Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

नास्तिक धर्म और दर्शन

और कोई नहीं जीवन ही है प्रभु

हमें फॉलो करें नास्तिक धर्म और दर्शन

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

ND
दुनिया के प्रमुख नास्तिक दर्शन या धर्म में चर्वाक, जैन और बौद्ध का प्रमुख स्थान और महत्व है। सभी तरह की नास्तिक विचारधारा का उद्‍गम यही तीन धर्म हैं। नास्तिक कहने से यह आभासीत होता है कि ये धर्म ईश्वर को नहीं मानते हैं, जबकि चर्वाक को छोड़ दें तो बाकी दोनों धर्म का दृष्टिकोण इस संबंध में बिलकुल अलग है।

बौद्ध धर्म ईश्वर के होने या नहीं होने पर चर्चा नहीं करता, क्योंकि यह बुद्धिजाल से ज्यादा कुछ नहीं है। उनका मानना है कि इस प्रश्न को आप तर्क या अन्य किसी भी तरह से हल नहीं कर सकते। ईश्वर के होने या नहीं होने की बहस का कोई अंत नहीं। ठीक उसी तरह कि स्वर्ग-नरक है या नहीं। मूल प्रश्न यह है कि व्यक्ति है और वह दुःख तथा बंधन में है। उसके दुःख व बंधन का मूल कारण खोजो और मुक्त हो जाओ। आष्टांगिक मार्ग पर चलकर दुःख व बंधन से मुक्त हुआ जा सकता है। यही आर्य सत्य है।

जैन दर्शन अनुसार अस्तित्व या सत्ता के दो तत्व हैं- जीव और अजीव। जीव है चेतना या जिसमें चेतना है और अजीव है जड़ अर्थात जिसमें चेतना या गति का अभाव है। जीव दो तरह के होते हैं एक वे जो मुक्त हो गए और दूसरे वे जो बंधन में हैं। इस बंधन से मुक्ति का मार्ग ही कैवल्य का मार्ग है। स्वयं की इंद्रियों को जीतने वाले को जिनेंद्र या जितेंद्रिय कहते हैं। संस्कृत के 'जिन' धातु से बने 'जैन' शब्द का अर्थ ही यही होता है, स्वयं को जीतना। यही अरिहंतो का मार्ग है। जितेंद्रिय बनकर जीओ और जीने दो यही जिन सत्य है।

webdunia
WD
चर्वाक या लोकायत दर्शन स्पष्ट तौर पर 'ईश्वर' के अस्तित्व को नकारते हुए कहता है कि यह काल्पनिक ज्ञान है। तत्व भी पाँच नहीं चार ही हैं। आकाश के होने का सिर्फ अनुमान है और अनुमान ज्ञान नहीं होता। जो प्रत्यक्ष हो रहा है वही ज्ञान है अर्थात दिखाई देने वाले जगत से परे कोई और दूसरा जगत नहीं है। आत्मा अजर-अमर नहीं है। वेदों का ज्ञान प्रामाणिक नहीं है। यथार्थ और वर्तमान में जीयो। ईश्वर, आत्मा, स्वर्ग-नरक, नैतिकता-अनैतिकता और तमाम तरह की तार्किक और दार्शनिक बातें व्यक्ति को जीवन से दूर करती हैं। इसीलिए खाओ, पियो और मौज करो। इस जीवन का भरपूर मजा लो यही चर्वाक सत्य है।

अंतत: जैन और बौद्ध दर्शन की शिक्षा 'मुक्ति' की शिक्षा है। स्वयं को जानने की शिक्षा है। सत्य और अहिंसा की शिक्षा है किंतु चर्वाक दर्शन पूरी तरह से भौतिकवादी दर्शन होने के कारण इसका भारतीय दर्शन, धर्म और समाज में कोई महत्व नहीं रहा, क्योंकि यह दर्शन आत्मा के अस्तित्व को भी नकारता है। उसकी नजर में देह ही आत्मा है और मृत्यु ही मोक्ष है। शायद यही कारण रहा कि छठी शताब्दी आते-आते इस दर्शन के मूलग्रंथ और मान्यताएँ अपना अस्तित्व खो बैठीं। इस दर्शन को भी वैदिक दर्शन जितना पुराना ही माना जाता है।

कुछ लोग यह कहते और लिखते भी हैं कि बौद्ध धर्म भी आत्मा के अस्तित्व को नहीं मानता, जबकि यह गलत है। निर्वाण आत्मा को ही प्राप्त होता है किसी और को नहीं। इंद्रियविहीन 'शुद्ध चैतन्य' इस तरह से होता है जैसे कि है ही नहीं। भगवान बुद्ध ने कहा था कि 'अपने दिए खुद बनो।' दूसरों के दीपक से तुम्हारा दीपक कभी नहीं जल पाएगा।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi