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भगवान आदिनाथ का मस्तकाभिषेक

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दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र बावनगजा में चल रहे वार्षिक मेले के अंतर्गत मंगलवार को भगवान आदिनाथ निर्वाण कल्याणक दिवस मनाया गया। इसके तहत भगवान आदिनाथ का जल से मस्तकाभिषेक कर निर्वाण लाड़ू चढ़ाया गया। शोभायात्रा भी निकाली गई।

आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज की शिष्या आर्यिका रत्न पूर्णमति माताजी के ससंघ सान्निध्य में मस्तकाभिषेक और अन्य धार्मिक आयोजन हुए। प्रातःकाल नित्य पूजन, अभिषेक, शांतिधारा हुई। भक्तामर विधान पूजन हुआ। तपश्चात आचार्यश्री के चित्र का अनावरण किया गया।

वार्षिक मेले के समापन अवसर पर आर्यिका पूर्णमति माताजी ने प्रवचन में कहा कि हम वे क्रियाएँ करते हैं, जिससे सुख हमसे दूर भागता है। हमें सुख अपने अंदर ही ढूँढना चाहिए, जबकि हम उसे बाहर ढूँढते हैं। अपने अंतरमन में देखो, अपने आप को पहचानो। अज्ञानी को अपने नाम की चिंता रहती है, जबकि ज्ञानी बगैर किसी चाह के पुरुषार्थ कर अपने किए कार्य को भूल जाते हैं। अज्ञानी खाने के लिए जीता है और ज्ञानी जीने के लिए खाता है।

जैन पुराणों में उल्लेखित चौहह कुल करों में अंतिम इक्ष्वाकुवंशी राजा नाभिराय के पुत्र ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हुए। वे जन्म से ही मति, श्रुति और अवधि ज्ञान के धारक थे। उन्होंने विश्व को षटकर्मों का उपदेश दिया।

निर्वाण महोत्सव के पर्व पर दिगंबर जैन मंदिर ऋषभदेव की प्रतिमा का जल से अभिषेक किया गया।

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