Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

मूर्ति पूजा क्यों : महत्व और अनुभव

हमें फॉलो करें मूर्ति पूजा क्यों : महत्व और अनुभव
डॉ. रामकृष्ण सिंगी 
 
अपने आराध्य या इष्टदेव के स्वरूप को पत्थर या मिट्टी की मूर्ति में रूपायित कर (तथा उसको अपनी कल्पनानुसार श्रृंगारित करके) उसके रूबरू होने की हमारी आकांक्षा ने हमें मूर्ति पूजा की प्रेरणा दी। निराकार परमेश्वर का तो कोई स्वरूप गढ़ा नहीं जा सकता था अत: उसके अवतारों या पौराणिक स्वरूपों की मूर्तियां गढ़ी जाने लगीं।


प्राचीन मंदिरों की बाहरी दीवारों, गर्भगृहों, मंडपों, स्तंभों, गोपुरम, गुंबजों में अज्ञात कलाकारों द्वारा ऐसी असंख्‍य मूर्तियां गढ़कर सज्जित कर दी गई हैं कि जिन्हें देखकर मोहित, आत्मविस्मृत, स्तब्ध, तन्मय, विभोर और अनोखे दैवी भाव से संतृप्त ही हुआ जा सकता है। भारत के असंख्य मंदिर इस कलात्मक खजाने से भरे हुए हैं और यह हमारी संपूर्ण संपन्न सांस्कृतिक धरोहर का गौरवमय कोष है।
 
मूर्तियां ऐसी कि उनके नाक, नक्श, मुस्कान, भाव-भंगिमाएं, शरीर-सौष्ठव, देहयष्टि, श्रृंगार, आभरण, मुद्राएं अनुपम और आलौकिक हैं और भावप्रवण दर्शकों को दैवी अनुभूति से निहाल करती हैं। चाहिए आपकी तन्मयता और निर्निमेष देखने की ललक, उस आनंद में खो जाने की तत्परता और न्योछावर हो जाने का मनोभाव। आनंदातिरेक के ये क्षण मैं कई बार अनुभव कर सका हूं। अद्भुत और वर्णनातीत। सौभाग्यशाली हैं वे, जो इन क्षणों को आत्मसात करने की क्षमता से संपन्न हैं।
 
मनोहारी मूर्तियों में विष्णु, कृष्ण, राम, देवी की कलात्मक रूप से गढ़ी गईं और श्रृंगारित मूर्तियां दर्शनीय और आत्मविभोरकारी हैं तथा बुद्ध की प्रतिमाएं अनंत शांति और मानसिक तोष प्रदान करती हैं। ऐसी कि आप एकटक, निर्निमेष, स्तब्ध, आत्मविस्मृत होकर निहारते रहिए और दैवी आनंद से अभिभूत हो जाइए।
 
अनर्थ तब हुआ जब प्रतीकात्मक मूर्तियों का चलन हुआ। पहाड़ी देवस्थानों में अनगढ़ चट्टानें या पाषाण शिलाएं ही मूर्ति के रूप में स्थापित कर दी गईं अथवा किसी शिला या पत्थर पर सिंदूर लेप कर, चमकदार वर्कों से सज्जित कर आंखें, नाक, मूछें चिपकाकर उन्हें हनुमान, भैरव, काली और अन्य देवियों के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया गया। बाद में ये मंदिर चमत्कार और कामना पूर्ति के स्थानों के रूप में प्रचारित और प्रसिद्ध कर दिए गए। कामना पूर्ति की मन्नतें मांगने वालों की भीड़ और अनंत चढ़ावों ने इन देवस्थानों को ऐसी प्रसिद्धि और भव्यता दी कि कलात्मक मंदिर गौण व वीरान हो गए। हमारी अमर सांस्कृतिक धरोहर विदेशी पर्यटकों का इंतजार करती उदास बिखरी पड़ी है, कलात्मक दृष्टि गायब है और मानसिक आस्‍थाएं भौतिक आस्थाओं के पीछे लुप्त हो गई हैं। अब यह मूर्ति पूजा पाखंड, दुकानदारी, अंधविश्वास और आमोद यात्राओं का शगल बन रही है, जो धार्मिक आस्‍थाओं, सांस्कृतिक परंपराओं, नई पीढ़ी के विश्वासों और नैतिक जीवन की आवश्यकताओं के लिए घातक है। अब इस दिशा में जरूरत है सजग और चिंतनशील लोगों द्वारा पुनरावलोकन की तथा कलात्मक दृष्टिकोण के पुनर्प्रचार द्वारा सही दृष्टिकोण की पुनर्स्थापना की।
 
एक मूर्तिकार के उद्गार आज कितने सटीक लगते हैं-
 
'या खुदा, तेरे बनाए हुए बुत,
देख ये कैसे शैतान बन बैठे हैं।
 
और मेरे बनाए हुए बुत,
मंदिरों में भगवान बन बैठे हैं।।'
 
(बुत=मूर्ति)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi