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जम्मू-कश्मीर में होने वाले हर हमले में फिदायीन

-सुरेश एस डुग्गर

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कठुआ में शुक्रवार को हुए ताजा आतंकी हमले को फिदायीन हमले के तौर पर निरूपित किया जा रहा है, क्योंकि हमलावर आतंकी मरने के इरादे से ही आए थे। पहले भी आज तक हुए हमलों में आतंकियों का रूप फिदायीन का ही था।

हालांकि इस हमले के बाद भी किसी को लगता नहीं है कि उन आतंकियों से छुटकारा मिलेगा जिन्हें स्थानीय भाषा में फिदायीन कहा जा रहा है तो अन्य लोग आत्मघाती दस्ते के सदस्यों के रूप मे उन्हें पहचानते हैं।

जम्मू-कश्मीर को इन फिदायीनों से छुटकारा इसलिए नहीं मिलने वाला है, क्योंकि सीमा पार से इनका आना फिलहाल रुका नहीं है।

रक्षा सूत्रों के अनुसार, फिदायीन इस समय जम्मू-कश्मीर के परिदृश्य पर पूरी तरह से छाए हुए हैं। हालांकि जम्मू-कश्मीर में सक्रिय फिदायीनों की सही संख्या के प्रति कोई जानकारी नहीं है लेकिन इतना अवश्य है कि उनकी घटनाओं ने कश्मीर के आतंकवाद को सुर्खियों में ला खड़ा किया है।

वैसे तो फिदायीनों के प्रति यह भी बहस चल रही है कि वे जम्मू-कश्मीर में हैं भी या नहीं, क्योंकि सुरक्षाधिकारी उन आतंकियों को फिदायीन अर्थात मानव बम का नाम देने को तैयार नहीं हैं, जो पिछले एक लंबे अरसे से सुरक्षा शिविरों पर आत्मघाती हमले कर रहे हैं।

इन हमलावरों के प्रति सुरक्षाधिकारियों का कहना है कि वे आतंकी ही हैं जिन्हें कट्टर प्रशिक्षण दिया गया है आत्मघाती हमले करने का।

रक्षा सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान द्वारा आत्मघाती दस्तों या फिर फिदायीनों को जम्मू-कश्मीर में इन इरादों से भेजा गया है ताकि वे 'ऑपरेशन टोपाक' के अंतिम व चौथे चरण को लागू करने के लिए माहौल को भयपूर्ण बना दें।

सनद रहे कि 'ऑपरेशन टोपाक' के चौथे चरण के मुताबिक पाक सेना के पास अंतिम विकल्प नियमित सैनिकों का सीधे तौर पर इस्तेमाल करना है जिसका प्रदर्शन एक बार वह कारगिल युद्ध में कर चुकी है।

इसमें कोई शक नहीं कि आत्मघाती दस्ते के सदस्य जम्मू-कश्मीर में आतंक तथा भय का माहौल बनाने में पूरी तरह से कामयाब रहे हैं। यह माहौल किस कद्र है, प्रत्येक सुरक्षा प्रतिष्ठान के बाहर बढ़ती रेत के बोरों की दीवारें और चारदीवारी के तौर पर अब बुलेटप्रूफ शीटों का इस्तेमाल इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।

जो अधिकारी दावा करते हैं कि जम्मू-कश्मीर में फिदायीन सक्रिय हैं वे इनकी संख्या 700 से 800 के बीच बताते हैं, जबकि जो मानव बमों की बात को नकारते हुए यह कहते हैं कि आत्मघाती दस्ते अवश्य सक्रिय हैं तथा वे आत्मघाती दस्तों के सदस्यों की संख्या 200-300 के करीब बताते हैं।

चर्चा का विषय फिदायीन या आत्मघाती दस्ते नहीं हैं बल्कि उनकी मौजूदगी से होने वाली क्षति है। आत्मघाती दस्तों या फिदायीनों की मौजूदगी की चर्चा का नतीजा यह है कि सुरक्षाबलों के शिविरों तथा अन्य रक्षा प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को मजबूत करने के निर्देश एक बार फिर जारी किए गए हैं उन पर खर्च तो हो ही रहा है आतंकवाद विरोधी अभियानों में लिप्त सैनिकों की आधी संख्या अपने इन प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के लिए जुटी हुई है।

अधिकारी इसे भी मानते हैं कि फिदायीनों तथा आत्मघाती दस्तों के रूप में पाकिस्तान द्वारा एक मनोवैज्ञानिक युद्ध भी छेड़ा गया है जिसका प्रभाव प्रत्येक नागरिक तथा सैनिक के दिलोदिमाग पर भी है। हालांकि आत्मघाती दस्ते के सदस्य अपने हमलों में अंत में मौत को गले लगा रहे हैं लेकिन वे किसी भी तरह से मानव बम का रूप धरकर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।

इतना अवश्य है कि उनकी कार्रवाइयों ने सुरक्षाकर्मियों की नींद अवश्य हराम की हुई है। स्थिति यह है कि सुरक्षाधिकारी व कर्मी रातभर चौकन्ने रहते हैं, क्योंकि उन्हें भय होता है कि कहीं आतंकवादी आत्मघाती हमला न कर दें।

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