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हजारों मकड़ियों का 'दूध' निकाल चुका है यह शख्स

हमें फॉलो करें हजारों मकड़ियों का 'दूध' निकाल चुका है यह शख्स
, बुधवार, 10 फ़रवरी 2016 (14:12 IST)
आपने दुनिया में तरह-तरह के कामों के बारे में सुना होगा, लेकिन फिलीपींस में पैदा हुए और अमेरिका के न्यूयॉर्क में रहने वाले हेक्टर एगुइलन की नौकरी बहुत अनोखी है। वास्तव में, वे जहरीली मकड़ियों के जहर को निकालने का काम करते हैं। उल्लेखनीय है कि उन्हें ऐसा करते हुए 25 से भी अधिक समय हो चुका है। उन्हें आधिकारिक तौर पर बायोटेक्नोलॉजिस्ट या वेनम एक्सट्रैक्टर के तौर पर जाना जाता है। 
 
अब 47 वर्ष के हेक्टर एगुइलन फिलीपींस में पैदा हुए थे, लेकिन अपनी अनोखी नौकरी के कारण पिछले 25 वर्ष से न्यूयॉर्क में रह रहे हैं। वे अपने कार्यकाल में हजारों मकडि़यों का दूध यानी जहर निकालने का काम कर चुके हैं। उन्हें अनेक बार मकडि़यों ने काटा भी है लेकिन इसका उनके काम पर कोई असर नहीं पड़ा। शुरुआत में उन्हें थोड़ा डर लगा था लेकिन जब उन्हें मकडि़यों ने कई बार काटा तब भी उन्होंने अपना काम बंद नहीं किया।  
 
मिरर ऑनलाइन से बात करते हुए उन्होंने बताया कि मकड़ियां आर्कनिडा वर्ग का एक प्राणी होता है जिसमें मकड़ियों के अलावा बिच्छू भी आते हैं। वे कहते हैं कि ये ऐसे प्राणी हैं जिनसे डरने की कोई जरूरत नहीं होती हैं और मात्र कुछेक मकड़ियां ही जहरीली होती हैं जिनके काटने पर मनु्ष्यों पर असर पड़ता है।
 
वे कहते हैं कि फिल्म उद्योग के गलत प्रचार के चलते लोगों ने इनके बारे में गलत घारणाएं बना रखी हैं। सबसे पहले वे कॉर्बन डाईआक्साइड की मदद से मकड़ी को सुला देते हैं और इसके बाद उनका जहर निकालने के लिए हल्के करंट का इस्तेमाल करते हैं। 
 
वे तीन इंच की मकड़ी से एक बार में करीब 20 से 30 माइक्रोलिटर दूध या विष निकाल लेते हैं। वे मानते हैं कि उनका काम असामान्य और रोचक है, लेकिन इसे करने का अलग तरीका होता है। वे कहते हैं कि मकड़ियों में एक जहर ग्रंथि (वेनम डक्ट) होती है जिसका एक छोटा सा मुंह मकड़ी के फैंग (विषैले दांतों) के पास खुलता है। जब मकड़ी में हल्का करंट डाला जाता है तो प्रत्येक ग्रं‍थि के आसपास की मांसपेशियों में जहर भर जाता है जोकि हल्के से दबाव से दांतों के पास ग्रंथियों में आ जाता है और इसे इकट्‍ठा कर लिया जाता है।    
 
इसे जैव वैज्ञानिक तरीकों से प्रयोग करने या इसका परीक्षण करने से पहले फ्रीज करके रख दिया जाता है और बाद में विभिन्न बीमारियों की दवाएं बनाने में इसका प्रयोग किया जाता है। इसकी मदद से मिर्गी, विभिन्न तरह के कैंसर और नपुंसकता की दवाएं बनाई जाती हैं। रिसर्च से जुड़े समुदाय में इसकी भारी मांग होती है और यह प्रतिग्राम दस हजार डॉलर या इससे अधिक महंगा बिकता है। इसकी कीमत जहर के गुणों पर भी निर्भर करती है।   
 

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