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पचपन में नहीं, बचपन में अपनाएं गीता

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'गीता' को तो मानते हैं लेकिन 'गीता' की नहीं मानते हैं। 
 
- पुरुषोत्तमदास विजयवर्गीय
 
श्रीमद् भगवद्गीता एक परम रहस्यमय ग्रंथ है। सभी धर्मों व सम्प्रदायों में गुरु की महत्ता ही सर्वोपरि है। भारत में सभी धर्मों के लोग प्रेम से मिलकर रहते हैं और यही गीता की शिक्षा भी है। श्रीवल्लभ सत्संग वंश में इस ग्रंथ को बचपन में ही अपना लिया जाता है। 
 

 
वर्तमान में गीता को मानने के साथ-साथ जानना भी जरूरी है। जिस दिन इसे जान लेंगे, तो मन के कुरुक्षेत्र में चल रहे महाभारत को कृष्ण जैसा सारथी मिल जाएगा और मोक्ष की मंजिल तक पहुंचा देगा। हम 'गीता' को तो मानते हैं लेकिन 'गीता' की नहीं मानते हैं। 
 
गीता का सिद्धांत है कि उपयोगी बने उपभोगी नहीं, भले ही हम थोड़े समय जीएं पर उपयोगी बनकर जीएं। आस्था में इतनी शक्ति होती है कि हनुमान को समुद्र भी छोटा लगा और उन्होंने उसे लांघ दिया। जो चित्त में विवेक, साहस, दर्शन, ओज और बुद्धि पैदा कर दे, वह भी श्री श्रीजी श्रीनाथजी हैं। तीन बार श्री कृष्ण शरणंमम नमः बोलकर तुलसी की कंडी से छूकर मन में भगवान का ध्यान करें। 
 
श्रीमद् भगवद्गीता एक परम रहस्यमय ग्रंथ है। सभी धर्मों व सम्प्रदायों में गुरु की महत्ता ही सर्वोपरि है। भारत में सभी धर्मों के लोग प्रेम से मिलकर रहते हैं और यही गीता की शिक्षा भी है। 
 
पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक शुद्धाद्वैत दर्शन के महान आचार्य महाप्रभुजी वल्लभाचार्यजी के स्वरूप को श्री हरिराय महाप्रभुजी ने वल्लभ साखी में प्रतिपादित किया है। महाप्रभुजी ही वंदनीय हैं और उनके चरणों के प्रताप से ही प्रभु प्राप्ति होती है। जीवन के छोटे-छोटे आयामों की चर्चा कर उन्होंने धर्म का मर्म दिलों में उतारा है। 
 
भागवत गीता को पचपन में नहीं बचपन में अपनाएं। यही मोक्ष एकादशी पर्व पर श्रद्धालुओं की गीता महोत्सव पर्व आराधना, साधना, प्रार्थना, नवीन कल्पना प्रार्थना है। श्री श्रीजी श्रीनाथजी के नाथद्वारा के गोद में ठाकुरजी श्री नवनीत प्रियाजी (लालन) को सब समर्पित कर जीवन के आनंद में डूब लो। प्रभु का नाम लेकर सब आगे बढ़ें।
 

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