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आसान नहीं हाउस वाइफ होना..

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- भावना त्रिवेदी

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तड़के ही उठ जाती है, जुटती एक मशीन-सी। बेड टी, गरम नाश्ता और टिफिन की कोमल, फूली रोटियों का बंदोबस्त करती। अम्मा के नहाने का पानी रखना, फिर उनकी पूजा की थाली तैयार करना। इसी बीच याद आ जाते हैं कई काम, गेहूँ चुनने, ढेर सारे बिल भरने, पप्पू या मुन्नी के स्कूल के प्रोग्राम्स, सब्जियाँ खरीदना, मसाले कूटना और... और... और भी बहुत कुछ। हाँ और इन सबके बाद मिलता है एक ताना- 'तुम सारा दिन क्या करती हो?'

सुबह निक्की को व्हाइट यूनिफॉर्म के साथ ब्लैक जूते पहने देखे तो पति महोदय बरस पड़े- व्हाइट जूते कहाँ हैं? एक दिन पहले सब व्यवस्थित क्यूँ नहीं रखते, ऐनवक्त पर दौड़-भाग जरूरी है क्या।' निक्की के लाख ढूँढने पर भी सफेद जूते नहीं मिले तो मम्मी का कसूर। अब बारी मम्मी की थी, डाँट खाने की 'तुम्हें पता है यह तो है ही लापरवाह, तुम क्यूँ नहीं उसका सामान ठीक से रख देती? तुम्हें काम ही क्या है? कौन-सा नौकरी पर जाना है।'

बहुत समय पहले टीवी पर एक धारावाहिक आता था 'गृहलक्ष्मी का जिन्ना' जिसमें गृहलक्ष्मी यानी हाउस वाइफ की परेशानियाँ दूर करने के लिए प्रेशर कुकर से निकले एक जिन्न की परिकल्पना दिखाई गई थी। वह देखकर और कोई खुश हुआ या नहीं पर सारी गृह-लक्ष्िमयाँ जरूर खुश हो जाया करती थीं।
तड़के ही उठ जाती है, जुटती एक मशीन-सी। बेड टी, नाश्ता और टिफिन की फूली रोटियों का बंदोबस्त करती। अम्मा के नहाने का पानी और पूजा की थाली तैयार करना। इसी बीच याद आ जाते हैं कई काम, गेहूँ चुनने, बिल भरने, बच्चों के स्कूल प्रोग्राम्स, सब्जी खरीदना और....!
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मध्यमवर्गीय या सामान्य घरों में आमतौर पर पत्नी को ही सारे कार्य करने होते हैं। सुबह चाय-नाश्ता, सफाई, बच्चों को नहलाना, खाना बनाना, कपड़े धोना, प्रेस करना, ये सब काम वैसे तो आसान हैं। भई दिन के 12 घंटे क्या कम हैं, जो आप शिकायत करेंगी। उस पर पतिमहोदय दोपहर में फोन पर ताना मार ही देते हैं- क्या कर रही हो? सो रही होगी और क्या करोगी लंबी-चौड़ी दोपहर है, करोगी भी क्या? इस ताने से छलनी-छलनी हुई पत्नी कुछ बोले, उसके पहले पति महोदय फोन पटक देते हैं।

घर के काम कहने को आसान हैं, लेकिन लाख समय-सारणी से चलने के बाद भी पत्नियों की व्यस्तता कम नहीं होती। कई घरों में तो बच्चों की फीस, बाजार का काम, किराना, बिजली, टेलीफोन आदि के बिल जमा करना, बैंक जाना जैसे काम भी उसी के हिस्से आते हैं और समय का रोना रोने पर वही 'दोपहर में क्या करोगी?' का ताना मिलता है।

पति महोदय नहाकर तौलिया वहीं रखेंगे जहाँ उन्हें आसानी हो चाहे यह पत्नी का सिरदर्द ही क्यूँ न बन जाए। बच्चों के खिलौने समेटना, क्रीम- पावडर या तेल की शीशी के ढक्कन खुले छोड़ना और उन्हें लगाना, यह काम पत्नी के हिस्से ही आते हैं। सुबह उठने से लेकर बच्चों वपति के ऑफिस जाने तक क्या चाय का एक प्याला फुर्सत से बैठकर पीने को मिल सकता है, नहीं। वह भी चलते-चलते ही गले उतारना पड़ता है।

शाम को बच्चों के बैग, वाटर बैग, लंच बॉक्स, जूते-मोजे, अगर उसने सही जगह नहीं रखे तो पति क्या बच्चे ही उसे सूली पर चढ़ा देंगे। इन सबके चलते मायके जाना या किसी अन्य कार्यक्रम में जाना हो, तो घर में कोर्ट मार्शल-सा लग जाता है।

केजी में पढ़ने वाले निट्टूजी हों या 8वीं में पढ़ने वाली निक्की, बोलेंगे- 'मम्मी आप चली जाएँगी तो हमारा टिफिन कौन बनाएगा? यूनिफॉर्म कौन धोएगा, न नन आप नहीं जाएँगी। इधर पति महोदय भी तुनककर बोलेंगे- गैस सिलेंडर वाला आने वाला है। वह चला गया तो, गैस की तो वैसे ही किल्लत चल रही है। निट्टू को होमवर्क कौन करावएगा?

'मम्मी आप चली जाएँगी तो हमारा टिफिन कौन बनाएगा? यूनिफॉर्म कौन धोएगा, न नन आप नहीं जाएँगी। इधर पति महोदय भी तुनककर बोलेंगे- गैस सिलेंडर वाला आने वाला है। वह चला गया तो, गैस की तो वैसे ही किल्लत चल रही है। निट्टू को होमवर्क कौन करावएगा?
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अरे अभी तो तुम रहने ही दो, बाद में कभी चली जाना वैसे भी क्या करोगी जाकर। क्यूँ बाद में या फिर भी क्या कोई जिन्ना आ जाएगा या कोई चमत्कार हो जाएगा या उक्त सारी समस्याएँ नहीं रहेंगी। इन सबसे परे रहकर क्या कभी उस पत्नी या गृहलक्ष्मी जिसे कहा जाता है, जिसका पढ़ा-लिखा होना, नौकरी न कर घर संभालने का निर्णय लेना ही उसके लिए सबसे बड़ा गुनाह बन गया है, के बारे में किसी ने सोचा है? जो स्वयं के लिए या मनोरंजन के लिए भी तरस जाती है। रात में टीवी सीरियल यह सोचकर छोड़ देती है कि दिन में देख लेगी और दिन में यह सोचकर छोड़ देती है कि रात में देख लेगी। दिन-रात की यह व्यस्तता उसे बीमार भी तो कर सकती है।

आपकी छोटी-सी मदद यानी घर के अन्य सदस्य जैसे लड़कियाँ, जो छठी, सातवीं कक्षा में पढ़ती हैं, इतनी समझ तो रखती ही हैं, जैसे स्कूल से आते ही अपना बैग, जूते-मोजे, कॉपी-किताब, लंच बॉक्स अपने नियत स्थान पर रखें। साथ ही अपने छोटे भाई-बहन की भी चीजें संभाल लेंतो यह समय मम्मी का बच जाएगा।

बच्चे स्कूल जाते समय व पति महोदय ऑफिस जाते समय क्रीम, तेल या पावडर का ढक्कन लगा दें, तौलिया सही से रख दें, पलंग की चादर ठीक कर दें, सोफे के बेतरतीब कवर ठीक से लगा दें, न्यूज पेपर्स, मैग्जीन्स, जो सुबह-सुबह पति महोदय ही फैला देते हैं, वे ही ठीक कर दें, तो यह समय पत्नी का बच जाएगा व घर का दूसरा काम ठीक से हो पाएगा।

एक पत्नी, एक माँ जो सहयोग, समर्पण, त्याग, ममता कई भाव अपने में समाए होती है, आपके थोड़े से सहयोग और प्रेम से दुगुने उत्साह से, स्फूर्ति से वे ही सारे कार्य कर सकती है जो कहने को घर के काम कहलाते हैं, जिनमें एक पत्नी या एक माँ की महती भूमिका होती है। आपके थोड़े से सहयोग से शायद वह गृहलक्ष्मी के जिन्न की परिकल्पना से उबर पाएगी।

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