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यौनकर्मियों के लिए आशा की किरण है नसीमा

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मुजफ्फरपुर (वार्ता) , बुधवार, 19 नवंबर 2008 (19:08 IST)
वेश्यावृत्ति के दलदल में फँसी लड़कियों को खुली हवा में साँस लेने का अवसर प्रदान करने वाली कोई और नहीं, बल्कि इसी दलदल में फँसे एक परिवार की बेटी नसीमा है। वह इस धंधे में लिप्त सैंकड़ो लड़कियों के लिए आशा की नई किरण बनकर सामने आई है।

मुजफ्फरपुर का प्रसिद्ध चतुर्भुज स्थान जो देह व्यापार का एक प्रमुख केन्द्र माना जाता है, नसीमा उसी केन्द्र के एक परिवार में पली-बढ़ी बेटी है, जो पूरे क्षेत्र की महिलाएँ, लड़कियों एवं लड़कों के लिए आशा की किरण बनकर उभरी है।

'परचम' नाम की स्वयंसेवी संगठन की सचिव नसीमा उसी क्षेत्र में रहकर इसमें फँसी महिलाओं को वहाँ से निकालकर इज्जत से जीने एवं छोटे-मोटे रोजगार के जरिए अपना जीवन यापन करने के लिए प्रेरित कर रही है।

26 वर्षीया नसीमा ने वर्ष 2002 में इस संस्था का गठन किया और अब तक 50 से अधिक महिला, पुरुष एवं लड़कियों को इस दलदल से निकालकर उन्हें स्वच्छ हवा में इज्जत से जीने का अवसर प्रदान कर चुकी है।

नसीमा वेश्यावृति में फँसी उन सभी महिलाओं को अपनी संस्था से जोड़कर उन्हें पढ़ने-लिखने, सिलाई-बुनाई करने एवं स्क्रीन प्रिटिंग आदि के कामों से जोड़कर उन्हें मुख्य धारा में लाने का सतत प्रयास कर रही है।

किराए के एक छोटे से कमरे में चला रही अपने कार्यालय में उसने एक छोटा पुस्तकायल का भी निर्माण किया है, जहाँ महिलाएँ, लड़कियाँ एवं बच्चे आकर अपने बौद्धिक विकास में जुटे हैं।

परचम संस्था ने उस क्षेत्र में सशक्तिकरण एवं जागरूकता फैलाने के लिए वहाँ की लड़कियों द्वारा नाट्य एवं सांस्कृतिक समूह का गठन किया है, जो क्षेत्र में जगह-जगह पर नुक्कड़ नाटकों एवं अन्य प्रकार से सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करके वहाँ के लोगों में जागरूकता पैदा कर रही है।

नसीमा का मानना है कि जोर जबर्दस्ती से या पुलिस डंडे का भय दिखाकर इस गंदगी को साफ नहीं किया जा सकता है। वह खरीद-फरोख्त के जरिए इस पेशे में लाई गई महिलाओं के बिलकुल खिलाफ है, लेकिन अपनी मर्जी से मजबूरीवश जो महिला इस धंधे में फँसी है, उनकी आजीविका की वैकल्पिक व्यवस्था किए बिना जबरर्दस्ती इस पेशे को बंद कराने के सख्त विरोध में है।

नसीमा की नजर में नाच-गाकर पैसा कमाना या देह व्यापार से कमा कर जीविकोपार्जन करना दोनों ही बराबर हैं। उसका कहना है कि सरकार के पास भी अभी तक इस क्षेत्र की महिलाओं के जीवन-यापन के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है। ऐसी स्थिति में जोर जबरदस्ती से इस धंधे को बंद कराना उचित नहीं होगा।

परचम की सचिव नसीमा ने बताया पुलिस छापेमारी के दौरान धंधा कर रही या छोड़ चुकी महिलाओं एवं लड़कियों की जाँच किए बगैर उन्हें ले जाती है और जेल में डाल देती है। इस तरह की छापेमारी से सुधार नहीं किया जा सकता।

उसका कहना है कि कई बार पुलिस जिन लड़कियों को इस क्षेत्र से ले जाती है, उसे किसी स्वयंसेवी संगठन या नारी निकेतन चलाने वाले लोगों के पास भेज देती है, जहाँ से उन्हें पुनः उसी धंधे में वापस धकेल दिया जाता है।

इसके बाद पुलिस प्रशासन दोबारा यह जानने की कोशिश नहीं करती कि जिस लड़की को उन्होंने जिस संस्था में भेजा है, वह किस स्थिति में है। नसीमा ने कहा वह बेतिया और सीतामढ़ी आदि जिलों में भी समूह का गठन कर वहाँ शिक्षा, स्वनियोजन आदि का कार्य करा रही है।

बेतिया में परचम गेम क्लब का गठन किया गया है, जिससे रेड लाइट एरिया के बच्चों में खेल भावना और प्रतिभा का विकास हो। उन्होंने बताया लड़कियों को उच्च शिक्षा से जोड़ने के लिए 'बिटिया योजना' चलायी जा रही है। इसके तहत अब तक दसवीं पास दो लड़कियों का कॉलेज में दाखिला कराया गया है।

उनमें से एक लड़की निख्खत परवीन है, जो एक स्थानीय चैनल में न्यूज रीडर के रूप में अपना योगदान दे रही है। संस्था से जुड़ी कई लड़कियाँ एवं लड़के स्टेट बैंक द्वारा प्रदत्त पूँजी से स्क्रीन प्रिटिंग मशीन खरीद कर काम कर रहे हैं।

नसीमा ने बताया मुजफ्फरपुर में इस धंधे से लगभग छह सौ परिवार जुड़े हैं। इन परिवार के 1500 से अधिक सदस्य 18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के हैं। संस्था की अध्यक्ष शकुंतला भारती हैं, जो एक यौनकर्मी थीं।

विद्यापीठ से दसवीं पास और इग्नू से स्नातक कर रही नसीमा को अपने क्षेत्र की कोठा संचालिकाओं एवं दलालो द्वारा संस्था बंद करने या वहाँ बाहरी लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध लगाने के लिए काफी दवाब का सामना करना पड़ रहा है। कई बार उसे धमकियाँ भी मिली हैं, फिर भी वह निडर होकर अपने कार्य में लगी है और उसे सफलता भी मिल रही है।

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