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यहां 65 प्रतिशत से अधिक महिलाएं नहीं चाहतीं बेटियां

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नई दिल्ली , मंगलवार, 4 अगस्त 2015 (10:04 IST)
नई दिल्ली। हरियाणा के कुरूक्षेत्र और सोनीपत जिलों में 65 प्रतिशत से अधिक महिलाएं बेटियों की बजाय बेटे की ख्वाहिश रखती हैं क्योंकि उनका मानना है कि बेटा ही परिवार को आगे बढ़ा सकता है। इतना ही नहीं करीब 50 प्रतिशत महिलाओं का यह विचार है कि बेटा होने से समाज में किसी महिला को रूतबा और इज्जत मिलती है।
 
भारत में लिंग आधारित लैंगिक चयन के मुद्दे पर प्रकाश डालने के मकसद से पॉपुलेशन काउंसिल ने यह आंकड़ा जारी किया। काउंसिल ने पिछले साल सितंबर से नवंबर में इन दोनों जिलों में 1,000 विवाहित महिलाओं को सर्वेक्षण में शामिल किया था।
 
रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि जिन जिलों में सर्वेक्षण किया गया, वहां गर्भावस्था के दौरान प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण की जांच लगभग आम बात है क्योंकि 90 से 92 फीसदी महिलाओं ने इस तरह का परीक्षण कराने की बात स्वीकारी है।
 
करीब 16 फीसदी महिलाओं का यह भी मानना है कि केवल बेटियों वाली मांताएं दुर्भाग्यशाली होती हैं।
 
रिपोर्ट के मुताबिक, 'सभी स्वास्थ्य केंद्रों ने यह स्वीकार किया कि मां के गर्भ में कन्या भ्रूण की जानकारी होने पर अधिकतर महिलाएं या तो खुद या परिवार के दबाव में अपना गर्भपात कराना चाहती हैं। न तो कोई परामर्श और न ही कोई डर इन महिलाओं को डिगा पाता है।'
 
इसके अनुसार, कुरूक्षेत्र में 555 महिलाओं में से कम से कम 49 ने और सोनीपत में 546 में से 60 ने ‘गर्भपात’ कराया है। इनमें से 53 से लेकर 59 प्रतिशत ने चिकित्सकीय कारणों से और करीब 25 प्रतिशत ने इस वजह से गर्भपात कराया क्योंकि वह दूसरा बच्चा नहीं चाहती थीं।
 
रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि कुरूक्षेत्र में 96 प्रतिशत और सोनीपत में 94.3 प्रतिशत महिलाओं ने यह स्वीकार किया कि लैंगिक भेदभाव को लेकर चलाए जा रहे व्यापक अभियान से वे अनजान नहीं हैं, बावजूद इसके बेटों का महत्व व्यापक रूप से मौजूद है।
 
बेटा-बेटी के बीच समान बर्ताव करने को लेकर स्वास्थ्य कर्मियों की ओर से दिए जाने वाले परामर्श का प्रतिशत भी कुरूक्षेत्र में महज 31 प्रतिशत और सोनीपत में 23 प्रतिशत महिलाओं तक सुलभ हो पाया है।
 
बहरहाल, अध्ययन में यह भी कहा गया है कि राज्य के शिक्षित और युवा दंपतियों में बेटे की चाहत में गिरावट आई है। (भाषा)

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