पूरा मंदिर 74 मीटर लंबा और 32 मीटर चौड़ा है। मंदिर की चारों दिशाओं में चार दरवाजे हैं। इस मंदिर के कलश तक की ऊँचाई 69 फीट है तथा कलश 32 टन शुद्ध सोने से निर्मित किया हुआ है। पूर्व महाद्वार से प्रवेश करने पर भव्य सभामंडप नजर आता है, जिसकी ऊँचाई 12 फीट होने के साथ यहाँ चालीस खंभे है। यहाँ विराजमान श्री हनुमानजी मंदिर में वे प्रभु श्रीराम के चरणों की ओर देखते हुए प्रतीत होते हैं।
कहा जाता है कि ये मंदिर पर्णकुटी के स्थान पर बनाया गया है, जहाँ पूर्व में नाथपंथी साधु निवास करते थे। कहते हैं कि साधुओं को अरुणा-वरुणा नदियों पर प्रभु की मूर्ति प्राप्त हुई और उन्होंने इसे लकड़ी के मंदिर में विराजित किया था। तत्पश्चात 1780 में माधवराव पेशवा की मातोश्री गोपिकाबाई की सूचना पर इस मंदिर का निर्माण करवाया गया। उस काल के दौरान मंदिर निर्माण में 23 लाख का खर्च अनुमानित बताया जाता है।
मंदिर परिसर में सीता गुफा है। कहा जाता है कि माता सीता ने यहाँ बैठकर साधना की थी। मंदिर के नजदीक से गोदावरी नदी बहती है, जहाँ प्रसिद्ध रामकुंड है। मंदिर की भव्य छटा देखते ही बनती है। धर्मयात्रा में इस बार की यात्रा कैसी लगी, हमें जरूर बताएँ।-अभिनय कुलकर्णी
कैसे पहुँचें:- नासिक मुंबई से 160 किमी तथा पुणे से 210 किमी दूरी पर स्थित है।
वायु मार्ग: मुंबई से नासिक हवाई मार्ग द्वारा पहुँचा जा सकता है।
रेल मार्ग: नासिक मध्य रेलवे का महत्वपूर्ण जंक्शन है। मुंबई की ओर जाने वाली अधिकतर गाड़ियाँ नासिक होते हुए गुजरती हैं।
सड़क मार्ग: मुंबई-आगरा महामार्ग नासिक होते हुए गुजरता है।