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‘अब्बाजान बीमार हैं, चचाजान लड़ने की हालत में नहीं

हमें फॉलो करें ‘अब्बाजान बीमार हैं, चचाजान लड़ने की हालत में नहीं

सुरेश एस डुग्गर

, शुक्रवार, 7 नवंबर 2014 (18:27 IST)
श्रीनगर। ‘मेरे अब्बाजान बीमार हैं, चचाजान चुनाव लड़ने की हालत में नहीं हैं। आप मुझे ही वोट दें क्योंकि मेरे कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ है।’ यह कोई फिल्मी डायलॉग नहीं बल्कि अब मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के चुनाव प्रचार का हिस्सा है। वे अपनी चुनावी सभाओं में इसी डायलॉग का इस्तेमाल करते हुए उनका शुभारंभ कर रहे हैं।
 
अपने चुनावी क्षेत्र सोनावर में सबसे पहले उन्होंने इन शब्दों का इस्तेमाल किया था। उमर अब्दुल्ला पहली बार सोनावर से चुनाव मैदान में हैं। पिछला चुनाव उन्होंने गंदरबल से 16519 वोट हासिल कर जीता था। तब उन्होंने पीडीपी के काजी मुहम्मद अफल को हराया था।
 
सोनावर सीट पर उमर अब्दुल्ला के अब्बाजान डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने 2008 के चुनावों में कब्जा जमाया था। उन्होंने पीडीपी के ही प्रत्याशी को मात्र 94 वोटों से हराया था। पर इस बार डॉ. अब्दुल्ला मैदान में नहीं है। उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं हैं और वे लंदन में अपना इलाज करवा रहे हैं।
 
नतीजतन नेकां के पास कोई करिश्माई स्टार प्रचारक नेता नहीं है। पार्टी के लिए डॉ. अब्दुल्ला सबसे बड़े स्टार प्रचारक के तौर पर जाने जाते थे। आज तक उमर अब्दुल्ला और पार्टी के अन्य नेताओं ने जो चुनाव जीते उनमें डॉ. फारुक अब्दुल्ला की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
 
उमर अब्दुल्ला के चचाजान शेख नजीर अहमद भी इस बार चुनाव प्रचार से दूर हैं। उनकी उम्र हो गई है। वे अस्वस्थ होने के कारण मैदान में नहीं आए हैं। हालांकि दूसरे चचाजान डॉ. मुस्तफा कमाल तो ठीक हैं पर वे अपने चुनावी क्षेत्र गुलमर्ग में व्यस्त हैं।
 
ऐसे में पार्टी की पूरी जिम्मेदारी उमर अब्दुल्ला के कांधों पर है। वे इस सच्चाई को जग जाहिर भी कर रहे हैं। इसके लिए वे अपने दल के कार्यकर्ताओं को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे अकेले पड़ चुके हैं। उनके साथ कोई नहीं है।
 
वे इस भावना को वोट बैंक में बदलने की कोशिश में हैं। हालांकि वे भी जानते हैं कि जिस भावना को वे भुनाने की कोशिश कर रहे हैं वह शायद ही परिणाम दे पाए पर उनके पास इस सच्चाई को बयान करने के अतिरिक्त कोई रास्ता भी नहीं है।
 
यही कारण है कि नेकां स्टार प्रचारकों से जूझ रही है। ऐसे में सारा दारोमदार मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के कंधों पर है। जो अपने अब्बाजान और चचजान के मैदान में नहीं होने के कारण अकेला महसूस कर रहे हैं। वे अपनी इस कमी को जग जाहिर भी कर रहे हैं ताकि वह वोट बैंक में बदल सकें। अब तो यह वक्त ही बताएगा कि उनकी इस ‘इमानदारी’ को कितने पार्टी वर्करों और मतदाताओं ने समझा है।

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