं किया गया।

वे यह भी आरोप लगाते हैं कि बौद्धों के मुकाबले मुस्लिमों को अप्रत्याशित तरक्की दी गई है। लद्दाखियों का कहना है कि भेदभाव वाली नीति की यही एक दास्तान नहीं है बल्कि इतनी कथाएं हैं जिनको अगर आरंभ किया जाता है तो वे खत्म होने को नहीं आएंगी। वे कारगिल जिले में बौद्धों के साथ भेदभाव बरतने का आरोप लगाते हुए कहते हैं कि वहां राज्य प्रशासन तथा मुस्लिम संघ के बीच सांठगांठ है जिस कारण बौद्धों को क्षति उठानी पड़ रही है।

लद्दाख बौद्ध संघ का आरोप है : 'अंत में यही निर्णय सामने आता है कि प्रशासन जिसकी लगाम मुस्लिमों के हाथों में है, जो संविधान की धारा 370 को हथियार बना राज्य के अन्य क्षेत्रों के साथ अपनी भेदभाव वाली नीति को हवा दे रहे हैं और जहां तक कि शिक्षा के मामलों में भी अन्य क्षेत्रों के लोगों को पीछे पछाड़ने की कोशिश में हैं ताकि कहीं वे लोग अधिक पढ़-लिखकर अपने साथ बरते जाने वाले भेदभाव के विरुद्ध आवाज नहीं उठा सकें।'

इन नजरअंदाज तथा भेदभाव वाली नीतिओं के चलते हुए कोई भी लद्दाखी कश्मीर के साथ एकजुट होकर नहीं रह सकता है। इन नीतिओं ने हमारे दिलों में विद्रोह की चिंगारी के बीज पैदा किए हैं और हमें कश्मीर के उपनिवेशवाद से लड़कर आजादी हासिल करनी है, यह कहना है, एक आम लद्दाखी का जिसके दिमाग में अब कश्मीरी शासकों की चालें समझ आई हैं।

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