Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

वेदों-पुराणों में वर्ण‍ित है वृक्षारोपण की महिमा

हमें फॉलो करें वेदों-पुराणों में वर्ण‍ित है वृक्षारोपण की महिमा

WD

, बुधवार, 22 मार्च 2017 (15:56 IST)
मत्स्य पुराण में अनेकानेक प्रकार के वृक्षों की महिमा एवं सामाजिक जीवन के महत्व में बारे में वर्णण करते हुए वृक्षों को लगाने से कौन-कौन से पुण्य-फल प्राप्त होते हैं, विस्तार से दिया गया है। वृक्षों की महिमा का बखान करते हुए कहा गया है कि - “ दस कुओं के बराबर एक बावड़ी, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र, और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है।

भविष्य पुराण के अध्याय 10-11 में विभिन्न वृक्षों को लगाने और उनका पोषण करने के बारे में वर्णन किया गया है -“ जो व्यक्ति छाया, फूल और फल देने वाले वृक्षों का रोपण करता है या मार्ग में तथा देवालय में वृक्षों को लगाता है, वह अपने पितरों को बड़े-बड़े पापों से तारता है और रोपणकर्ता इस मनुष्यलोक में महती कीर्ति तथा शुभ परिणाम प्राप्त करता है। अतः वृक्ष लगाना अत्यंत शुभदायक है। जिसको पुत्र नहीं है, उसके लिए वृक्ष ही पुत्र है।
 
भारतीय जन जीवन में वृक्षों को देवता की अवधारणा परंपरा के फलस्वरुप इनकी पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान श्रीकृष्ण जी ने विभूतियोग में गीता में “अश्वत्थः सर्व वृक्षाणाम” कहकर वृक्षों की महिमा का गान किया है। एकान्यपुराण के अनुसार “अश्वस्थ” (पीपल) वृक्ष के तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्री हरि और फलों में सब देवताओं से युक्त अच्युत सदा निवास करते हैं।
 
 “भगवतपुराण”  के अनुसार द्वापरयुग में श्रीकृष्ण जी इसी वृक्ष के नीचे ध्यानावस्थित हुए थे। भगवान बुद्ध को सम्बोधिकी प्राप्ति बोध-गया में पीपल के वृक्ष के नीचे ही प्राप्त हुई थी। मत्स्यपुराण के 101 वें अध्याय तथा पद्मपुराण सृष्टिखण्ड, अध्याय 20 में प्रकीर्ण वॄत करने वालों को प्रातः अश्वस्थ वृक्ष का पूजन करना अनिवार्य बताया है। भविष्य पुराण के अनुसार दधीचि ऋषि के पुत्र महर्षि पिप्पलाद ने जो अथवर्ण पैप्पलाद संहिता के द्रष्टा हैं, जो पीपल वृक्ष द्वारा ही पालित हुए, पीपल के पेड़ के नीचे ही तपस्या की।
 
हमारे पुराणों में केवल पीपल के वृक्ष और वटवृक्ष का ही गुणगान नहीं किया है बल्कि अनेकानेक वृक्षों को लगाने और पूजा-अर्चना करने से मिलने वाले अमुल्य वरदानों की भी चर्चा की गई है। जैसे- अशोक का पेड़ लगाने से शोक नहीं होता, पाकड़-वृक्ष स्त्री प्रदान करवाता है, ज्ञान रुपी फल भी देता है। बिल्व वृक्ष दीर्घ आयु प्रदान करता है। जामुन का वृक्ष धन देता है, तेंदू का वृक्ष कुलवृद्धि कराता है। अनार का वृक्ष स्त्री-सुख प्राप्त कराता है। बकुल पाप नाशक, वजुल बलबुद्धिप्रद है। वटवृक्ष मोदप्रद, आम्र वक्ष अभीष्ट कामनाप्रद और गुवारी (सुपारी) वृक्ष सिद्धिप्रद है। वल्लल, मधुक (महुआ) तथा अर्जुन-वृक्ष सब प्रकार का अन्न प्रदान करता है। कदंब वृक्ष से विपुल लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इमली का वृक्ष धर्म दूषक माना गया है। शमी-वृक्ष रोगनाशक है। केशर से शत्रुओं का विनाश होता है। स्वेत वट धन प्रदान, पनस (कटहल) वृक्ष मंद बुद्धिकारक है। मर्कटी (केवांच) एवं कदम-वृक्ष के लगाने से संतति का क्षय होता है। शीशम, अर्जुन, जयंती करवीर, बेल, तथा पलाश-वृक्षों के अरोपण से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
 
वृक्षों में वट-वृक्ष का अपना विशेष महत्व है। पुराणों में उल्लेखित हैं कि इसमें देवताओं का वास होता है। इस वृक्ष की पूजा-अर्चना करने से सति सावित्री ने अपने मृत पति को यमराज के फंदे से छुड़ा लाया था। अनेकानेक ग्रंथों में इस वृक्ष की महिमा का गान किया है।
 
वटवृक्ष की महिमा -  
वटवृक्ष को देवताओं का वृक्ष अर्थात देववृक्ष कहा गया है। इस वृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में जनार्दन विष्णु तथा अग्रभाग में देवाधिदेव महादेव स्थित रहते हैं। देवी सावित्री भी इसी वटवृक्ष में प्रतिष्ठित रहती हैं।
 
वटमूले स्थितो ब्रह्मा, वटमध्ये जनार्दनः 
वटाग्रे तु शिवो देव सावित्री वटसंश्रिता।
 
इसी अक्षयवट के पत्रपुटक पर प्रलय के अंति‍म चरण में भगवान श्री कृष्ण ने बालरुप में मार्कण्डेय ऋषि को प्रथम दर्शन दिया था। 
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बाल मुकुंदं मनसा स्मरामि।
प्रयागराज में गंगा के तट पर वेणीमाधव के निकट “अक्षयवट” प्रतिष्ठित है। भक्त शिरोमणि तुलसीदास जी ने संगम-स्थित इस अक्षय-वट को तीर्थराज का छत्र कहा है। 
 
संगमु सिंहासनु सुठि सोहा..छत्रु अखयबटु मुनि मनु मोहा. (रा.च.मा.२/१०५/७)
इसी प्रकार तीर्थों में पंचवटी का भी विशेष महत्त्व है। पांच वट वृक्षों से युक्त स्थान को पंचवटी कहा गया है। कुम्भजमुनि के परामर्श से भगवान श्रीराम ने सीता जी एवं लक्षमण के साथ वनवास काल में यहीं निवास किया था। 
 
“है प्रभु प्ररम मनोहर ठाऊं, पावन पंचवटी तेहि नाऊं।
 दंडक बन पुनीत प्रभु करहू, उग्र साप मुनिवर कर हरहू।
वास करहु तहं रघुकुल राया,कीजे सकल मुनिन्ह पर दाया।
चले राम मुनि आयसु पाई,तरतहि पंचवटी निअराई।।
 
अगस्त मुनि ने श्रीरामजी से कहा कि यह एक अत्यंत पवित्र स्थान है, जिसका नाम पंचवटी है। हे प्रभो ! दंडक वन को पवित्र कीजिए और गौतम ऋषि के श्राप को तुरंत हर ली‍जिए। हे रघुनाथ ! आप वहां जाकर निवास कीजिए और सब मुनियों पर दया करिए। श्री रामजी मुनि की आज्ञा पाकर चले और फि‍र तुरंत ही पंचवटी के समीप गए। 
 
गीधराज सैं भेंट भै, बहु बिधि प्रीति बढ़ाइ
गोदावरी निकट प्रभु,रहे परन गृह छाइ। (गोदावरी के निकट पंचवटी में प्रभु ने निवास किया)
 
वाल्मिक रामायण – श्रीराम के पूछने पर महर्षि अगस्त ने उन्हें पंचवटी में आश्रम बनाकर रहने का आदेश दिया और मार्ग भी बतलाया।
 
एतदाल्क्ष्यते वीर मधूकानां महावनम, उत्तरेणास्य गन्तव्यं न्यप्रोधमपि गच्छता
ततः स्थलमुपारुह्या पर्वतस्याविदूरतः, ख्यात पंचवटीत्येव नित्यपुष्पितकाननः
 
अर्थात- वीर ! यह जो महुओं का विशाल वन दिखाई देता है, उसके उत्तर से होकर जाना चाहिए। उस मार्ग से जाते हुए आपको आगे एक बरगद का वृक्ष मिलेगा। उससे आगे कुछ दूर ऊंचा मैदान है, उसे पार करने के बाद एक पर्वत दिखाई देगा। उस पर्वत से थोड़ी ही दूरी पर पंचवटी नाम से प्रसिद्ध सुंदर वन है, जो सदा फूलों से सुशोभित रहता है।
 
इसी वटवृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पतिव्रत से मृत पति को पुनर्जीवित किया था। तबसे यह व्रत वट-सावित्री के नाम से जाना जाता है। ज्येष्टमास के व्रतों में “वटसावित्री-व्रत” एक प्रभावी व्रत है। इसमें वटवृक्ष की पूजा की जाती है। महिलाएं अपने अखण्ड सौभाग्य एवं कल्याण के लिए यह व्रत करती हैं। सौभाग्यवती महिलाएं श्रद्धा के साथ ज्येष्ट कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों का उपवास रखती हैं। “मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थ ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्रीव्रतमहं करिष्ये”, इस प्रकार संकल्प करते हुए वरदान प्राप्त करती हैं कि उनका सुहाग बना रहे. साथ ही वे यम का भी पूजन करती हैं. पूजन की समाप्ति पर स्त्रियां उसके मूल को जल से सींचती हैं और उसकी परिक्रमा करते समय एक सौ आठ बार या यथाशक्ति सूत लपेटती हैं। सत्यवान-सावित्री की कथा का पाठ करती हैं। कथा में वर्णित हैं कि इस वृक्ष की पूजा करने से सावित्री ने अपने मृत पति को यमराज के फंदे से छुड़ा लाई थी।
गोवर्धन यादव

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

आज के परिप्रेक्ष्य में कितने प्रासंगिक है श्रीराम