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जयललिता ने किया हिन्दी का विरोध

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चेन्नई , गुरुवार, 18 सितम्बर 2014 (15:18 IST)
चेन्नई। राज्य में हिन्दी थोपने का अपना विरोध बरकरार रखते हुए तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने गुरुवार को दो विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया कि वे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के सर्कुलर को लागू नहीं करें और कहा कि पूर्व संप्रग सरकार द्वारा किया गया फैसला उसके लिए बाध्यकारी नहीं होगा।
 
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह कदम हिन्दी थोपने जैसा है, जो पूर्व सरकार द्वारा शुरू किया गया था।
 
उन्होंने कहा कि दो संस्थानों- अन्ना यूनिवर्सिटी और अलागप्पा यूनिवर्सिटी को 16 सितंबर 2014 को सर्कुलर मिला था जिसमें कहा गया था कि स्नातक पाठ्यक्रमों में हिन्दी को अंग्रेजी के साथ प्राथमिक भाषा के रूप में पढ़ाने के साथ कानून एवं वाणिज्य संकायों में भी इसका अनुसरण किया जाए।
 
जयललिता ने कहा कि यह फैसला 28 जुलाई 2011 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अधीन केंद्रीय हिन्दी समिति (राष्ट्रीय हिन्दी परिषद) की बैठक में किया गया था।
 
यहां जारी बयान में कहा गया कि परिषद ने तब कहा था कि गुजरात में छात्रों ने या तो अंग्रेजी या हिन्दी के साथ पढ़ाई कर स्नातक किया जिसका परिणाम केंद्रीय विभागों में अनुवाद दक्षता में कमी के रूप में निकला और यूजीसी से यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि अंग्रेजी के साथ हिन्दी भी पढ़ाई जाए।
 
जयललिता ने कहा कि इससे यह स्पष्ट है कि हिन्दी थोपने का प्रयास, खासकर 28 जुलाई 2011 को केंद्रीय हिन्दी समिति की बैठक में लिए गए फैसलों में निहित है। मुख्यमंत्री ने यह भी सवाल उठाया कि तब कांग्रेस नीत संप्रग का हिस्सा रही द्रमुक क्यों चुप रही, जबकि अब वह विरोध कर रही है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी का रुख दृढ़ है और हिन्दी को गैर हिन्दीभाषी राज्यों पर नहीं थोपा जाना चाहिए।
 
जयललिता ने कहा कि मैंने राज्य के मुख्य सचिव को विश्वविद्यालयों को यह सलाह देने को कहा है कि वे यूजीसी को सूचित करें कि जुलाई 2011 में केंद्रीय हिन्दी समिति की बैठक में लिए गए फैसले उनके लिए बाध्यकारी नहीं होंगे। (भाषा) 
 

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