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भूखे, बेघरों, अनाथों को प्यार बांटते, उन्हें अपना बनाते ये युवा

हमें फॉलो करें भूखे, बेघरों, अनाथों को प्यार बांटते, उन्हें अपना बनाते ये युवा
हैदराबाद , रविवार, 7 दिसंबर 2014 (12:22 IST)
-रवीन्द्र बावा
 
हैदराबाद। पिछले कुछ समय से हर रविवार हैदराबाद की सड़कों पर एक खास-सा नजारा नजर आता है। कुछ युवा अपने दुपहियों पर लजीज खाने के पैकेट लिए सड़कों पर बैठे बेसहारा, बेघर भूखे लोगों के पास आते हैं और उन्हें दुलार के साथ वह खाना खिलाते हैं। और यह खाना भी वह, जो इन युवाओं ने अपने हाथ से बनाया है।
'यंगिस्तान फाउंडेशन' नाम की एक संस्था के युवा सड़क पर रह रहे इन लोगों के साथ खुशियां बांटते हैं और ये सिलसिला हर रविवार को हैदराबाद की सड़कों पर देखने को मिलता है। इस संस्था के संस्थापक अरुण येलामाटी बताते हैं कि हमारा मकसद हर चेहरे पर हंसी लाने का है। सड़क पर रहने वालों को एक इज्जत की जिंदगी देने का है। हम युवाओं को समाज के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं।
 
येलामाटी और उनके साथी हर रविवार दोपहर मिलकर खाना बनाते हैं। बिरयानी या चावल और दाल, रायता या पूरी-सब्जी जैसे लजीज व्यंजन पैकेट में बांधकर लोगों में बांटे जाते हैं। फिर निकलती है सड़कों पर इन ‘हंगर हीरोज’ की टोली, जो बेघर-बेसहारा लोगों को खाना खिलाती है। 
 
इस टीम के एक सदस्य स्वरूप क्रिस्टफर, जो एक कैफे के मालिक हैं, उनका कहना है कि जब हम भूखे लोगों तक अपने हाथ से बनाया खाना पहुंचाते हैं तो वे हमें बहुत दुआ देते हैं। मेरे लिए वो खुशी और दुआ मेरे कैफे में कमाए हुए पैसे से कहीं ज्यादा अहम है।
 
क्रिस्टफर जैसे कई युवा अपनी छुट्टी का दिन इस अच्छे काम के लिए समर्पित करते हैं। कई ऐसे युवा हैं, जो कॉलेजों में पढ़ाई कर रहे हैं तो कई लोग अलग-अलग कंपनियों में काम कर रहे हैं।

येलामाटी के अनुसार लगभग 2 वर्ष पूर्व इन युवाओं ने खुशियां बांटने का यह अभियान शुरू किया और तब से शुरू हुआ खुशियां बांटने का यह सिलसिला...!
 
ये लोग यही नहीं थमे हैं। इन लोगों की एक दूसरी टीम है 'ट्रांसफॉर्मेरस' की। एक कॉल सेंटर में काम करने वाले और 'ट्रांसफॉर्मेरस' टीम के एक पुराने सदस्य प्रवीण के अनुसार- 'हम सड़क पर जब घूमते हुए इन लोगों की हालत देखते हैं जिसका हुलिया खराब है, हम उससे बातचीत करते हैं।' पिछले हफ्ते इन लोगों की नजर पोलियोग्रस्त रविंदर पर पड़ी थी।
 
रविंदर ने बताया कि 'मैंने एक महीने से दाढ़ी नहीं बनवाई थी, क्योंकि मेरे पास पैसे नहीं थे। इन लोगों ने मुझे खुद साफ-सुथरा किया, नहलाया-धुलाया। अब हर हफ्ते मैं इनका इंतजार करता हूं।' 
 
रविंदर जैसे कितने ही लोगों को सार्वजनिक स्नानघरों में नहलाया जाता है और नए कपड़े भी दिए जाते हैं। साफ-सफाई के बाद इनको पहचानना मु्श्किल हो जाता है और स्वाभाविक ही इनके चेहरे खिलखिला उठते हैं।
 
'ट्रांसफॉर्मेरस' की टीम में महिलाएं भी होती हैं और ये लोग फुटपाथ पर गुजर-बसर करने वाली महिलाओं के भी बाल काटती हैं। उन्हें नई साड़ी देती हैं। इस काम के लिए किसी को कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। शुरुआत में इन लोगों के हाथ में ज्यादा सफाई नहीं थी, पर अब काम करते-करते हाथ तेजी से चलने लगा है।
 
इसके अलावा ये युवा बच्चों के साथ भी काम करते हैं। 'हमारा काम यहीं खत्म नहीं होता। शनिवार को हमारे बहुते से साथी शहर के अलग-अलग अनाथ आश्रम में बच्चों को पढ़ाने जाते हैं। ऐसा करने से हम ये सुनिश्चित करते हैं कि बच्चों को बेहतर शिक्षा मिले', येलामाटी जोड़ते हैं। इन्हें कई लोग ऐसे भी मिलते हैं जिनकी हालत बेहद खराब होती है। ऐसे लोगों को ये किसी आश्रम में पहुंचाते हैं। 
 
तो... जरूरत है समाज के और भी वर्गों में प्यार बांटने की, अपनेपन की इस भावना को अपनाने की की। (वीएनआई) 

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