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कुलपति के इस्तीफे पर असमंजस की स्थिति

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नई दिल्ली , मंगलवार, 24 जून 2014 (23:30 IST)
नई दिल्ली। दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) में चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम (एफवाईयूपी) जारी रखने के मुद्दे पर उस वक्त संकट और गहरा गया जब मंगलवार के दिन कुलपति दिनेश सिंह के इस्तीफे की खबरें आई। हालांकि, इस्तीफे की खबर की पुष्टि न होने से असमंजस की स्थिति बनी हुई है।

डीयू को एफवाईयूपी खत्म कर तीन वर्षीय स्नातक कार्यक्रम फिर से शुरू करने का फरमान जारी करने वाले विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से टकराव के बीच यूनिवर्सिटी के मीडिया समन्वयक मलय नीरव ने दोपहर के वक्त मीडियाकर्मियों को एक एसएमएस भेजा जिसमें लिखा था, ‘कुलपति ने इस्तीफा दे दिया है।’

संपर्क किए जाने पर मलय ने कहा, ‘मुझे सिर्फ इतना ही बताने के लिए कहा गया था । मेरे पास और जानकारी नहीं है।’ कुलपति के वास्तव में इस्तीफा न देने की खबरें आने के बाद से मलय से संपर्क नहीं हो सका है।

इस्तीफे की खबरें फैलने के बाद यूनिवर्सिटी कैंपस में छात्र और एफवाईयूपी का विरोध करने वाले शिक्षक ढोल-नगाड़े पर झूमे और आपस में मिठाइयां बांटी।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि उन्हें कोई इस्तीफा नहीं मिला है। मंत्रालय के अधिकारियों ने यूजीसी अधिकारियों से भी इस बाबत चर्चा जारी रखी कि एफवाईयूपी खत्म करने के यूजीसी के निर्देश के बाद पैदा हुए गतिरोध का हल कैसे निकाला जाए।

समयसीमा कल ही बीत जाने के बावजूद डीयू ने यूजीसी को अब तक यह नहीं बताया है कि तीन वर्षीय स्नातक कार्यक्रम फिर से शुरू करने के उसके आदेश पर क्या कार्रवाई की गई। कल दिल्ली यूनिवर्सिटी प्राचार्य संघ ने आज से शुरू होने वाली दाखिले की प्रक्रिया तब तक के लिए टालने का फैसला किया था जब तक इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट दिशानिर्देश जारी न कर दिया जाए।

पत्रकार-सामाजिक कार्यकर्ता एवं कुलपति की समर्थक मधु किश्वर ने दिनेश सिंह से मुलाकात के बाद दावा किया कि उन्हें मीडिया को यह बताने के लिए अधिकृत किया गया है कि सिंह ने इस्तीफा नहीं दिया है।

डीयू के प्रति-कुलपति सुधीश पचौरी ने कहा कि कुलपति ने पद से इस्तीफा नहीं दिया है। कुलपति के वकील ने भी यही बात कही। कुलपति दिनेश सिंह के वकील ने कहा कि वह यूजीसी के निर्देश को अदालत में चुनौती देंगे क्योंकि उसके पास किसी यूनिवर्सिटी को ‘नियंत्रित’ करने का अधिकार नहीं है।

वकील सूरज सिंह ने कहा कि डीयू की स्वायत्ता बचानी है क्योंकि यूजीसी का निर्देश गैर-कानूनी है। इससे पहले की खबरों में कहा गया था कि पिछले लगभग चार साल से डीयू के कुलपति का पद संभाल रहे सिंह ने यूनिवर्सिटी की स्वायत्ता कायम रखने की दुहाई देते हुए अपना पद छोड़ दिया है।

सिंह के इस्तीफे की खबरें ऐसे समय में आई जब एक दिन पहले ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस पूरे मामले से पल्ला झाड़ते हुए कहा था कि डीयू और यूजीसी इस मुद्दे को आपस में सुलझाएं।

दिल्ली यूनिवर्सिटी शिक्षक संघ (डूटा) की अध्यक्ष एवं यूजीसी की स्थाई समिति की सदस्य नंदिता नारायण ने यह कहते हुए कुलपति के फैसले का स्वागत किया कि उनके पास कोई और विकल्प भी नहीं बचा था।

नंदिता ने कहा, ‘उन्होंने पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार खो दिया था क्योंकि उनकी स्थिति ऐसी हो गई थी जिसका समर्थन नहीं किया जा सकता था।’ सिंह द्वारा दी गई डीयू की स्वायत्ता की दलीलें खारिज करते हुए नंदिता ने कहा कि यह फैसला करना यूजीसी का अधिकार है कि किसी डिग्री को मान्यता मिली है या नहीं और कोई भी कुलपति इस अधिकार को चुनौती नहीं दे सकता।

बहरहाल, डीयू की कार्यकारी परिषद के सदस्य ए एन मिश्रा ने कहा कि सिंह का इस्तीफा दुर्भाग्यपूर्ण है। गौरतलब है कि मिश्रा कुलपति दिनेश सिंह और एफवाईयूपी के पुरजोर समर्थक रहे हैं।

मिश्रा ने कहा, ‘यूनिवर्सिटी की स्वायत्ता का बचाव करने के कारण कुलपति को ऐसा फैसला करने पर मजबूर होना पड़ा। यह यूनिवर्सिटी के पतन की शुरूआत है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसी को यूनिवर्सिटी की स्वायत्ता के संरक्षण के कारण इस्तीफा देना पड़े।’ उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी की शैक्षणिक स्वतंत्रता के संरक्षण के लिए उनकी लड़ाई जारी रहेगी।

मधु किश्वर ने दिनेश सिंह का समर्थन करते हुए कहा कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय सिंह पर पद से इस्तीफा देने का दबाव डाल रहा था। सिंह से मुलाकात के बाद किश्वर ने दावा किया कि कुलपति ने उन्हें मीडिया को यह बताने के लिए अधिकृत किया है कि उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वघोषित प्रशंसक किश्वर ने कहा कि यूनिवर्सिटी में जो कुछ भी हो रहा है वह नई सरकार पर सबसे बड़ा धब्बा होगा।

इस्तीफे का स्वागत करते हुए डीयू छात्र संघ के अध्यक्ष अमन अवाना ने कहा कि कुलपति ने एफवाईयूपी को व्यक्तिगत मुद्दा बना लिया था और इस पर अड़ियल रवैया अपना लिया था। अमन ने कहा कि कुलपति को तीन वर्षीय स्नातक कार्यक्रम फिर से शुरू करने की मांग मान लेनी चाहिए थी। (भाषा)

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