'मम्मी आप चली जाएँगी तो हमारा टिफिन कौन बनाएगा? यूनिफॉर्म कौन धोएगा, न नन आप नहीं जाएँगी। इधर पति महोदय भी तुनककर बोलेंगे- गैस सिलेंडर वाला आने वाला है। वह चला गया तो, गैस की तो वैसे ही किल्लत चल रही है। निट्टू को होमवर्क कौन करावएगा?
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अरे अभी तो तुम रहने ही दो, बाद में कभी चली जाना वैसे भी क्या करोगी जाकर। क्यूँ बाद में या फिर भी क्या कोई जिन्ना आ जाएगा या कोई चमत्कार हो जाएगा या उक्त सारी समस्याएँ नहीं रहेंगी। इन सबसे परे रहकर क्या कभी उस पत्नी या गृहलक्ष्मी जिसे कहा जाता है, जिसका पढ़ा-लिखा होना, नौकरी न कर घर संभालने का निर्णय लेना ही उसके लिए सबसे बड़ा गुनाह बन गया है, के बारे में किसी ने सोचा है? जो स्वयं के लिए या मनोरंजन के लिए भी तरस जाती है। रात में टीवी सीरियल यह सोचकर छोड़ देती है कि दिन में देख लेगी और दिन में यह सोचकर छोड़ देती है कि रात में देख लेगी। दिन-रात की यह व्यस्तता उसे बीमार भी तो कर सकती है।
आपकी छोटी-सी मदद यानी घर के अन्य सदस्य जैसे लड़कियाँ, जो छठी, सातवीं कक्षा में पढ़ती हैं, इतनी समझ तो रखती ही हैं, जैसे स्कूल से आते ही अपना बैग, जूते-मोजे, कॉपी-किताब, लंच बॉक्स अपने नियत स्थान पर रखें। साथ ही अपने छोटे भाई-बहन की भी चीजें संभाल लेंतो यह समय मम्मी का बच जाएगा।
बच्चे स्कूल जाते समय व पति महोदय ऑफिस जाते समय क्रीम, तेल या पावडर का ढक्कन लगा दें, तौलिया सही से रख दें, पलंग की चादर ठीक कर दें, सोफे के बेतरतीब कवर ठीक से लगा दें, न्यूज पेपर्स, मैग्जीन्स, जो सुबह-सुबह पति महोदय ही फैला देते हैं, वे ही ठीक कर दें, तो यह समय पत्नी का बच जाएगा व घर का दूसरा काम ठीक से हो पाएगा।
एक पत्नी, एक माँ जो सहयोग, समर्पण, त्याग, ममता कई भाव अपने में समाए होती है, आपके थोड़े से सहयोग और प्रेम से दुगुने उत्साह से, स्फूर्ति से वे ही सारे कार्य कर सकती है जो कहने को घर के काम कहलाते हैं, जिनमें एक पत्नी या एक माँ की महती भूमिका होती है। आपके थोड़े से सहयोग से शायद वह गृहलक्ष्मी के जिन्न की परिकल्पना से उबर पाएगी।