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पंजाबी लेखिका दलीप कौर लौटाएंगी पद्मश्री

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नई दिल्ली , मंगलवार, 13 अक्टूबर 2015 (19:15 IST)
नई दिल्ली। जानी-मानी पंजाबी लेखिका दलीप कौर तिवाना ने मंगलवार को ऐलान किया कि वह देश में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के खिलाफ अपना पद्म श्री सम्मान लौटाएंगी। वहीं, अपना साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटा रहे लेखकों की कड़ी में आज एक और कन्नड़ लेखक शामिल हो गए। 
 
तिवाना ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर कहा कि गौतम बुद्ध और गुरू नानक की भूमि पर 1984 में सिखों पर किए गए अत्याचार और सांप्रदायिकता की वजह से बार-बार मुसलमानों पर ज्यादती हमारे देश और समाज के लिए बहुत अपमान की बात है।
 
उन्होंने लिखा, 'सत्य और न्याय के लिए खड़े होने वालों को मारना हमें दुनिया और ऊपर वाले की आंखों में शर्मसार करता है। इसलिए विरोध स्वरूप मैं पद्म श्री सम्मान लौटाती हूं।'
 
तिवाना ने कहा कि मैं देश में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव की और अल्पसंख्यकों के साथ जो हो रहा है, उसकी निंदा करती हूं। उन्हें 2004 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। तिवाना को उनके उपन्यास ‘एहो हमारा जीवन’ के लिए 1971 में साहित्य अकादमी सम्मान से भी विभूषित किया गया था।
 
वह पिछले तीन दिन में पंजाब से सम्मान लौटाने वालीं आठवीं लेखिका हैं। 

कन्नड़ लेखक प्रोफेसर रहमत तारीकेरी ने कहा कि विद्वान एमएम कलबुर्गी और अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले नरेंद्र दाभोलकर एवं गोविंद पानसरे की हत्या के विरोध में वह अपना साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटा रहे हैं।
 
कृष्णा सोबती और अरूण जोशी के भी अवॉर्ड लौटाने के फैसले के बाद नयनतारा सहगल और अशोक वाजपेयी सहित कम से कम 25 लेखक अपने अकादमी अवॉर्ड लौटा चुके हैं और पांच लेखकों ने साहित्य अकादमी में अपने आधिकारिक पदों से इस्तीफा दे दिया है।
 
मामले पर क्या बोले नामवर सिंह : प्रख्यात मार्क्सवादी आलोचक डॉ. नामवर सिंह का  कहना है कि लेखकों को साहित्य अकादमी पुरस्कार नहीं लौटाना चाहिए बल्कि उन्हें सत्ता का विरोध करने के और तरीके अपनाने चाहिए क्योंकि अकादमी एक स्वायत्त संस्था है।
 
डॉ सिंह ने देश के पच्चीस लेखकों द्वारा अकादमी पुरस्कार लौटाए जाने पर कहा कि लेखक अखबारों में सुर्खियां बटोरने के लिए इस तरह पुरस्कार लौटा रहे हैं।
 
उन्होंने कहा, मुझे समझ में नहीं आ रहा कि लेखक क्यों पुरस्कार लौटा रहे हैं। अगर उन्हें सत्ता से विरोध है तो साहित्य अकादमी पुरस्कार नहीं लौटना चाहिए क्योंकि अकादमी तो स्वायत्त संस्था है और इसका अध्यक्ष निर्वाचित होता है। यह देश की अन्य अकादमियों से भिन्न है। यह लेखकों की अपनी संस्था है।
 
आखिर लेखक इस तरह अपनी ही संस्था को क्यों निशाना बना रहे हैं। अगर उन्हें कलबुर्गी की हत्या का विरोध करना है  तो उन्हें राष्ट्रपति, संस्कृति मंत्री या मानव संसाधन मंत्री से मिलकर सरकार पर दबाव  बनाना चाहिए और उनके परिवार की मदद के लिए आगे आना चाहिए।

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