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गर्भपात कानून को चुनौती देने वाली महिला की मेडिकल जांच

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नई दिल्ली , शनिवार, 23 जुलाई 2016 (08:02 IST)
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने गर्भपात कानून के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली एक महिला की याचिका पर महाराष्ट्र सरकार को मुंबई के केईएम अस्पताल में एक मेडिकल बोर्ड का गठन कर उसकी स्वास्थ संबंधी जांच करने का निर्देश दिया है।
 
न्यायमूर्ति जगदिश सिंह केहर और अरुण मिश्रा की खंडपीठ ने महाराष्ट्र सरकार को सोमवार को इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। खंडपीठ ने साथ ही महिला को कल दस बजे बोर्ड के समझ उपस्थित होने का निर्देश दिया है ताकि उसकी जांच कर यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसका गर्भपात किया जाना संभव है या नहीं। मेडिकल बोर्ड को भी सोमवार सुबह में इसकी रिपोर्ट न्यायालय में पेश करनी है।
 
याचिका पर जारी सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता रंजीत कुमार ने न्यायालय को बताया कि यह मामला एम्स को रेफर किया जा सकता है, जहां एक मेडिकल बोर्ड याचिकाकर्ता की जांच करेगा और फिर बोर्ड के मशवरे के आधार पर सोमवार को फैसला लिया जायेगा। इस पर याचिकाकर्ता की ओर से मामले की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्विज ने दलील दी कि पीड़िता मुंबई में है और उसकी हालत को देखते हुए उसका दिल्ली सफर कर पाना संभव नहीं है।
 
खंडपीठ ने फिर महाराष्ट्र सरकार को केईएम अस्पताल में ही मेडिकल बोर्ड का गठन करके याचिकाकर्ता की मेडिकल जांच कराने का निर्देश दिया। यह बोर्ड याचिकाकार्ता की स्वास्थ्य संबंधी जांच करके यह बताएगा कि वह गर्भधारण के 24वें सप्ताह में भी गर्भपात के लिये शारीरिक रूप से सक्षम है या नहीं।
 
याचिकाकर्ता का कहना है कि वह एक गरीब पृष्ठभूमि से संबंध रखती है और उसका भ्रूण मस्तिष्क संबंधी जन्मजात विकृति ऐनिन्सफली से पीड़ित है, लेकिन चिकित्सकों ने गर्भपात करने से इनकार कर दिया है, जिसके मद्देजनर गर्भपात की 20 सप्ताह की सीमा के कारण महिला के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को खतरा है।
 
याचिका में कहा गया है कि यह तय सीमा अनुचित, मनमानी, कठोर, भेदभावपूर्ण और समानता एवं जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। महिला की दलील है कि डॉक्टरों के मुताबिक उसके गर्भ में पल रहा भ्रूण सामान्य नहीं है और उसके मानसिक विकारों के साथ जन्म लेने की आशंका है, लेकिन मौजूदा कानून उसे गर्भपात कराने की अनुमति नहीं देता। उसने चिकित्सकीय गर्भपात कानून, 1971 की धारा 3(2)(बी) को निष्प्रभावी किए जाने की मांग की है, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 21 का उल्लंघन है। 
 
चौबीस सप्ताह की गर्भवती महिला का आरोप है कि उसके पूर्व मंगेतर ने उससे शादी का झूठा वादा करके उसका बलात्कार किया था और वह गर्भवती हो गई। याचिकाकर्ता महिला ने गर्भपात कराने की मांग की है। (वार्ता)
           


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