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लगातार बंद और हड़ताल को लेकर कश्मीर में तनातनी

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सुरेश डुग्गर

, बुधवार, 19 अक्टूबर 2016 (22:17 IST)
श्रीनगर। 103 दिन से बंद और हड़तालों के दौर से गुजर रहे कश्मीरियों के सब्र का बांध अब टूट गया है। परिणाम सामने है। हड़ताल करवाने के लिए आने वालों को स्थानीय लोगों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। यह विरोध कहीं कहीं हिंसक भी होने लगा है।
अलगाववादियों के बंद के आह्वान को धता बताते हुए बुधवार को ज्यादा से ज्यादा लोग अपनी दैनिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने के लिए बाहर निकले जिसके चलते सार्वजनिक परिवहन की आवाजाही में भी इजाफा हुआ। व्यावसायिक केंद्र लाल चौक और आसपास के इलाकों में दुकानें और व्यापारिक प्रतिष्ठानों समेत पेट्रोल पंप भी बंद रहे, लेकिन सिविल लाइंस इलाके के सनत नगर, जवाहर नगर, राजबाग और बिशेम्बर नगर और शहर के बाहरी इलाकों में कई दुकानें खुली रहीं।
 
लाल चौक से होकर गुजरने वाली टीआरएस क्रासिंग-बटमालू एक्सिस पर बड़ी संख्या में रेहड़ी पटरी वालों ने अपनी दुकानें लगा लीं। शहर में निजी वाहन और ऑटोरिक्शा की आवाजाही में भी वृद्धि देखी गई। हालांकि, घाटी के अन्य जिला मुख्यालयों में अधिकांश दुकानें और व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद रहे। इन्हें अलगाववादियों द्वारा घोषित छूट की अवधि में ही खोला जा रहा है।
 
कश्मीर के विभिन्न इलाकों से ऐसे समाचार मिले हैं। पुलवामा, अनंतनाग, सफापोरा और न जाने कितने नाम अब इस सूची में जुड़ते जा रहे हैं जहां बंद और हड़ताल करवाने के लिए आने वालों को खरी-खोटी तो सुननी ही पड़ी जोर जबरदस्ती करने पर पहले लोगों की मार को सहन करना पड़ा और फिर पत्थर भी खाने पड़े।
 
नतीजतन विरोध प्रदर्शन और बंद से परेशान दुकानदारों ने आज प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। नतीजतन कल तक सुरक्षाबलों और पुलिस पर पथराव करने वाले प्रदर्शनकारियों को आज खुद पत्थरों का सामना करना पड़ रहा है। सूत्रों के अनुसार प्रदर्शनकारियों का विरोध करने के साथ ही लोगों ने दुकानदारों से दुकानें खोलने और घाटी में हालात सामान्य करने की अपील की है।
 
उल्लेखनीय है कि कश्मीर घाटी में लगातार हिंसक प्रदर्शन और बंद का दौर जारी है। एक ओर जहां अलगाववादियों के आह्वान पर जबरन दुकानों को बंद कराया जा रहा है। वहीं, दूसरी ओर कर्फ्यू के कारण जन-जीवन अस्त व्यस्त है। बंद और कर्फ्यू से बेहाल लोग सुरक्षाबलों और प्रदर्शनकारियों के बीच पिस रहे हैं। घाटी के लोगों की रोजी-रोटी पर भी संकट उठ खड़ा हुआ है।
 
सच्चाई यह है कि अब कश्मीरी हड़ताल से उकता गए हैं। कश्मीर के कई हिस्सों में हड़ताल करवाने वालों का विरोध हो रहा है। यह विरोध हिंसक भी होने लगा है। कई गुट आपस में ही पत्थरबाजी में उलझ कर एक-दूसरे को जख्मी कर चुके हैं।
 
मगर अब हुर्रियत के घटक दलों द्वारा गिलानी से हड़ताल की अपेक्षा कोई और रास्ता तलाशने का आग्रह किए जाने से वे व्यापारी खुश हैं जिन्हें इन 103 दिनों के दौरान जबरदस्त घाटा उठाना पड़ा है। सबसे बड़ा घाटा छात्रों को उठाना पड़ रहा है, जिन्हें हड़तालों के बावजूद एजुकेशन विभाग ने कोई राहत देने से इंकार करते हुए परीक्षाओं का कैलेंडर जारी कर दिया है। ऐसे में हुर्रियत पर अभिभावकों की ओर से दबाव बढ़ा है कि अगर हड़ताली कैलेंडर यूं ही जारी रहा तो छात्रों का परीक्षा का कैलेंडर पीछे छूट जाएगा जो बच्चों के भविष्य के लिए घातक साबित होगा।


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