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दांपत्य में न लगाएँ दोस्ती का छोंक

विवाह के बाद भी जब दोस्ती रहे कायम

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गायत्री शर्मा

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हर रिश्ते की कुछ सीमाएँ होती है। जिनके लाँघने पर वह रिश्ता अपनी पवित्रता खो देता है। 'दोस्ती' भी एक ऐसा ही संबंध है, जो ताउम्र आपका साथ दे सकता है बशर्ते इसमें संबंधों का अतिरेक न हो।

जब व्यक्ति विवाह के बंधन में बँधता है तो इसी बंधन के साथ वह कई नई जिम्मेदारियों व रिश्तों को आत्मसात करता है।

विवाह के पूर्व की जिंदगी और बाद की जिंदगी में बहुत अंतर होता है। ऐसे में दंपत्तियों के बीच दोस्ती के रूप में कोई तीसरा व्यक्ति आकर उनकी निजी जिंदगी में दखलअंदाजी करे तो एक बसा-बसाया घर उजड़ जाता है।

जिनसे बाँटा था सुख-दु:ख :-
दोस्त वो होते हैं, जो हमें भली-भाँति जानते हैं। दोस्त से ही हम अपने सुख-दुख बाँटते हैं। कई ऐसी बातें होती हैं, जिसे हम अपने घरवालों से भी शेयर नहीं करते और अपने दोस्तों को बताते हैं।

हमारी जिंदगी में बहुत अधिक अहमियत रखने वाले दोस्त भी तब हमारा सिरदर्द बन जाते हैं, जब उनकी वजह से हमारे वैवाहिक रिश्तों में चरमराहट आने लग जाती है। इस स्थिति में यदि समझदारी से काम लिया जाए व ‍दोनों रिश्तों को टूटने से बचाया जाए तो वही हमारी समझदारी होगी।

जीवनसाथी को दे तवज्जो :-
दोस्त तो आते-जाते हैं परंतु पति-पत्नी को एक-दूसरे का साथ जीवनभर निभाना होता है। ऐसे में यदि हम थोड़ी समझदारी से काम लें तो हम नव जीवन में दस्तक देती खुशियों का स्वागत कर सकते हैं।

हमारे बचपन के, कॉलेज के, ऑफिस के कई ऐसे दोस्त होते हैं, जो हमारे लिए बहुत खास होते हैं। विवाह के बाद भी हम उन्हें उतना ही तवज्जो देते हैं, जितना कि पहले।

कई बार अपने जीवनसाथी के सामने सब कुछ भूलकर केवल दोस्तों का ही हो जाना हमारे दांपत्य जीवन में विवादों का ग्रहण लगा सकता है। इस तरह की परेशानियाँ खासकर उन लोगों को झेलनी पड़ती है, जो हरदम अपनी दोस्ती की शेखी बघारते रहते हैं।

दांपत्य में दोस्ती का छोंक लगने से बचाने के लिए इस रिश्ते को सहेज कर रखें। दोस्ती कोई बुरी चीज नहीं है। विवाह के पश्चात भी दोस्ती कायम रखी जा सकती है बशर्ते यह हमारे दांपत्य अधिकारों में अतिक्रमण न करे।

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