किशोरावस्था की समस्याओं में मां की भूमिका बेटी के प्रति और पिता की भूमिका बेटे के प्रति ज्यादा महत्वपूर्ण होती है।
होता यूं है कि चूंकि लड़कियों में होने वाले परिवर्तनों के प्रति एक खास किस्म की संवेदनशीलता होती है, इसलिए लड़कों में होने वाले हार्मोनल परिवर्तनों को लेकर खासकर भारतीय समाज में गहरी उदासीनता है जबकि किशोर होते लड़कों को भी उतने ही मानसिक संबल और सहानुभूति की दरकार होती है, जितनी लड़कियों को और इस दौरान पिता की भूमिका लड़कों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।
हार्मोंस और शारीरिक परिवर्तनों के दौर से गुजर रहे बच्चे के मन में इस दौर में सेक्स को लेकर ढेरों सवाल होते हैं और दूसरी ओर पैरेंट्स का अनुशासन और हिदायतों का शिकंजा और ज्यादा कसता जाता है। अगर आपका बेटा किशोरावस्था की दहलीज पर है तो वह शारीरिक और मानसिक सामंजस्य कैसे स्थापित करे, यह उसके लिए ही नहीं बल्कि आपके लिए भी एक बड़ा सवाल होता है।
लड़कों में होने वाले हार्मोंनल परिवर्तन की वजह से उन्हें गुस्सा ज्यादा आता है और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है। थोड़े समय बाद दाढ़ी-मूँछ आना शुरू हो जाती है और आवाज में भी भारीपन आ जाता है जो कुछ समय बाद सही हो जाता है जिसका दूसरे बच्चे मजाक उड़ाते हैं। लड़कों को उनके शरीर में होने वाले परिवर्तनों के विषय में बताएं।