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जयपुर में हर्बल रंग और गुलाल की धूम

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जयपुर , सोमवार, 2 मार्च 2015 (22:55 IST)
जयपुर। गुलाबी नगरी के हर्बल और गुलाल बेचने वाले व्यापारियों के अनुसार आरारोट की खुशबू वाली गुलाल की मांग गत वर्ष की तुलना में पचास प्रतिशत और हर्बल रंगों की मांग गत वर्ष की तुलना में बीस प्रतिशत अधिक है।
 
गुलाल और रंगों के थोक विक्रेता ओमप्रकाश अग्रवाल ने कहा कि होली सबसे सस्ता त्यौहार है, केवल दो सौ रुपए में पांच घंटें तक खुशबूभरे माहौल में इस त्यौहार का रंगीन आनंद उठाया जा सकता है।
 
उन्होंने कहा कि होली खेलने में लोगों में पानी की बचत के प्रति जागरूकता के चलते पानी का उपयोग कम किया जाता है, इसी कारण हर्बल गुलाल की बिक्री बढ़ी है।
 
उन्होंने बताया कि लोग आजकल परंपरागत तरीके से खेलने वाली होली से अलग सूखी होली खेलना ज्यादा पसंद करते हैं। इसी वजह से होली मनाने के तरीके में बदलाव देखा जा रहा है। होली पर स्प्रे रंगों का चलन बढ़ता जा रहा है। यह सिंथेटिक नहीं है और हर्बल रंगों को प्राकृतिक फूल-पत्तियों से निर्मित किया जाता है।
 
हर्बल रंगों एवं आरारोट की गुलाल के फुटकर व्यवसायी मोहम्‍मद इरफान ने बताया कि पहले पानी के साथ होली खेलने को ही होली खेलना मानते थे, लेकिन गुणवत्तापूर्ण हर्बल रंग और गुलाल की आसानी से उपलब्‍धता के कारण लोगों का रुझान इस तरफ बढ़ा है। लोग बढ़ती महंगाई से बेपरवाह गुणवत्ता वाली हर्बल गुलाल और हर्बल रंगों को खरीदना ज्यादा पसंद करते हैं।
 
इरफान के अनुसार हर्बल रंग तो जड़ी-बूटियों और फूलों के रस के सम्मिश्रण से तैयार किया जाता है। अनार के छिलके, चुकंदर का रंग, गुलाब एवं गेंदे के फूल और पत्तियों से तैयार चूर्ण से हर्बल रंग बनता है। 
 
इरफान ने कहा कि इस साल होली पर समुद्र की सीप के रंग की अत्यधिक मांग है। इससे शरीर को नुकसान नहीं होता है और इसमें चमक भी ज्यादा होती है। होली के दिनों में खुशबू युक्त आरारोट गुलाल की बिक्री तीन से चार टन हो रही है। 
 
गुलाल के विक्रेता शमशेर ने बताया कि हर्बल गुलाल से भरे लाख के गोटे से होली खेलना राजस्थान राज्य की एक विशेष पहचान रही है। पुराने समय में राजस्थान के राजपूतानों में इससे होली खेली जाती थी।
 
उन्होंने कहा कि पिछले साठ से अधिक सालों से जुड़े इस व्यवसाय में उनकी यह चौथी पीढ़ी है और दिनोंदिन लोगों का भी रुझान गुलाल के गोटे के प्रति बढ़ता दिखाई दे रहा है।
 
उन्होंने कहा कि गुलाल का गोटा बनाने में लाख का प्रयोग किया जाता है। इस लाख को किसी पतली फूंकनी के सहारे गोलाकार रूप में फूलाया जाता है। इसके बाद इसमें विभिन्न रंगों का अबीर-गुलाल भरा जाता है। 
 
उन्होंने कहा कि इसको सामने वालों पर फेंककर मारने पर यह फूटता है और विविध रंगों का एक गुबार हवा में तैरने लगता है। हर्बल गुलाल के निर्माता सुनील शाह ने बताया कि राजस्थान के लिए अब तक दो लाख से अधिक पैकेट के आर्डर मिले हैं।
 
उन्होंने बताया कि उनकी गुलाल की मांग न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी है। दक्षिण-पूर्व एशिया, यूरोपियन देशों, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया और जर्मनी में उनके माल की अप्रत्यक्ष रूप से आपूर्ति की जाती है। 
 
सवाई मानसिंह चिकित्सालय के पूर्व त्वचा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्‍टर दिनेश माथुर ने बताया कि बाजार में उपलब्ध ज्यादातर रंग भारी धातु और अम्ल मिलाकर बनाए जाते हैं। 
 
उन्होंने कहा कि इन रंगों के उपयोग से त्वचा को नुकसान ही नहीं, बल्कि मुंह के जरिए इनका कुछ अंश भी पेट में चला जाए तो उल्टी से लेकर कैंसर तक की वजह बन सकते हैं। रासायनिक रंगों की बाजार में धड़ल्ले से हो रही बिक्री काफी चिंताजनक है। (भाषा)


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