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हरियाणा में त्रिशंकु जनादेश के आसार

हमें फॉलो करें हरियाणा में त्रिशंकु जनादेश के आसार
नई दिल्ली , रविवार, 14 सितम्बर 2014 (12:27 IST)
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक मजबूत ताकत के रूप में उभरने से इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के बीच सीधी टक्कर के बजाय तिकोना मुकाबला होगा जिससे त्रिशंकु जनादेश की संभावनाएं बढ गई हैं।
 
पिछले विधानसभा चुनाव में भी किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। कांग्रेस 40 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और उसे सरकार बनाने के लिए हरियाणा जनहित कांग्रेस के खेमे तथा निर्दलीयों में सेंध लगानी पड़ी थी।
 
हरियाणा में विधानसभा चुनाव के लगभग 5 दशक पुराने इतिहास में यह पहला मौका है, जब भाजपा इतनी मजबूती के साथ चुनाव मैदान में उतर रही है। लोकसभा चुनावों ने हरियाणा में विधानसभा चुनाव की तस्वीर को एकदम बदल दिया है और कभी इनेलो के साथ गठबंधन कर सीमित सीटों पर लड़ने वाली भाजपा इस बार कांग्रेस तथा इनेलो को कड़ी टक्कर दे रही है। इतना ही नहीं, उसे राज्य में सरकार बनाने का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। 
 
'मोदी लहर' पर सवार होकर लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित रूप से राज्य की 10 में से 7 सीटों पर जीत का परचम लहराने वाली भाजपा ने विधानसभा चुनाव के सहयोगी हरियाणा जनहित कांग्रेस से दोस्ती बनाए रखने में रुचि नहीं दिखाई और न ही पुराने सहयोगी इनेलो से नाता जोड़ने की कोशिश की। 
 
पार्टी ने विधानसभा चुनाव के लिए 'मिशन 46' का लक्ष्य रखा है और उसे भरोसा है कि विधानसभा चुनाव में भी 'मोदी लहर' ही उसका बेड़ा पार लगाएगी और वह राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी। कांग्रेस और इनेलो दोनों के कई बड़े नेताओं के भाजपा का दामन थामने से भी पार्टी में गजब का उस्ताह है।
 
लोकसभा चुनाव में भाजपा को राज्य में सबसे अधिक 34 फीसदी वोट मिले और वह 90 में से 53 विधानसभा सीटों पर आगे रही जबकि इनेलो को 2 लोकसभा सीटों के साथ 24 फीसदी तथा कांग्रेस को 1 सीट के साथ 23 फीसदी वोट मिले।
 
जानकारों का कहना है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मुद्दे अलग-अलग होते हैं इसलिए आम चुनाव के परिणामों के आधार पर कांग्रेस और इनेलो को आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता।
 
दोनों ही पार्टियों का राज्य में बड़ा तथा पुराना जनाधार रहा है और वे बारी-बारी से सत्ता में काबिज होती रही हैं। दोनों ही पार्टियों के राज्य में अपने अपने गढ़ हैं जिनमें सेंध लगाना भी भाजपा के लिए आसान नहीं होगा।
 
पिछले 10 वर्षों से सत्तारूढ़ कांग्रेस को अंदरुनी कलह और सत्ता विरोधी लहर के कारण इस बार अपना किला बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा से नाराज उसके कद्दावर नेताओं चौ. बीरेन्द्र सिंह और राव इंदौरजीत सिंह ने भाजपा का दामन थाम लिया है जबकि एक अन्य नेता अवतार सिंह भडाना इनेलो के पाले में चले गए हैं। शैलजा तथा प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर जैसे नेता भी हुड्डा से अलग लीक पर चलते दिखाई दे रहे हैं।
 
इनेलो अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला तथा उनके पुत्र तथा पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अजय चौटाला के टीचर भर्ती घोटाले में जेल में होने के कारण पार्टी नेतृत्व के संकट से जूझ रही है और उसके कार्यकर्ताओं में पहले जैसा जोश नहीं है। 
 
हालांकि पार्टी का दावा है कि उसका वोट बैंक सुरक्षित है और लोकसभा चुनाव में 2 सीटें जीतकर उसने इसका संकेत भी दिया है। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में इनेलो को एक भी सीट नहीं मिली थी।
 
कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बनाने वाले पूर्व मंत्री विनोद शर्मा तथा हरियाणा जनहित कांग्रेस ने चुनाव के लिए गठबंधन किया है और यह गठजोड़ भाजपा तथा कांग्रेस के गैर जाट वोट बैंक में सेंध लगा सकता है। बहुजन समाज पार्टी और पूर्व मंत्री विनोद कांडा की हरियाणा लोकहित पार्टी भी चुनाव मैदान में हैं।
 
भाजपा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में अब तक सबसे अधिक 16 सीटें 1987 में मिली थीं, जब वह पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल के लोकदल के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी। दोनों दलों ने 1982 में राज्य में गठबंधन सरकार चलाई थी। (वार्ता) 

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