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25 सालों में 671 राजनीतिज्ञों की हत्या

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सुरेश एस डुग्गर

, शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2014 (19:25 IST)
श्रीनगर। सुरक्षाबलों और राज्य सरकार के दावों के बावजूद इस सच्चाई से मुख नहीं मोड़ा जा सकता कि कश्मीर में फैले आतंकवाद में राजनीतिज्ञ आतंकियों के नर्म लक्ष्य रहे हैं। कश्मीर में होने वाले हर किस्म के चुनावों में आतंकियों ने राजनीतिज्ञों को ही निशाना बनाया है। उन्होंने न ही पार्टी विशेष को लेकर कोई भेदभाव किया है और न ही उन राजनीतिज्ञों को ही बख्शा जिनकी पार्टी के नेता अलगाववादी सोच रखते हों।
 
यह इसी से स्पष्ट होता है कि पिछले 25 सालों के आतंकवाद के दौर के दौरान सरकारी तौर पर आतंकियों ने 671 के करीब राजनीति से सीधे जुड़े हुए नेताओें को मौत के घाट उतारा है। इनमें ब्लॉक स्तर से लेकर मंत्री और विधायक स्तर तक के नेता शामिल रहे हैं। हालांकि वे मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री तक नहीं पहुंच पाए लेकिन ऐसी बहुतेरी कोशिशें उनके द्वारा जरूर की गई हैं।
 
राज्य में विधानसभा चुनावों के दौरान सबसे ज्यादा राजनीतिज्ञों को निशाना बनाया गया। इसे आंकड़े भी स्पष्ट करते हैं। वर्ष 1996 के विधानसभा चुनावों में अगर आतंकी 75 से अधिक राजनीतिज्ञों और पार्टी कार्यकर्ताओं की हत्या करने में कामयाब रहे थे तो वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव उससे अधिक खूनी साबित हुए थे जब 87 राजनीतिज्ञ मारे गए थे। 2008 के चुनावों में भी राजनीतिज्ञ आतंकियों के निशाने पर रहे थे।
 
ऐसा भी नहीं था कि बीच के वर्षों में आतंकी खामोश रहे हों बल्कि जब भी उन्हें मौका मिलता वे लोगों में दहशत फैलाने के इरादों से राजनीतिज्ञों को जरूर निशाना बनाते रहे थे। अगर वर्ष 1989 से लेकर वर्ष 2005 तक के आंकड़ें लें तो 1989 और 1993 में आतंकियों ने किसी भी राजनीतिज्ञ की हत्या नहीं की और बाकी के वर्षों में यह आंकड़ा 8 से लेकर 87 तक गया है। इस प्रकार इन सालों में आतंकियों ने कुल 671 राजनीतिज्ञों को मौत के घाट उतार दिया।
 
अगर सिर्फ साल 2007 का रिकॉर्ड देखें तो आतंकियों ने 16 के करीब राजनीतिज्ञों को निशाना बनाने की कोशिश की। चौंकाने वाली बात इन कोशिशों की यह थी कि यह लोकतांत्रिक सरकार के सत्ता में रहते हुए अंजाम दी गईं जिस कारण जनता में जो दहशत फैली वह अभी तक कायम है।
 
अब जबकि राज्य में विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है, आतंकी भी अपनी मांद से बाहर निकलते जा रहे हैं। उन्हें सीमा पार से दहशत मचाने के निर्देश दिए जा रहे हैं। वे अपनी कोशिशों की शुरुआत भी कर चुके हैं। हालांकि बड़े स्तर के नेताओं को तो जबरदस्त सिक्योरिटी दी गई है पर निचले और मंझोले स्तर के नेताओं को चुनाव प्रचार के लिए बाहर निकलने में खतरा महसूस हो रहा है। ऐसे नेताओं को एक से दो व्यक्तिगत सुरक्षाकर्मियों की सुरक्षा मुहैया करवाई जा रही है जो आतंक के स्तर के आगे ऊंट के मुंह में जीरे के समान कही जा सकती है।

 
 
कब कब कितने राजनीतिज्ञों को मारा आतंकियों ने
 
1989--0
1990--14
1991--8
1992--12
1993--0
1994--8
1995--16
1996--75
1997--52
1998--45
1999--53
2000--30
2001--49
2002--87
2003--31
2004--60
2005--39

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