श्रीनगर। कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी कश्मीरियों पर अपना दबदबा स्थापित करने की खातिर पत्थरबाजों को अलग-थलग करना चाहते हैं, पर उन्हें लग रहा है कि वे इसमें कामयाब नहीं हो पाएंगे, क्योंकि पत्थरबाज अब गिलानी का आदेश मानने को तैयार नहीं हैं। यही कारण था कि कल यानी रविवार को आंदोलन में दी गई 1 दिन की छूट से पत्थरबाज इतने नाराज हो गए कि उन्होंने गिलानी के घर पर ही पथराव कर खिड़कियों के शीशे तोड़ डाले।
हालत यह है कि पत्थरबाज और गिलानी आमने-सामने हैं। गिलानी को अपना साम्राज्य हिलता हुआ नजर आने लगा है। राज्य सरकार भी यही चाहती थी। यही नहीं, 80 दिनों की हड़ताल के बाद अब गिलानी के हड़ताली कैलेंडर के खिलाफ भी स्वर बुलंद होने लगे हैं। यह उन नारों से साबित होने लगा है, जो कई स्थानों पर दुकानों के शटरों पर लिखे हुए नजर आने लगे हैं। कई दुकानों पर ‘हम आजादी चाहते हैं’ के नारे के आगे यह भी लिखा नजर आ रहा है ‘फ्रॉम स्टोन पेलटर्स’।
यह बात अलग है कि पत्थरबाजों की नाफरमानी और ऐसे नारों के पीछे गिलानी भारतीय सुरक्षा एजेंसियों का हाथ होने की दुहाई दे रहे हैं जबकि केंद्र सरकार कहती है कि आतंकी हथियार छोड़कर पत्थरबाजों में घुस चुके हैं, जो भीड़ में घुसकर सुरक्षाबलों पर गोलियां बरसाकर उन्हें उकसा रहे हैं जिसका परिणाम सुरक्षा बलों द्वारा की जाने वाली फायरिंग में बेकसूर कश्मीरियों की मौतों के रूप में सामने आ रहा है।
बताया जाता है कि पिछले 80 दिनों से लगातार जारी हड़ताल को लेकर अब हुर्रियत के विभिन्न गुटों में ही मतभेद पैदा होने लगे हैं। हुर्रियत कांफ्रेंस के घटक दलों ने कट्टरपंथी नेता सईद अली शाह गिलानी से हड़ताल के स्थान पर आंदोलन के लिए कोई और रास्ता अख्तियार करने को कहा है ताकि बच्चों की पढ़ाई का ख्याल रखा जाए और गरीब दिहाड़ीदारों के पेट पर लात न चले। यह विरोध सार्वजनिक तौर पर तो नहीं हुआ है, पर हुर्रियत के भीतरी सूत्र इसकी पुष्टि करने लगे हैं।
ऐसा ही विरोध पिछले हफ्ते उस समय हुआ था, जब हड़ताली कैलेंडर को 29 सितंबर तक बढ़ाया गया था। बताया जाता है कि अप्रत्यक्ष तौर पर गिलानी ने छात्रों तथा दिहाड़ीदारों के दर्द को समझा था और उन्होंने बुद्धिजीवियों से हड़ताल का विकल्प सुझाने को सुझाव तो मांगे थे, पर पत्थरबाजों ने ऐसा नहीं होने दिया था।
बताया जाता है कि रविवार दोपहर 2 बजे के बाद हड़ताल में दी गई छूट इसी का परिणाम था लेकिन यह पत्थरबाजों को नागवार गुजरा था। उन्होंने अपने गुस्से का इजहार भी कर दिया। मिलने वाले समाचार कहते हैं कि गुस्साए पत्थरबाजों ने गिलानी के घर पर ही पत्थर बरसा दिए हैं।
पिछले 80 दिनों से कश्मीरियों की ओर से पत्थरबाजों का साथ दिया जा रहा है, पर अब कश्मीरी हड़ताल से उकता गए हैं। कश्मीर के कई हिस्सों में हड़ताल करवाने वालों का विरोध हो रहा है। यह विरोध इतना खुलकर सामने तो नहीं आया है जितना वर्ष 2010 के दौरान हुआ था। पर कहा यही जा रहा है कि अगर हड़ताली कैलेंडर यूं ही जारी रहा तो यह विरोध खुलकर सड़कों पर आ सकता है।
मगर अब हुर्रियत के घटक दलों द्वारा गिलानी से ऐसा ही आग्रह किए जाने से वे व्यापारी खुश हैं जिन्हें इन 80 दिनों के दौरान जबरदस्त घाटा उठाना पड़ा है। सबसे बड़ा घाटा छात्रों को उठाना पड़ रहा है जिन्हें हड़तालों के बावजूद एजुकेशन विभाग ने कोई राहत देने से इंकार करते हुए परीक्षाओं का कैलेंडर जारी कर दिया है। ऐसे में हुर्रियत पर अभिभावकों की ओर से दबाव बढ़ा है कि अगर हड़ताली कैलेंडर यूं ही जारी रहा तो छात्रों का परीक्षा का कैलेंडर पीछे छूट जाएगा, जो बच्चों के भविष्य के लिए घातक साबित होगा।