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डॉक्टरी सलाह के बिना रोजा न रखें मधुमेह के मरीज

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कानपुर , सोमवार, 7 जुलाई 2014 (19:56 IST)
कानपुर। मुस्लिमों का पवित्र रमजान का महीना चल रहा है और इस बार रोजे गर्मी के मौसम में करीब 15 घंटे से अधिक के हो रहे हैं।

चिकित्सकों की सलाह है कि दिल और मधुमेह के मरीज खासतौर पर सतर्क रहें और अपने चिकित्सक की सलाह के बिना रोजा न रखें, क्योंकि रोजे के दौरान 15 घंटे भूखे-प्यासे रहना पड़ेगा, जो ऐसे लोगों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकता है।

रमजान के दौरान खास पकवानों (कुल्चा नेहारी, शीरमाल, कबाब और बिरयानी आदि) के प्रति उनकी दीवानगी और उनकी दवाओं के प्रति जरा भी लापरवाही उनके रोग को बढ़ा सकती है और उन्हें अस्पताल में भर्ती होने पर मजबूर कर सकती है।

चिकित्सकों के अनुसार ऐसे मरीज रोजा तो रख सकते हैं लेकिन इस दौरान वे अपने डॉक्टर से लगातार सलाह-मशविरा करते रहें और खाने-पीने के प्रति थोड़ी सावधानी बरतें।

लखनऊ के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सुदीप कुमार ने सोमवार को एक विशेष बातचीत में कहा कि रमजान में अक्सर दिल के मरीज और मधुमेह पीड़ित लोग यह सवाल करते हैं कि क्या उन्हें रोजा रखना चाहिए?

उन्होंने कहा कि जो रोगी पहले दिल के हल्के दौरे के शिकार हो चुके हैं वे रोजा रख सकते हैं, क्योंकि तमाम शोधों में यह बात सामने आई है कि ऐसे रोगियों को रमजान में रोजा रखने के दौरान भी आम दिनों जितना ही खतरा रहा है।

ऐसे लोगों को केवल अपने डॉक्टर से सलाह लेकर अपनी दवा की मात्रा में थोड़ा सामंजस्य बिठा लेना चाहिए और खाने-पीने में सावधानी बरतनी चाहिए। प्रोफेसर कुमार कहते हैं कि चिकित्सक की सलाह के बिना बाईपास सर्जरी करा चुके लोगों का रोजा रखना खतरनाक हो सकता है।

जन्म से मधुमेह (टाइप वन) पीड़ित और इंसुलिन लेने वाले रोगियों को रोजा रखने से बचना चाहिए, क्योंकि यदि वे इंसुलिन नहीं लेंगे तो उनके रक्त में शर्करा का स्तर (ब्लड शुगर लेवल) बढ़ जाएगा और उनकी हालत खराब हो सकती है।

उन्होंने कहा कि जिन लोगों को दिल के रोगों के साथ मधुमेह भी है उन्हें तो तेल और रोगन वाले खाद्य पदार्थों से बिलकुल बचना चाहिए। (भाषा)

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